भरतपुर. कुछ महीने पहले तक गलियों में कबाड़ बीनते, सड़क किनारे भीख मांगने वाले बच्चे अब क, ख, ग और A, B, C, D सीखते नजर आ रहे हैं. शिक्षा के साथ ही ये बच्चे अब जीवन जीने का सलीका भी सीख रहे हैं. भरतपुर के स्वास्थ्य मंदिर के डॉ. वीरेंद्र अग्रवाल ने गरीबी के कारण आखर ज्ञान से वंचित इन बच्चों को शिक्षा और संस्कार से जोड़ा है.
ऐसे हुई शुरुआत...
डॉ. वीरेंद्र अग्रवाल बताते हैं कि लॉकडाउन में विद्या ज्योति संस्था के माध्यम से झुग्गी झोपड़ियों में भोजन वितरण का काम किया जा रहा था, तब उन्होंने इन कबाड़ बीनने और भीख मांगने वाले बच्चों को देखा. इसी दौरान उनके मन में इन बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कार और स्वच्छता के प्रति जागरूक करने का विचार आया. उस समय ऐसे बच्चों का सर्वे कराया गया. जिसमें 225 बच्चे चयनित किए गए, जो कोरोना काल के दौरान शिक्षा से दूर हो गए और कबाड़ बीनने व भीख मांगने का काम करने लगे.
खिलता बचपन-संवारता जीवन...
इन बच्चों को शिक्षित करने के लिए 3 महीने का 'खिलता बचपन-संवारता जीवन' प्रोग्राम तैयार किया गया. जिसमें पहले बैच में 25 बच्चों को चयनित कर उन्हें शिक्षित किया गया. उन्हें स्वस्थ रहने, पेस्ट करने, साफ कपड़े पहनने और संस्कारों का ज्ञान दिया गया. उसके बाद अब दूसरे बैच के बच्चों को शिक्षित किया जा रहा है. 'खिलता बचपन-संवारता जीवन' प्रोजेक्ट से जुड़ी डॉ. सोनिया शर्मा ने बताया कि कुछ बच्चे दिव्यांग भी हैं, जो देख नहीं पाते और कुछ मानसिक रूप से कमजोर हैं. ऐसे बच्चों को वोकल और अन्य विशेष थैरेपी के माध्यम से शिक्षित किया जा रहा है.
कबाड़ बीनने वाला बच्चा सीख रहा आखर ज्ञान...
शहर की रंजीत नगर कच्ची बस्ती निवासी बच्चा देवराज लाॅकडाउन के दौरान शहर भर में कबाड़ बीनता था. बीते 15 दिन से वह स्वास्थ्य मंदिर के स्कूल में शिक्षा ले रहा है. अब पढ़ाई समझ में आने लगी है और वो सीखने भी लगा है. इतना ही नहीं, मैले कपड़ों में रहने वाला देवराज अब साफ-सुथरे कपड़े पहनने लगा है और सफाई का महत्व भी समझ गया है. इसी तरह विद्यार्थी देवा ने बताया कि उसकी मां ग्रहणी है और उसके पापा सिलाई का काम करते हैं. वह पहली बार स्कूल आने लगा है. यहां आने से पहले वह कबाड़ बीनता था. अब देवा यहां पर धीरे-धीरे abcd, गिनती सीखने लगा है. साथ ही संस्कृत के मंत्र भी बोलने लगा है.
शिक्षा के साथ स्वास्थ्य का भी ध्यान...
संस्था की डॉ. सोनिया शर्मा ने बताया कि यहां बच्चों को शिक्षित करने के साथ ही उनके स्वास्थ्य की देखभाल भी की जाती है. उनका नियमित रूप से हेल्थ चेकअप होता है. स्कूल से जाने के बाद बच्चों को घर पर अपने निरक्षर माता-पिता को भी पढ़ाने के लिए बोला जाता है. डॉ. वीरेंद्र ने बताया कि बच्चों को शिक्षा के साथ ही खेलकूद, मनोरंजन की तमाम गतिविधियों में भी शामिल किया जाता है, ताकि बच्चों का संपूर्ण विकास हो सके और वह समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सकें.