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'बच्चों को बचाओ': भरतपुर में 1 साल में 114 नवजातों की मौत, कब सुधरेंगे हालात?

कोटा का जेके लोन अस्पताल नवजातों की कब्रगाह बन चुका है. 33 दिनों में 107 बच्चों को निगलने वाले जेके लोन अस्पताल में अब भी बच्चों की सांसें टूटती जा रही हैं. मासूमों की जिंदगी से खेलने वाले इस अस्पताल के बाद ईटीवी भारत प्रदेश के हर शिशु अस्पताल की तह तक जा रहा है, ताकि वक्त रहते ऐसी घटना से बचा जा सके. इसी कड़ी में हमने भरतपुर संभाग के सबसे बड़े जनाना अस्पताल का हाल जाना, जहां के NICU में भी हालात काफी खराब हैं.

Janaana Hospital Bharatpur, jk loan kota
भरतपुर में साल 2019 में 114 नवजातों की मौत
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Published : Jan 4, 2020, 3:02 PM IST

Updated : Jan 5, 2020, 7:11 PM IST

भरतपुर. कोटा के जेके लोन अस्पताल में अबतक 107 बच्चों की मौत हो चुकी है. इस घटना से चिकित्सा महकमा और राज्य सरकार दोनों ही सकते में है, लेकिन फिर भी अस्पतालों के एनआईसीयू के हालात नहीं सुधारे जा रहे हैं. भरतपुर संभाग के सबसे बड़े जनाना अस्पताल के एनआईसीयू में भी हालात बदतर बने हुए हैं. सुविधा और जीवनदायी उपकरणों की मरम्मत के लिए तरस रहे जनाना अस्पताल के एनआईसीयू में बीते 1 साल में 114 नवजात जान गंवा चुके हैं.

भरतपुर में साल 2019 में 114 नवजातों की मौत

साल 2019 में नवजातों की मौत के आंकड़े

  • जनवरी में 143 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला, 10 की मौत.
  • फरवरी में 138 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला, 7 की मौत.
  • मार्च में 140 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला, 5 की मौत.
  • अप्रेल में 140 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला, 3 की मौत.
  • मई में 206 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला ,14 की मौत.
  • जून में 192 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला, 5 की मौत.
  • जुलाई में 252 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला, 13 की मौत.
  • अगस्त में 297 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला, 13 की मौत.
  • सितंबर में 239 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला, 7 की मौत.
  • अक्टूबर में 211 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला, 10 की मौत.
  • नवंबर में 195 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला, 9 की मौत.
  • दिसंबर में 205 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला, 18 की मौत.

पढ़ें- मैं जिम्मेदार हूं, जिम्मेदारी से नहीं भागता हूंः मंत्री रघु शर्मा

ईटीवी भारत की टीम ने जब एनआईसीयू के हालातों का जायजा लिया तो हालात चौंकाने वाले थे. यहां कई महत्वपूर्ण उपकरण खराब मिले तो वहीं एनआईसीयू में आपातकालीन निकासी के लिए कोई व्यवस्था भी नजर नहीं आई. हालात यह है, कि कई समस्याओं के समाधान के लिए चिकित्सकों ने जिम्मेदार अधिकारियों को कई बार पत्र भी लिखा है, लेकिन अब भी हालात जस के तस हैं.

वार्मर और वेंटिलेटर खराब
शिशु रोग विभाग के कार्यवाहक विभागाध्यक्ष डॉ. हिमांशु गोयल ने बताया, कि एनआईसीयू में 25 वार्मर में से 7 वार्मर खराब हैं. इसी तरह 4 वेंटिलेटर में से 2 खराब हैं, 1 एबीजी मशीन है, वो भी खराब है. इतना ही नहीं एनआईसीयू में भर्ती नवजातों के कपड़े को संक्रमण मुक्त करने के लिए उपलब्ध एकमात्र आटोक्लेव मशीन भी खराब पड़ी है. एनआईसीयू की छत भी कई जगह से क्षतिग्रस्त है, जो कभी भी दुर्घटना का कारण बन सकती है.

पढ़ें- केंद्रीय टीम पहुंची जेके लोन अस्पताल, डेथ ऑडिट कर सौंपेगी रिपोर्ट

गंभीर नवजातों को ऑक्सीजन भी मुश्किल
डॉ. हिमांशु गोयल ने बताया, कि एनआईसीयू में सभी गंभीर नवजातों को भर्ती कराया जाता है. ऐसे में प्रत्येक वार्मर पर एक ऑक्सीजन पॉइंट होना चाहिए, लेकिन जमीनी हकीकत यह है, कि पूरे एनआईसीयू में सिर्फ 6 ऑक्सीजन पॉइंट है. ऐसे में जरूरत पड़ने पर सभी नवजातों को एक साथ ऑक्सीजन भी उपलब्ध नहीं कराई जा सकती. पोर्टेबल, एक्स-रे मशीन भी उपलब्ध नहीं है.

पढ़ें- रोते-रोते बोले परिजन- जेके लोन अस्पताल में ऑक्सीजन नहीं मिलने से तड़प-तड़प कर बेटे ने तोड़ा दम

वोल्टेज और अर्थिंग की बड़ी समस्या
एनआईसीयू में बिजली सप्लाई की गंभीर समस्या है. डॉ. हिमांशु गोयल ने बताया, कि एनआईसीयू में वोल्टेज कम ज्यादा होते रहते हैं. इससे स्पार्किंग, उपकरण खराब होने की समस्या बनी रहती है, साथ ही दुर्घटना की आशंका भी बनी रहती है. इस संबंध में एनआईसीयू के रखरखाव का जिम्मा संभाल रही केटीपीएल कंपनी ने भी लिखित में दिया है, साथ ही उच्चाधिकारियों को भी कई बार सूचित किया जा चुका है.

पढ़ें- कोटा के बाद अब बूंदी के अस्पताल में एक महीने के भीतर 10 बच्चों की मौत

आपातकालीन निकासी की नहीं है सुविधा
अस्पताल के एनआईसीयू में कोई भी आपातकालीन निकासी सुविधा उपलब्ध नहीं है. पूरे एनआईसीयू में सिर्फ एक ही द्वार है. ऐसे में यदि कभी आपातकालीन हालात पैदा हो गए तो नवजातों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.

भरतपुर. कोटा के जेके लोन अस्पताल में अबतक 107 बच्चों की मौत हो चुकी है. इस घटना से चिकित्सा महकमा और राज्य सरकार दोनों ही सकते में है, लेकिन फिर भी अस्पतालों के एनआईसीयू के हालात नहीं सुधारे जा रहे हैं. भरतपुर संभाग के सबसे बड़े जनाना अस्पताल के एनआईसीयू में भी हालात बदतर बने हुए हैं. सुविधा और जीवनदायी उपकरणों की मरम्मत के लिए तरस रहे जनाना अस्पताल के एनआईसीयू में बीते 1 साल में 114 नवजात जान गंवा चुके हैं.

भरतपुर में साल 2019 में 114 नवजातों की मौत

साल 2019 में नवजातों की मौत के आंकड़े

  • जनवरी में 143 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला, 10 की मौत.
  • फरवरी में 138 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला, 7 की मौत.
  • मार्च में 140 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला, 5 की मौत.
  • अप्रेल में 140 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला, 3 की मौत.
  • मई में 206 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला ,14 की मौत.
  • जून में 192 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला, 5 की मौत.
  • जुलाई में 252 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला, 13 की मौत.
  • अगस्त में 297 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला, 13 की मौत.
  • सितंबर में 239 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला, 7 की मौत.
  • अक्टूबर में 211 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला, 10 की मौत.
  • नवंबर में 195 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला, 9 की मौत.
  • दिसंबर में 205 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला, 18 की मौत.

पढ़ें- मैं जिम्मेदार हूं, जिम्मेदारी से नहीं भागता हूंः मंत्री रघु शर्मा

ईटीवी भारत की टीम ने जब एनआईसीयू के हालातों का जायजा लिया तो हालात चौंकाने वाले थे. यहां कई महत्वपूर्ण उपकरण खराब मिले तो वहीं एनआईसीयू में आपातकालीन निकासी के लिए कोई व्यवस्था भी नजर नहीं आई. हालात यह है, कि कई समस्याओं के समाधान के लिए चिकित्सकों ने जिम्मेदार अधिकारियों को कई बार पत्र भी लिखा है, लेकिन अब भी हालात जस के तस हैं.

वार्मर और वेंटिलेटर खराब
शिशु रोग विभाग के कार्यवाहक विभागाध्यक्ष डॉ. हिमांशु गोयल ने बताया, कि एनआईसीयू में 25 वार्मर में से 7 वार्मर खराब हैं. इसी तरह 4 वेंटिलेटर में से 2 खराब हैं, 1 एबीजी मशीन है, वो भी खराब है. इतना ही नहीं एनआईसीयू में भर्ती नवजातों के कपड़े को संक्रमण मुक्त करने के लिए उपलब्ध एकमात्र आटोक्लेव मशीन भी खराब पड़ी है. एनआईसीयू की छत भी कई जगह से क्षतिग्रस्त है, जो कभी भी दुर्घटना का कारण बन सकती है.

पढ़ें- केंद्रीय टीम पहुंची जेके लोन अस्पताल, डेथ ऑडिट कर सौंपेगी रिपोर्ट

गंभीर नवजातों को ऑक्सीजन भी मुश्किल
डॉ. हिमांशु गोयल ने बताया, कि एनआईसीयू में सभी गंभीर नवजातों को भर्ती कराया जाता है. ऐसे में प्रत्येक वार्मर पर एक ऑक्सीजन पॉइंट होना चाहिए, लेकिन जमीनी हकीकत यह है, कि पूरे एनआईसीयू में सिर्फ 6 ऑक्सीजन पॉइंट है. ऐसे में जरूरत पड़ने पर सभी नवजातों को एक साथ ऑक्सीजन भी उपलब्ध नहीं कराई जा सकती. पोर्टेबल, एक्स-रे मशीन भी उपलब्ध नहीं है.

पढ़ें- रोते-रोते बोले परिजन- जेके लोन अस्पताल में ऑक्सीजन नहीं मिलने से तड़प-तड़प कर बेटे ने तोड़ा दम

वोल्टेज और अर्थिंग की बड़ी समस्या
एनआईसीयू में बिजली सप्लाई की गंभीर समस्या है. डॉ. हिमांशु गोयल ने बताया, कि एनआईसीयू में वोल्टेज कम ज्यादा होते रहते हैं. इससे स्पार्किंग, उपकरण खराब होने की समस्या बनी रहती है, साथ ही दुर्घटना की आशंका भी बनी रहती है. इस संबंध में एनआईसीयू के रखरखाव का जिम्मा संभाल रही केटीपीएल कंपनी ने भी लिखित में दिया है, साथ ही उच्चाधिकारियों को भी कई बार सूचित किया जा चुका है.

पढ़ें- कोटा के बाद अब बूंदी के अस्पताल में एक महीने के भीतर 10 बच्चों की मौत

आपातकालीन निकासी की नहीं है सुविधा
अस्पताल के एनआईसीयू में कोई भी आपातकालीन निकासी सुविधा उपलब्ध नहीं है. पूरे एनआईसीयू में सिर्फ एक ही द्वार है. ऐसे में यदि कभी आपातकालीन हालात पैदा हो गए तो नवजातों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.

Intro:भरतपुर।
कोटा के जेके लोन अस्पताल में नवरात्रों की मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा वहीं भरतपुर संभाग के सबसे बड़े जनाना अस्पताल के एनआईसीयू में भी हालात बदतर बने हुए हैं। सुविधा और जीवनदाई उपकरणों की मरम्मत के लिए तरस रहे जनाना अस्पताल के एनआईसीयू में बीते 1 वर्ष में 114 नवजात जान गवा चुके हैं। ईटीवी भारत की टीम ने जब शुक्रवार को एनआईसीयू के हालातों का जायजा लिया तो हालात चौंकाने वाले थे। यहां कई महत्वपूर्ण जीवनदाई उपकरण खराब मिले तो वही एनआईसीयू में आपातकालीन निकासी के लिए कोई व्यवस्था भी नजर नहीं आई।हालात यह है कि कई समस्याओं के समाधान के लिए चिकित्सकों ने जिम्मेदार अधिकारियों को कई बार पत्र भी लिखा है लेकिन अभी भी हालात जस के तस हैं।


Body:वार्मर और वेंटिलेटर खराब
शिशु रोग विभाग के कार्यवाहक विभागाध्यक्ष डॉ हिमांशु गोयल ने बताया कि एनआईसीयू में 25 वार्मर में से 7 वार्मर खराब है। इसी तरह 4 वेंटिलेटर में से 2 खराब, 1 एबीजी मशीन वो भी खराब है। इतना ही नहीं एन आई सी यू में भर्ती नवजातों के कपड़े इत्यादि को संक्रमण मुक्त करने के लिए उपलब्ध एकमात्र आटोक्लेव मशीन भी खराब पड़ी है। इतना ही नहीं एनआईसीयू की कई जगह से छत भी क्षतिग्रस्त है, जो कि कभी भी दुर्घटना का कारण बन सकती है।

गंभीर नवजातों को ऑक्सीजन उपलब्ध कराना भी मुश्किल
डॉ हिमांशु गोयल ने बताया कि एनआईसीयू में सभी गंभीर नवजातों को भर्ती कराया जाता है। ऐसे में प्रत्येक वार्मर पर एक ऑक्सीजन पॉइंट होना चाहिए लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि पूरे एनआईसीयू में सिर्फ 6 ऑक्सीजन पॉइंट है। ऐसे में जरूरत पड़ने पर सभी नवजातों को एक साथ ऑक्सीजन भी उपलब्ध नहीं कराई जा सकती। पोर्टेबल एक्स-रे मशीन भी उपलब्ध नही है।

वोल्टेज और अर्थिंग की बड़ी समस्या
एनआईसीयू में बिजली सप्लाई की गंभीर समस्या है। डॉ हिमांशु गोयल ने बताया कि एनआईसीयू में वोल्टेज कम ज्यादा होते रहते हैं इससे स्पार्किंग, उपकरण खराब होने की समस्या बनी रहती है। साथ ही दुर्घटना की आशंका भी बनी रहती है। इस संबंध में एनआईसीयू के रखरखाव का जिम्मा संभाल रही केटीपीएल कंपनी ने भी लिखित में दिया है। साथ ही उच्चाधिकारियों को भी कई बार सूचित किया जा चुका है।

आपातकालीन निकासी की नहीं है सुविधा
अस्पताल के एनआईसीयू में कोई भी आपातकालीन निकासी सुविधा उपलब्ध नहीं है। पूरे एनआईसीयू में सिर्फ एक ही द्वार है। ऐसे में यदि कभी आपातकालीन हालात पैदा हो गए तो नवजातों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।

बीते वर्ष नवजातों की मौत के आंकड़े
जनवरी 2019 में 143 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला 10 की मौत
फरबरी 2019 में 138 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला 07 की मौत
मार्च 2019 में 140 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला 5 की मौत
अप्रेल 2019 में 140 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला 03 की मौत
मई 2019 में 206 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला 14 की मौत
जून 2019 में 192 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला 05 की मौत
जुलाई 2019 में 252 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला 13 की मौत
अगस्त 2019 में 297 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला 13 की मौत
सितंबर 2019 में 239 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला 07 की मौत
अक्टूबर 2019 में 211 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला 10 की मौत
नवंबर 2019 में 195 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला 09 की मौत
दिसंबर 2019 में 205 नवजातों को एनआईसीयू एडमिशन मिला 18 की मौत


Conclusion:गौरतलब है कि कोटा के जेके लोन अस्पताल में नवजातों की बड़ी संख्या में मौत के बाद चिकित्सा महकमा और राज्य सरकार सकते में है। लेकिन फिर भी अस्पतालों के एनआईसीयू के हालात में सुधार होते नजर नहीं आ रहे हैं।

बाईट - डॉ हिमांशु गोयल, कार्यवाहक विभागाध्यक्ष, शिशु रोग, जनाना अस्पताल, भरतपुर

बाईट 2 - डॉ के सी बंसल, पीएमओ, जनाना अस्पताल, भरतपुर ( ऊनी कैप में)
Last Updated : Jan 5, 2020, 7:11 PM IST
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