अलवर. जिले का करणी माता मेला प्रदेश में अपनी खास पहचान रखता (Fair at Karni Mata Temple ) है. इस मेले में अलवर के अलावा आसपास के शहरों और राज्य से लोग भी आते हैं. कोरोना के चलते दो साल तक अलवर में मेला नहीं लगा था. इस साल मेले को लेकर लोगों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है. वहीं, मेले के लिए तैयारियां (Fair preparations in Karni temple) तेजी से चल रही हैं. प्रशासन ने इसके लिए कई बदलाव भी किए हैं. मेले में आने वाले लोगों को परेशानी न हो, उसके लिए प्रवेश के समय में भी बदलाव किया गया है.
अलवर के बाला किला क्षेत्र में करणी माता मंदिर है. यह मंदिर अरावली की वादियों से घिरा हुआ है. साल में दो बार नवरात्रों के समय यहां मेला लगता है. इस बार यहां 26 सितंबर से 4 अक्टूबर तक मेला लगेगा. मेले की तैयारियों को लेकर प्रतापबंध से बाला किला तक सड़क का मरम्मत कार्य, सड़क के किनारे दीवार मरम्मत कार्य सहित प्रशासन की तरफ से अन्य काम कराए जा रहे हैं. मेले के समय पानी की व्यवस्था के लिए टैंकर लगाए जाएंगे. सुरक्षा के लिए मंदिर और उसके आसपास क्षेत्र में सीसीटीवी कैमरे की व्यवस्था रहेगी. इसके अलावा पुलिस बल भी तैनात रहेगा. मेले में गंदगी न हो इसके लिए प्रशासन की तरफ से कई अतिरिक्त इंतजाम किए गए हैं. यह मंदिर वन क्षेत्र में है. इसलिए आम दिनों में लोगों को प्रवेश नहीं दिया जाता है. केवल मंगलवार और शनिवार को हनुमान जी के मंदिर के चलते लोगों को प्रवेश दिया जाता है, तो वहीं मेले में सुबह 5 बजे से रात 8 बजे तक लोग आ जा सकेंगे. मेले के पहले दिन 7 बजे तक लोगों को आने की अनुमति दी थी. लेकिन समितियों और श्रद्धालुओं के कहने पर प्रशासन ने समय में बदलाव किया है. जंगल क्षेत्र में प्रदूषण न हो इसके लिए भी विशेष इंतजाम रहेंगे.
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एडीएम ने अधिकारियों को दिए जरूरी निर्देश: एडीएम सिटी ओपी सहारण ने बताया कि मेले के लिए सभी संबंधित विभागों की एक मीटिंग हो चुकी है. बैठक में सभी अधिकारियों को जरूरी निर्देश दिए गए हैं. मेले के दौरान लोगों को किसी तरह की दिक्कत न हो. इस तरह के इंतजाम किए जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि मेले में जाने के लिए केवल दो पहिया वाहनों की व्यवस्था रहेगी. प्रताप बंध स्थित गेट पर चार पहिया वाहनों को रोक दिया जाएगा. इसके अलावा भंडारे के लिए प्रशासन से अनुमति लेनी होगी. साथ ही मेले में प्रसाद वितरण सहित अन्य व्यवस्थाएं भी प्रशासन की तरफ से की जाएगी.
कई शहरों से आते हैं लोग: करणी माता मेले में अलवर के अलावा जयपुर, गुड़गांव, फरीदाबाद, दिल्ली और मेरठ सहित आसपास शहरों में राज्य से लोग माता के दर्शन के लिए आते हैं. साल में दो बार करने वाला यह मेला अपनी खास पहचान रखता है. यह मंदिर अरावली की वादियों से घिरा हुआ है. इसलिए मंदिर की खूबसूरती लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है.
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मंदिर का इतिहास: 1791 से 1815 तक अलवर के शासक रहे महाराज बख्तावर सिंह के पेट में एक दिन काफी तेज दर्द उठा था. हकीमों और वेदों के इलाज के बाद भी महाराज के पेट का दर्द सही नहीं हुआ. उनकी सेना में शामिल चारण के कहने पर महाराज ने करणी माता का ध्यान किया. इस पर उन्हें महल के कंगूरे पर एक सफेद चील बैठी हुई दिखाई दी. सफेद चील करणी माता का प्रतीक मानी जाती है. सफेद चील के दर्शन करने के बाद महाराज बख्तावर सिंह के पेट का दर्द सही हो गया. उसके बाद महाराज ने इस मंदिर का निर्माण कराया. महाराज बख्तावर सिंह ने देशनोक बीकानेर स्थित करणी माता के मंदिर में चांदी का दरवाजा बनवाकर भेंट किया था. 1985 में रामबाग सैनी आरतियां की ओर से मंदिर जाने के लिए सीढ़ियों का निर्माण कराया गया था. इससे पहले मंदिर जाने के लिए बाला किला मार्ग से केवल कच्चा रास्ता था. मंदिर तक पहुंचने के लिए बाला किला मार्ग के अलावा किशन कुंड मार्ग से भी एक रास्ता है. किशन कुंड मार्ग से करणी माता मंदिर जाने वाला केवल पैदल मार्ग है.