भरतपुर. कोरोना संक्रमण के दौरान लागू किये गए लॉकडाउन में जिला न्यायालय की कार्य व्यवस्था की रफ्तार मानों थम सी गई है. अनलॉक होने के बावजूद न्यायालय परिसर में सिर्फ वकीलों की ही गहमागहमी नजर आती है. किसी पक्षकार को न्यायालय परिसर में आने की अनुमति नहीं है. ऐसे में अति आवश्यक मामलों की ही सुनवाई हो पा रही है. वहीं कोरोना संक्रमण के चलते लंबे समय से न्यायालय का संचालन सीमित दायरे में होने की वजह से अधिवक्ताओं समेत करीब 5 हजार लोगों के रोजगार पर प्रभाव पड़ा है. कई नए अधिवक्ताओं के सामने तो आर्थिक संकट के हालात पैदा हो गए हैं.
कोरोना संक्रमण के चलते न्यायालय में अति आवश्यक मामलों की ऑनलाइन सुनवाई हो रही है. ऑनलाइन पैरवी प्रक्रिया का जानकारी के अभाव में सभी अधिवक्ता लाभ नहीं उठा पा रहे हैं. अधिवक्ता ऋषिपाल ने बताया कि ऑनलाइन प्रक्रिया के चलते कार्य का केंद्रीकरण हो गया और सभी अधिवक्ताओं को इसका लाभ नहीं मिल पाया. ऐसे में जिन अधिवक्ताओं का अनुभव 10 साल से कम का है, उनके सामने विकट आर्थिक संकट के हालात हैं.
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बता दें कि 65 साल से अधिक उम्र के जिन अधिवक्ताओं को लंबा अनुभव है, उनको न्यायालय परिसर में आने की अनुमति नहीं है. इसके साथ ही ना ही वो ऑनलाइन प्रक्रिया को अच्छी तरह समझ पाते हैं. ऐसे में बड़ी संख्या में लगातार पेंडेंसी बढ़ रही हैं.
5 हजार लोगों का रोजगार प्रभावित
इसके साथ ही जिलेभर के करीब 1700 अधिवक्ता रजिस्टर्ड है. लेकिन कोरोना संक्रमण के इस दौर में अधिकतर अधिवक्ताओं की आमदनी प्रभावित हुई है. इतना ही नहीं न्यायालय परिसर में स्टाम्प विक्रेता, मुंशी, टाइपिस्ट समेत करीब 5 हजार लोगों का रोजगार प्रभावित हुआ हैं.
बार काउंसिल की सहायता नाकाफी
जिले में कई अधिवक्ताओं के हालात तो बदतर हो गए हैं. अधिवक्ताओं के इन हालातों पर ना तो सरकार कोई मदद कर रही है और ना ही कोई जनप्रतिनिधि आवाज उठा रहा है. राजस्थान बार काउंसिल की ओर से बहुत ही कम वकीलों को 5-5 हजार की सहायता दी जा रही है, लेकिन 3 महीने के इस दौर में यह मदद बहुत ही ना काफी है.
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खाली हाथ लौट रहे घर
जिला न्यायालय परिसर के स्टांप विक्रेता रघुवीर सिंह डागुर ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान वो पूरी तरह से घर बैठे रहे. आय का एकमात्र स्रोत स्टांप की बिक्री है. ऐसे में साढ़े तीन महीने के दौरान स्टांप बिक्री नहीं हो पाई. अब न्यायालय परिसर खोल दिए गए हैं, लेकिन पक्षकारों को आने की अनुमति नहीं है. ऐसे में अभी भी आमदनी का रास्ता नहीं खुला है और हर दिन खाली हाथ ही वापस घर लौटना पड़ रहा है.
सरकार से सहायता की मांग
अधिवक्ता संतोष फौजदार ने बताया कि कोरोना संक्रमण के चलते अधिवक्ताओं के आर्थिक हालात बहुत ज्यादा खराब है. जिनमें कई निशक्त और दिव्यांग अधिवक्ता, टाइपिस्ट, स्टांप वेंडर की स्थिति तो और भी ज्यादा खराब है. ऐसे में सरकार को इन सभी लोगों के लिए आर्थिक सहायता का कोई ना कोई रास्ता निकालना चाहिए. साथ ही अधिवक्ताओं को ऋण की सुविधा भी उपलब्ध करानी चाहिए, जिससे हालात सामान्य होने तक वो अपने परिवार का पालन पोषण कर सकें.
फैक्ट...
- जिले में 1200 अधिवक्ता रजिस्टर्ड
- कोरोना संक्रमण के दौर में न्यायालय परिसर के 5000 कर्मचारियों के रोजगार पर संकट
- न्यायालय में सिर्फ 10 % अति आवश्यक मामलों की हो पा रही है सुनवाई
- बार काउंसिल की ओर से जिले के कुल रजिस्टर्ड अधिवक्ताओं में से सिर्फ 10 % को 5-5 हजार की सहायता मिली
भरतपुर में ऑनलाइन प्रक्रिया फिट नहीं
भरतपुर बार एसोसिएशन अध्यक्ष एमएस मदेरणा ने बताया कि अधिवक्ताओं के लिए सरकार द्वारा आपातकालीन स्तिथि में सहायता उपलब्ध कराने के लिए कोई सुदृढ़ ढांचा तैयार करना चाहिए. ऑनलाइन सुनवाई प्रक्रिया को लेकर उन्होंने कहा कि यह भरतपुर की परिस्थितियों में यह बिल्कुल भी फिट नहीं है. इससे भरतपुर के पक्षकारों को न्याय मिलना और अधिवक्ताओं को रोजगार मिलने बहुत मुश्किल है. यहां के लोग अभी ऑनलाइन प्रक्रिया को पूरी तरह नहीं समझ पाते. अध्यक्ष मदेरणा ने कहा कि राजस्थान बार काउंसिल की ओर से 10 प्रतिशत वकीलों को उपलब्ध कराई जा रही 5-5 हजार रुपयों की सहायता भी शर्मनाक हैं.