अलवर. कश्मीर से कन्याकुमारी तक लगने वाले मेलों में दुकान लगाकर अपना पेट पालने वाले हजारों परिवार कोरोना काल में दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर हैं. सभी बड़े आयोजनों पर रोक लगने के कारण इनका धंधा मंदा पड़ गया है. इन छोटे दुकानदारों के पास ना तो खाने के पैसे हैं, ना ही जीवन यापन का कोई दूसरा साधन. सरकार की तरफ से भी इन लोगों को कोई मदद नहीं मिली है. अलवर में हर साल जगन्नाथ मेला लगता है. इसमें आसपास के जिलों के साथ कई राज्यों से लोग भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए आते हैं.
कोरोना संक्रमण के चलते इस बार मेला स्थगित कर दिया गया है. लेकिन मेले में दुकान लगाकर पेट भरने वाले कई परिवार यहां लॉकडाउन के दौरान ही पहुंच चुके थे. कामकाज नहीं होने के कारण इन लोगों को दो वक्त की रोटी तक नसीब नहीं हो रही है. किसी तरह यह अपना और परिवार का पेट पाल रहे हैं. ईटीवी से बातचीत में इन्होंने बताया कि सभी जगहों पर मेले लगने पर पाबंदी है. ऐसे में उनके परिवार अलग-अलग जगहों पर फंस गए हैं. कमाई नहीं होने के कारण पेट भरने में भी खासी दिक्कत आ रही है.
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एक बुजुर्ग महिला ने बताया कि उसके बच्चे चरखी दादरी में फंसे हुए हैं. एक बच्चे का एक्सीडेंट भी हो गया है. अलवर आने के लिए एक टैंपो वाले से बात हुई है, लेकिन वो पैसे ज्यादा मांग रहा है. उतने पैसे हमारे पास नहीं हैं. यह बोलते हुए बुजुर्ग महिला की आंखें नम हो गईं. उन्होंने कहा कि देश के अलग-अलग राज्यों में हमारे जैसे लोग फंसे हुए हैं.
अलवर में हर साल जगन्नाथ मेले का आयोजन होता है जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. जगन्नाथ मेला परिसर के आसपास सैंकड़ों की संख्या में ऐसे परिवार रह रहे हैं. जिनके ना तो सिर पर छत है और ना ही खाने को भोजन. देशभर में करीब 8 हजार परिवार ऐसे हैं जो मेलों में दुकान लगाकर अपना पेट पालते हैं. हर एक परिवार में 5 से 6 सदस्य होते हैं. जो कई बार एक साथ तो कई बार अलग-अलग मेलों में दुकान लगाते हैं. ये सभी असंगठित क्षेत्र में आते हैं. ऐसे लोगों से सरकार की योजनाएं कौसों दूर हैं.
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लोगों के भरोसे चल रहा है जीवनलॉकडाउन के बाद से मेलों का आयोजन बंद ऐसे में इन लोगों के सामने जीवन यापन की समस्या खड़ी हो गई है. बाजारों में भी लोग खरीदारी करने कम निकल रहे हैं. ऐसे में इनको दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही है. इन लोगों को ना तो सरकार की तरफ से कोई मदद मिल रही है और ना ही कोई सामाजिक संस्था आगे आई है. स्थानीय लोगों की मदद से ये लोग अपना गुजारा कर रहे हैं. इनके पास रोजगार का कोई दूसरा जरिया भी नहीं है जिससे ये कमा खा सकें.