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अलवर की उषा चौमर को मिला पद्मश्री, राष्ट्रपति ने सौंपा सम्मान - manual scavenging

अलवर की उषा चौमर (Usha Chaumar) को राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ram Nath Kovind ) ने पद्मश्री अवार्ड (Padma Shri Award) से सम्मानित किया. उषा चौमर को वर्ष 2020 में पद्मश्री अवार्ड देने की घोषणा हुई थी, लेकिन उस समय कोरोना के चलते यह सम्मान नहीं दिया गया था.

उषा चौमर को मिला पद्मश्री
उषा चौमर को मिला पद्मश्री
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Published : Nov 8, 2021, 9:59 PM IST

अलवर. शहर के हजूरी गेट निवासी उषा चौमर को सोमवार को राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों से पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया. उषा चौमर को वर्ष 2020 में पद्मश्री अवार्ड देने की घोषणा हुई थी, लेकिन उस समय कोरोना के चलते यह सम्मान नहीं दिया गया था.

उषा चौमर ने पद्मश्री अवार्ड पाकर अलवर जिले का मान बढ़ाया है. यह अवार्ड उन्हें स्वच्छता के क्षेत्र में सामाजिक कार्यों के लिए दिया गया. पद्मश्री के लिए उनका चयन स्वच्छता के क्षेत्र में कार्य करने के लिए किया गया था. उषा चौमर बचपन से मैला ढोने का काम करती थी, इसके चलते वर्षों तक वे अछूत की तरह जिदंगी जीने को मजबूर रहीं, लेकिन कुछ साल पहले सुलभ इंटरनेशनल संस्था (Sulabh International Organization) से जुड़ी तो उनकी जिंदगी ही बदल गई.

सुलभ इंटरनेशनल संस्था ने बदला जीवन

उषा ने सुलभ इंटरनेशनल संस्था से जुड़कर समाज में वर्षों से चली आ रही मैला ढोने की प्रथा (manual scavenging) को खत्म करने के लिए काम शुरू किया. समाज की महिलाओं को मैला ढोने के काम से मुक्त करवाने के लिए अनेक सामाजिक कार्य किए. समाज की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें अचार-मुरब्बा आदि का प्रशिक्षण दिया और उनकी जिंदगी में बदलाव लेकर आईं.

पढ़ें- महिला दिवस विशेष : मैला ढोने वाली उषा ने अपने जैसी 150 महिलाओं की जिंदगी 'जन्नत' बना दी

पढ़ें- कौन हैं सिर पर मैला ढोने वाली राजस्थान की ऊषा चौमर...जिन्हें पद्मश्री मिलेगा?

प्रधानमंत्री भी कर चुके हैं सम्मानित

सफाईगिरी के लिए पूर्व में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने भी उन्हें सम्मानित किया था. उषा देश विदेश की यात्रा कर समाज में बदलाव की वाहक बनी. उन्होंने बताया कि जब वे मात्र दस साल की थी तभी से मैला ढोने के लिए जाया करती थी, लेकिन संस्था से जुड़ने के बाद करीब 18 साल से इस कार्य को छोड़ चुकी हैं और दूसरी महिलाओं को भी इस कार्य को छोड़ने के लिए प्रेरित करती हैं.

नरक जैसी जिंदगी थी

उषा के मुताबिक 2003 से पहले उनकी जिंदगी नरक से कम नहीं थी. समाज में मैला ढोने वाले के साथ जो सलूक होता है, वही उनके साथ भी हुआ. लोग उनके साथ छुआछूत करते थे, पास नहीं बैठने देते थे, फेंक कर रुपए देते थे. यहां तक कि प्यास लगने पर भी ऊपर से पानी पिलाया जाता था और मंदिर में भी जाने की मनाही थी. उषा के मुताबिक उस वक्त मन में ख्याल आता था कि क्या जीवन भर यही काम करना होगा, क्या ये काम सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए है ?

इस तरह बदला जीवन

उषा का जीवन सुलभ इंटरनेशनल संस्थान से जुड़कर बदल गया. संस्था से जुड़कर वे आत्मनिर्भर बनी. संस्था में रहकर उनका कद बढ़ता गया. वे दूसरी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने में मदद करने लगीं. स्वयं सहायता समूह बनाकर हाथ से बनने वाले सामान बनाती और उन सामानों को लोगों तक पहुंचाती. इस तरह उन्होंने परिवार का खर्च भी चलाया.

महिलाएं मुश्किलों का सामना मजबूती से करें

उषा चौमर के अनुसार हमारे समाज में महिलाओं को गलत नजर से देखा जाता है. ऐसे में महिलाओं को समाज से लड़ने की जरूरत है. महिलाओं को डरने की जगह मुसीबतों का सामना करने की आवश्यकता है.

अलवर. शहर के हजूरी गेट निवासी उषा चौमर को सोमवार को राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों से पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया. उषा चौमर को वर्ष 2020 में पद्मश्री अवार्ड देने की घोषणा हुई थी, लेकिन उस समय कोरोना के चलते यह सम्मान नहीं दिया गया था.

उषा चौमर ने पद्मश्री अवार्ड पाकर अलवर जिले का मान बढ़ाया है. यह अवार्ड उन्हें स्वच्छता के क्षेत्र में सामाजिक कार्यों के लिए दिया गया. पद्मश्री के लिए उनका चयन स्वच्छता के क्षेत्र में कार्य करने के लिए किया गया था. उषा चौमर बचपन से मैला ढोने का काम करती थी, इसके चलते वर्षों तक वे अछूत की तरह जिदंगी जीने को मजबूर रहीं, लेकिन कुछ साल पहले सुलभ इंटरनेशनल संस्था (Sulabh International Organization) से जुड़ी तो उनकी जिंदगी ही बदल गई.

सुलभ इंटरनेशनल संस्था ने बदला जीवन

उषा ने सुलभ इंटरनेशनल संस्था से जुड़कर समाज में वर्षों से चली आ रही मैला ढोने की प्रथा (manual scavenging) को खत्म करने के लिए काम शुरू किया. समाज की महिलाओं को मैला ढोने के काम से मुक्त करवाने के लिए अनेक सामाजिक कार्य किए. समाज की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें अचार-मुरब्बा आदि का प्रशिक्षण दिया और उनकी जिंदगी में बदलाव लेकर आईं.

पढ़ें- महिला दिवस विशेष : मैला ढोने वाली उषा ने अपने जैसी 150 महिलाओं की जिंदगी 'जन्नत' बना दी

पढ़ें- कौन हैं सिर पर मैला ढोने वाली राजस्थान की ऊषा चौमर...जिन्हें पद्मश्री मिलेगा?

प्रधानमंत्री भी कर चुके हैं सम्मानित

सफाईगिरी के लिए पूर्व में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने भी उन्हें सम्मानित किया था. उषा देश विदेश की यात्रा कर समाज में बदलाव की वाहक बनी. उन्होंने बताया कि जब वे मात्र दस साल की थी तभी से मैला ढोने के लिए जाया करती थी, लेकिन संस्था से जुड़ने के बाद करीब 18 साल से इस कार्य को छोड़ चुकी हैं और दूसरी महिलाओं को भी इस कार्य को छोड़ने के लिए प्रेरित करती हैं.

नरक जैसी जिंदगी थी

उषा के मुताबिक 2003 से पहले उनकी जिंदगी नरक से कम नहीं थी. समाज में मैला ढोने वाले के साथ जो सलूक होता है, वही उनके साथ भी हुआ. लोग उनके साथ छुआछूत करते थे, पास नहीं बैठने देते थे, फेंक कर रुपए देते थे. यहां तक कि प्यास लगने पर भी ऊपर से पानी पिलाया जाता था और मंदिर में भी जाने की मनाही थी. उषा के मुताबिक उस वक्त मन में ख्याल आता था कि क्या जीवन भर यही काम करना होगा, क्या ये काम सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए है ?

इस तरह बदला जीवन

उषा का जीवन सुलभ इंटरनेशनल संस्थान से जुड़कर बदल गया. संस्था से जुड़कर वे आत्मनिर्भर बनी. संस्था में रहकर उनका कद बढ़ता गया. वे दूसरी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने में मदद करने लगीं. स्वयं सहायता समूह बनाकर हाथ से बनने वाले सामान बनाती और उन सामानों को लोगों तक पहुंचाती. इस तरह उन्होंने परिवार का खर्च भी चलाया.

महिलाएं मुश्किलों का सामना मजबूती से करें

उषा चौमर के अनुसार हमारे समाज में महिलाओं को गलत नजर से देखा जाता है. ऐसे में महिलाओं को समाज से लड़ने की जरूरत है. महिलाओं को डरने की जगह मुसीबतों का सामना करने की आवश्यकता है.

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