भरतपुर. मराठा और अफगान आक्रांता के बीच हुए पानीपत के तीसरे युद्ध पर आधारित जल्द ही आशुतोष गोवारिकर की फिल्म 'पानीपत' रिलीज होने वाली है. मराठा सेनापति सदाशिवराव भाऊ और अफगान आक्रांता अहमद शाह अब्दाली के नेतृत्व में हुए इस युद्ध में मराठा को करारी हार का सामना करना पड़ा था.
बता दें कि मराठाओं की इस हार ने भारतवर्ष के इतिहास को एक अलग ही दिशा में मोड़ दिया. युद्ध से पहले मराठा सेनापति सदाशिवराव भाऊ को भरतपुर के महाराजा सूरजमल ने कईं सलाह दी, लेकिन उन्होंने उनकी एक नहीं मानी. इतिहासकारों का कहना है कि यदि मराठा सेनापति भाऊ ने महाराजा सूरजमल की सलाह मान ली होती तो ना केवल आज 'पानीपत' फिल्म की पटकथा बल्कि भारतवर्ष का इतिहास भी कुछ और होता.
महाराजा सूरजमल ने दी थी छापामार युद्ध की सलाह...
साल 1761 में पानीपत के तीसरे युद्ध से पहले महाराजा सूरजमल ने मराठा सेनापति सदाशिवराव भाऊ के मथुरा पहुंचने पर उन्हें अफगान आक्रांता अब्दाली से सीधा युद्ध लड़ने से बचने की सलाह दी थी. महाराजा सूरजमल का तर्क था कि अब्दाली के पास करीब 1 लाख 80 हजार का सैन्य बल है, जिसका सीधा मुकाबला कर पाना संभव नहीं है. ऐसे में अब्दाली की सेना पर छापामार युद्ध नीति के तहत हमला करना चाहिए.
सर्दी के बजाय करें गर्मी में हमला...
भरतपुर निवासी इतिहासकार डॉ. रामवीर वर्मा ने बताया कि महाराजा सूरजमल ने मराठा सेनापति को सलाह दी थी कि अफगान आक्रांता की सेना सर्दी आसानी से झेल जाती है और गर्मी झेलना उनके लिए मुश्किल होता है. इसलिए उन पर हमला सर्दी के बजाय गर्मी में करना चाहिए. लेकिन मराठा सेनापति भाऊ ने उनकी सलाह को सिरे से खारिज कर दिया. इतना ही नहीं मराठा सदाशिवराव भाऊ ने महाराजा सूरजमल को अप्रत्यक्ष रूप से धमकी भी दे दी, जिसके चलते महाराजा सूरजमल ने पानीपत का तृतीय युद्ध में मराठों का साथ नहीं दिया.
युद्ध में साथ लेकर चलते थे महिलाएं और बच्चों को...
आपको बता दें कि मराठा सैनिक अपने साथ युद्ध पर जाते समय महिला और बच्चों को भी साथ लेकर चलते थे. ऐसे में महाराजा सूरजमल ने मराठा सेनापति को युद्ध में अपने साथ महिलाएं और बच्चों को ले जाने से इनकार किया. महिला और बच्चों को ग्वालियर के किले में या फिर डीग और भरतपुर के किले में सुरक्षित छोड़ने के लिए सलाह दी, लेकिन मराठा सेनापति सदाशिवराव भाऊ ने महाराजा सूरजमल की कोई सलाह नहीं मानी और अति आत्मविश्वास में अफगान आक्रांता अहमद शाह अब्दाली की सेना से सीधे जा भिड़े. जिसका नतीजा यह हुआ कि मराठा युद्ध में बुरी तरह से परास्त हुए और उन्हें मैदान छोड़कर भागना पड़ा.
हारे हुए मराठाओं को दी शरण...
इतिहासकार डॉ. रामवीर वर्मा ने बताया कि जब मराठा पानीपत तृतीय युद्ध में बुरी तरह से हार गए और वो मैदान छोड़कर वापस लौट रहे थे, तब मराठाओं को महाराजा सूरजमल ने सारी कटुता भुलाकर भरतपुर के किले में शरण दी और कई महीने तक उनके रहने खाने की व्यवस्था की. इतिहासकार डॉक्टर वर्मा ने बताया कि महाराजा सूरजमल मराठा ब्राह्मणों को हर दिन खाने के साथ ही दक्षिणा भी दिया करते थे. बाद में उन्हें सेना के साथ सुरक्षित आगे तक पहुंचाया गया था.
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तो भारत का इतिहास कुछ और होता...
इतिहासकार डॉक्टर वर्मा ने बताया कि यदि मराठाओं ने महाराजा सूरजमल की युद्ध नीति से संबंधित परामर्श मान लिए होते तो भारतवर्ष का इतिहास कुछ अलग होता. उन्होंने बताया कि महाराजा सूरजमल के परामर्श के अनुसार यदि मराठा युद्ध लड़ते तो निश्चित ही वह जीतते और पूरे देश में भारतीय राजव्यवस्था की ऐसी नींव पड़ती जो देश को सशक्त बनाती और सभी में भाईचारा की भावना पैदा होती. पूरे देश के सभी राजा-महाराजा एक झंडे के नीचे एकजुट होकर देश के विकास में योगदान देते.
गौरतलब है कि भरतपुर के महाराजा सूरजमल का जन्म 13 फरवरी 1707 में हुआ था. वह महाराजा बदन सिंह के बेटे थे. महाराजा सूरजमल ने साल 1733 में खेमकरण सोगरिया की फतेह घड़ी पर हमला कर जीत हासिल की और साल 1743 में यहीं पर भरतपुर नगर की नींव रखी. साल 1753 में भरतपुर आकर रहने लगे और उनका साम्राज्य भरतपुर के अलावा आगरा, धौलपुर, मैनपुरी, अलीगढ़, इटावा, हाथरस, गुड़गांव और मथुरा आदि क्षेत्रों तक विस्तार पाता रहा.