भरतपुर. कोरोना संक्रमण का असर देश के हर वर्ग पर पड़ा है. आज के समय में स्थिति ऐसी हो गई कि कई वर्ग पर तो खाने के लाले पड़ गए है. ऐसा ही समाज का एक वर्ग है जो पशुओं का दूध बेचकर अपने और अपने परिवार का गुजारा करते है. इन पशुपालकों के लिए भी यह दौर मुश्किलों भरा है. क्योंकि, बीते तीन माह से पशु चारा तो भरपूर उपलब्ध हो रहा, लेकिन दूध के खरीददारों का टोटा पड़ गया है. वहीं, कई ग्रामीण क्षेत्रों में दुग्ध विक्रेताओं को तो बिक्री नहीं होने की वजह से डेयरी का काम ही बंद करना पड़ गया. ईटीवी भारत ने ऐसे ही कुछ पशुपालकों से मिलकर उनकी समस्याएं जानी.
पलायन से घट गए उपभोक्ता
इस विषय में जब पशुपालक उदय सिंह से बात की गई तो उन्होंने बताया कि वह हर दिन गांव से दूर शहर में दूध बिक्री के लिए जाता है. लेकिन शहर के लोग भी अब उनसे दूध नहीं खरीदते. इसका सबसे बड़ा कारण है कि जो उपभोक्ता उनसे दूध खरीदते थे, उनमें से बड़ी संख्या में बाहर के लोग थे. जो कि लॉकडाउन के चलते अपने घर की ओर पलायन कर चुके हैं. इससे शहरी क्षेत्र में उनके करीब 30 प्रतिशत से अधिक उपभोक्ता कम हो गए. ऐसे में उनके पास दूध उत्पादन तो पर्याप्त मात्रा में हो रहा है, लेकिन बिक्री के लिए ना तो उपभोक्ता मिल रहे हैं और ना ही कोई स्थान.
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हलवाई की दुकानें भी रही बंद
वहीं, पशुपालक बबलू पटेल ने बताया कि शहरी क्षेत्र में दूध बिक्री के लिए घरेलू उपभोक्ता के अलावा हलवाई की दुकान और डेयरी बड़े केंद्र होते हैं. लेकिन लॉकडाउन में लंबे समय तक हलवाई की दुकानें बंद रही और साथ ही डेयरी सेंटर भी बंद रहे. ऐसे में पर्याप्त मात्रा में दूध उपलब्ध होने के बावजूद उसकी बिक्री नहीं हो पाई, जिसका विक्रेताओं को काफी नुकसान उठाना पड़ा है.
बंद करना पड़ा डेयरी केंद्र
दुग्ध व्यवसायी टीकम सिंह ने बताया कि वह ग्रामीण क्षेत्र से हर दिन करीब 2 हजार लीटर दूध एकत्रित करके शहर के बड़े-बड़े सेंटरों पर सप्लाई करते थे. लेकिन लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्र तक पहुंचने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था. साथ ही शहर के दुग्ध केंद्रों पर भुगतान की समस्या भी सामने आ रही थी. इससे बड़ी मात्रा में भुगतान भी अटक गया. ऐसे में ग्रामीण पशुपालकों के भुगतान में भी समस्या हो रही थी. मजबूरन बीते तीन माह से दूध का काम बंद पड़ा है.
पशुपालकों के सामने यह भी समस्या
पशुपालकों का कहना है कि दुग्ध उत्पादन पर्याप्त मात्रा में हो रहा है, लेकिन उसकी सप्लाई नहीं होने से एक और समस्या सामने खड़ी हो गई है. घर में दूध काफी मात्रा में उपलब्ध रहता है, लेकिन उसका पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाता. ऐसे में दूध खराब होने की संभावना रहती है. इससे बचने के लिए पशुपालकों ने दूध से घरों में ही घी तैयार करना शुरू कर दिया. ताकि दूध के घाटे को कुछ हद तक काम किया जा सके.
भरतपुर जिले की फैक्ट फाइल
8 लाख 36,000- भैंस
1 लाख 40,000 – गाय
3 लाख 2,463 – किसान
गौशालाओं में भी पर्याप्त चारा
पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. नगेश चौधरी ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान जिले के पशुपालकों एवं गौशालाओं में चारा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहा. गौशालाओं के लिए अन्य जिले के साथ ही अन्य जिलों एवं राज्यों से भी चारा उपलब्ध करवाया गया.
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इसलिए सस्ता हुआ चारा
पशुपालकों ने बताया कि मार्च में गेहूं की फसल की कटाई हुई, जिसके बाद जिले में पर्याप्त मात्रा में पशु चारा उपलब्ध हो गया. इस सीजन में अधिकतर पशुपालक अपना चारा बिक्री के लिए जिले से बाहर भेजते थे, लेकिन इस बार लॉकडाउन के कारण पशु चारा जिले से बाहर नहीं जा पाया और जिले में ही उसकी बिक्री करनी पड़ी. ऐसे में सर्दी के मौसम में जो भूसा 400 रुपए प्रति मन के हिसाब से मिलता है. वहीं, लॉक डाउन में सिर्फ 200 रुपए प्रति मन के हिसाब से आसानी से उपलब्ध हो गया. इससे एक ओर तो किसानों को नुकसान हुआ. लेकिन दूसरी ओर पशुपालकों के लिए काफी फायदेमंद रहा.