भरतपुर. आज के दौर में संयुक्त परिवार बिखर रहे हैं. घर में लोगों के बीच दूरियां बढ़ रही हैं. हर कोई अपनी अलग जिंदगी में ही व्यस्त है. ऐसे में गुरुवार को 'अपना घर' आश्रम (Apna Ghar Ashram Bharatpur) में संयुक्त परिवार का एक अनूठा उदाहरण देखने को मिला. जोधपुर जिले के पीपाड़ निवासी अब्दुल मोमिन 35 वर्ष पूर्व 16 वर्ष की उम्र में परिवार से दूर हो गए थे. परिजनों ने वर्षों तक उन्हें ढूंढने का प्रयास किया, लेकिन कहीं पता नहीं चला. अब 35 वर्ष बाद परिवार को अब्दुल मोमिन के 'अपना घर' आश्रम में होने की सूचना मिली.
मोमिन के जीवित होने की सूचना से पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ पड़ी. आंखों से खुशी के आंसू निकल पड़े और परिवार के 20 लोग दो गाड़ियों में सवार होकर 400 किलोमीटर का सफर तय कर उनको लेने के भरतपुर के अपना घर आश्रम आ पहुंचे. रोशन बानो ने बताया ने बताया कि जेठ अब्दुल मोमिन 1987 में 16 की उम्र में पीपाड़ सिटी से 11 लोगों के साथ जमात के लिए निकले, लेकिन नागौर से 11 लोग लौट आए लेकिन मोमिन नहीं लौटे. मोमिन की कई वर्षों तक काफी तलाश की गई. मोमिन का कोई फोटो नहीं था, जिसकी वजह से तलाश करने में दिक्कत भी हुई. आखिर में पूरा परिवार थक हार कर बैठ गया.
व्हाट्सअप से मिली जानकारी
रोशन बानो ने बताया कि अभी कुछ दिन पहले उनके परिवार को व्हाट्सएप पर सूचना मिली कि मोमिन भरतपुर के 'अपना घर' आश्रम में है. व्हाट्सएप पर वीडियो कॉलिंग के माध्यम से मोमिन को दिखाया गया, तो परिजनों ने उसे पहचान लिया. सूचना मिलते ही परिवार के 20 लोग दो गाड़ियों से आश्रम आ पहुंचे. मोमिन से मिलकर तीनों बहनों की आंखें नम हो गईं. मोमिन किसी को चेहरे से ठीक से नहीं पहचान पा रहा था लेकिन परिजनों के अपने नाम बताने पर वह सभी को जानने-पहचानने लगा.
पढ़ें. Apna Ghar Ashram Bharatpur: 2 साल बाद मिला खोया जीवनसाथी, परिजनों के साथ उड़ीसा लौटा विश्वनाथ मांझी
मेरा तो जन्म भी नहीं हुआ था...
गुरुवार को अपनी मां के साथ मामा मोमिन को लेने 'अपना घर' आश्रम आई साजिदा ने बताया कि मामा 35 साल पहले घर से अलग हो गए थे. उस समय तो मेरा जन्म भी नहीं हुआ था. उनका एक भी फोटो भी नहीं था, इसलिए यह भी नहीं पता था कि मामा दिखते कैसे थे. आज मामा से मिलकर बहुत खुशी हो रही है. मां भी मामा को बहुत याद करती थी. इतने साल बाद मामा के मिल जाने से हमारा परिवार पूरा हो गया.
भतीजे का नाम मोमिन रखा
रोशन बानो ने बताया कि पूरा संयुक्त परिवार है. परिवार में करीब 100 से अधिक सदस्य हैं. 35 साल पहले जिस समय मोमिन लापता हो गए थे उससे पूरा परिवार दुखी था. कई साल तक उनकी तलाश में हम लोग भटकते रहे. इस उम्मीद में कि कभी तो वह मिल जाएंगे. रोशन बानो की आंखों में खुशी के आंसू थे. उन्होंने बताया कि उन्होंने जेठ मोमिन की यादों को जिंदा रखने के लिए अपने बेटे का नाम ही मोमिन रख दिया.
संयुक्त परिवार का अद्भुत उदाहरण
अपना घर आश्रम के संस्थापक डॉक्टर बीएम भारद्वाज ने मोमिन को परिजनों के साथ विदाई देते हुए कहा कि यह आज के समाज के लिए संयुक्त परिवार के मूल्यों का सबसे बेहतरीन उदाहरण है. जहां लोग मानसिक बीमार लोगों से पीछा छुड़ाने के प्रयास करते हैं. वहीं यह परिवार 35 साल बाद भी अपने परिजन को मिलने और उसे खुशी-खुशी साथ ले जाने आया है. सभी कागजी औपचारिकताओं के बाद मोमिन आंखों में खुशी के आंसू लिए परिवार के साथ घर लौट गए.