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SPECIAL : 11 रुपये में भूत-प्रेत की बाधा उतारता है 'कड़कनाथ'...आषाढ़ के सोमवार को लगता है मेला

भरतपुर के मेले में महज 11 रुपए लेकर भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति का दावा किया जाता है. विज्ञान और तकनीक के इस जमाने में भी लोग ऐसी बातों पर विश्वास करते हैं. हर साल इस मेले में बड़ी संख्या में लोग छोटे बच्चों और नवविवाहिता को लेकर पहुंचते हैं ताकि उन्हें बुरी बला से बचाया जा सके.

भरतपुर में कुआं वाले बाबा का मेला
भरतपुर में कुआं वाले बाबा का मेला
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Published : Jul 19, 2021, 7:11 PM IST

Updated : Jul 19, 2021, 10:56 PM IST

भरतपुर: शहर के बीचों बीच सड़क किनारे लगने वाले कुआं वाले बाबा के मेले का लोगों को साल भर इंतजार रहता है. इस मेले के बेसब्री से इंतजार की खास वजह यह है कि यहां बच्चों और नवविवाहित जोड़ों की बुरी बलाओं और भूत-प्रेत बाधा जैसी परेशानियों का समाधान 'कड़कनाथ' यानी मुर्गा से किया जाता है.

आधुनिक जमाने में भी लोग अंधविश्वास की गिरफ्त में हैं. यही वजह है कि आषाढ़ माह में चार सोमवार को लगने वाले इस मेले में सैकड़ों महिला-पुरुषों की भीड़ उमड़ती है.

कुआं वाले बाबा मेले में कड़कनाथ उतारते हैं नजर

मेले में नवविवाहित बहू को बुरी नजर से बचाने के लिए लेकर आईं कुशमा ने बताया कि कुआं वाले बाबा का मेला पुराने जमाने से चला आ रहा है. यहां पास ही में एक कुआं है, जिस पर देवता की पूजा की जाती थी. लेकिन अब वो कुआं झाड़ियों और पानी के बीच घिर गया है. अब सड़क पर बाबा और देवता के नाम की पूजा की जाती है.

पढ़ें- ऐसे समाज पर शर्म आती है : विवाहिता को दुष्कर्मी के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने से रोका, राजीनामा कराया...आरोपी ने अश्लील वीडियो भेजे तो टूटा सब्र

कुशमा और सुमन ने बताया कि मेले में बच्चों का मुंडन कराया जाता है. इसके बाद यहां मौजूद लोग मोर पंख से झाड़ा देते हैं. उसके बाद मुर्गे के पैर बच्चे के सिर से छुआ कर बच्चे पर घुमाया जाता है. नई नवेली दुल्हन के सिर के ऊपर से भी मुर्गा घुमाया जाता है. लोगों की मान्यता है कि ऐसा करने से बच्चे और दुल्हन से बुरी नजर और बुरी बलाओं का साया हट जाता है.

भरतपुर में कुआं वाले बाबा का मेला
यहां मुर्गे से लगाया जाता है झाड़ा

मेले में झाड़ा देने और मुर्गा घुमाने वाले लोगों ने इसका एक शुल्क भी निर्धारित किया है. ये लोग झाड़ा लगाने और मुर्गा घुमाने का कम से कम 11 रुपए और अधिक से अधिक 151 रुपए तक लेते हैं. यानी जिससे जितना रुपया ले सकें, ले लेते हैं.

अंधविश्वास का ये खेल दशकों से चला आ रहा है. कुशमा की मानें तो पुरखों से इस मेले की मान्यता है. यह मेला हर साल लगता है. इस मेले में आषाढ़ के हर सोमवार को सैकड़ों लोगों की भीड़ जुटती है.

भरतपुर: शहर के बीचों बीच सड़क किनारे लगने वाले कुआं वाले बाबा के मेले का लोगों को साल भर इंतजार रहता है. इस मेले के बेसब्री से इंतजार की खास वजह यह है कि यहां बच्चों और नवविवाहित जोड़ों की बुरी बलाओं और भूत-प्रेत बाधा जैसी परेशानियों का समाधान 'कड़कनाथ' यानी मुर्गा से किया जाता है.

आधुनिक जमाने में भी लोग अंधविश्वास की गिरफ्त में हैं. यही वजह है कि आषाढ़ माह में चार सोमवार को लगने वाले इस मेले में सैकड़ों महिला-पुरुषों की भीड़ उमड़ती है.

कुआं वाले बाबा मेले में कड़कनाथ उतारते हैं नजर

मेले में नवविवाहित बहू को बुरी नजर से बचाने के लिए लेकर आईं कुशमा ने बताया कि कुआं वाले बाबा का मेला पुराने जमाने से चला आ रहा है. यहां पास ही में एक कुआं है, जिस पर देवता की पूजा की जाती थी. लेकिन अब वो कुआं झाड़ियों और पानी के बीच घिर गया है. अब सड़क पर बाबा और देवता के नाम की पूजा की जाती है.

पढ़ें- ऐसे समाज पर शर्म आती है : विवाहिता को दुष्कर्मी के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने से रोका, राजीनामा कराया...आरोपी ने अश्लील वीडियो भेजे तो टूटा सब्र

कुशमा और सुमन ने बताया कि मेले में बच्चों का मुंडन कराया जाता है. इसके बाद यहां मौजूद लोग मोर पंख से झाड़ा देते हैं. उसके बाद मुर्गे के पैर बच्चे के सिर से छुआ कर बच्चे पर घुमाया जाता है. नई नवेली दुल्हन के सिर के ऊपर से भी मुर्गा घुमाया जाता है. लोगों की मान्यता है कि ऐसा करने से बच्चे और दुल्हन से बुरी नजर और बुरी बलाओं का साया हट जाता है.

भरतपुर में कुआं वाले बाबा का मेला
यहां मुर्गे से लगाया जाता है झाड़ा

मेले में झाड़ा देने और मुर्गा घुमाने वाले लोगों ने इसका एक शुल्क भी निर्धारित किया है. ये लोग झाड़ा लगाने और मुर्गा घुमाने का कम से कम 11 रुपए और अधिक से अधिक 151 रुपए तक लेते हैं. यानी जिससे जितना रुपया ले सकें, ले लेते हैं.

अंधविश्वास का ये खेल दशकों से चला आ रहा है. कुशमा की मानें तो पुरखों से इस मेले की मान्यता है. यह मेला हर साल लगता है. इस मेले में आषाढ़ के हर सोमवार को सैकड़ों लोगों की भीड़ जुटती है.

Last Updated : Jul 19, 2021, 10:56 PM IST
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