अलवर. कोरोना महामारी में सरकार और प्रशासन लोगों की जान बचाने के लिए हर संभव सुविधाएं उपलब्ध कराने में लगा है. प्रदेश भर से भामाशाह भी लोगों की मदद करने के लिए एकजुट होकर प्रयास करने में लगे हैं तो बिचौलिये और दलाल मरीज और उनके परिजनों का भरपूर फायदा उठा रहे हैं. निजी और सरकारी अस्पतालों में बेड फुल के बोर्ड लगे हुए हैं. ऐसे में दलाल व बिचौलिए मजबूर लोगों को लूट रहे हैं. बेड दिलाने, दवाइयां व इंजेक्शन की व्यवस्था कराने के नाम पर उनसे कई गुना ज्यादा पैसे वसूले जा रहे हैं.
वहीं निजी अस्पताल भी कम नहीं हैं, अगर कोरोना संक्रमित मरीज 3 से 4 दिन भर्ती रहा तो हॉस्पिटल डेढ़-दो लाख तक का बिल बना कर वसूली कर रहे हैं. इसके अलावा जांच के नाम पर भी मरीजों को अतिरिक्त पैसे वसूले जा रहे हैं. सरकार व प्रशासन की सख्ती के बाद भी जिले में खुलेआम 'खेल' चल रहा है.
बेड व ऑक्सीजन के वसूली
अलवर के निजी अस्पताल में सामान्य बेड, कोरोना के मरीजों को 6 से 7 हजार में मिल रहा है. इसके अलावा ऑक्सीजन बेड के लिए मरीजों को 10 हजार रुपए देने पड़ रहे हैं. साथ ही वेंटिलेटर के लिए 15 हजार रुपए से अधिक चार्ज मरीजों के परिजनों को देना पड़ रहा है. इसके अलावा पीपीई किट, मास्क, सैनिटाइजर, हैंड ग्लव्स व डॉक्टर का विजिट चार्ज, खाना, साफ-सफाई सहित कई ऐसे चार्ज हैं, जो मरीजों से वसूले जाते हैं.
कई अस्पतालों पर लग चुके आरोप
अलवर के निजी और सरकारी अस्पतालों में बेड फुल होने के बोर्ड लगे हुए हैं. ऐसे में दलाल मरीजों को बेड दिलाने के नाम पर जमकर लूट रहे हैं. इसके अलावा कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज में काम आने वाली जरूरी दवाएं और रेमडेसीविर जैसे इंजेक्शन की व्यवस्था भी दलाल ब्लैक मार्केटिंग के जरिए कर रहे हैं. इसके लिए मरीज से हजारों रुपए ऐंठे जा रहे हैं. अलवर में कई मामले सामने आ चुके हैं जिसमें मरीज के परिजनों ने निजी अस्पताल पर मरीजों को ज्यादा पैसे वसूलने का आरोप लगाया है.
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कई बार की गई कार्रवाई
मरीज के परिजनों ने कहा कि चार-पांच दिन भर्ती होने पर निजी अस्पताल दो लाख रुपए का बिल बना रहे हैं. इसके अलावा खुलेआम मनमानी कर रही हैं. ड्रग विभाग ने कई ऐसे दलालों को पकड़ा है जो इलाज की व्यवस्था कराने के नाम पर लोगों से पैसे लूट रहे हैं. बढ़ते मामलों व शिकायतों को देखते हुए जिला कलेक्टर ने अलवर जिले में जगह-जगह पर सरकार की तरफ से इलाज की जो दर निर्धारित की गई है, उसके हार्डिंग लगवाए हैं. उसके अलावा अलग-अलग अस्पतालों की जांच पड़ताल भी कराई है. अस्पताल के बाहर घूमने वाले दलालों की तलाश में भी लगातार स्वास्थ्य विभाग की टीम जुटी हुई है.
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प्रशासन कर रहा सख्ती
रेमडेसीविर इंजेक्शन पर प्रशासन का पूरा नियंत्रण है. निजी तौर पर यह इंजेक्शन नहीं मिल रहा है. निजी अस्पताल में भर्ती मरीजों को इंजेक्शन की आवश्यकता है तो उसके लिए एक फॉर्म भर कर अस्पताल को मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय में जमा करना पड़ता है. फार्म के साथ मरीज की जांच रिपोर्ट व इलाज की जानकारी देनी होती है. उसके बाद जिला स्तर पर बनाई गई चार डॉक्टरों की कमेटी यह फैसला करती है कि मरीज को यह इंजेक्शन दिया जाना है या नहीं, लेकिन उसके बाद भी अलवर में इस इंजेक्शन की कालाबाजारी हो रही है.
1300 रुपए के इंजेक्शन के लिए कुछ लोग 10 हजार रुपए से ज्यादा की कीमत वसूल रहे हैं. एक मरीज को 6 इंजेक्शन लगते हैं. इसके अलावा खून पतला करने के लिए जरूरी दवाएं व इंजेक्शन के लिए लोगों को हजारों रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं. क्योंकि कोरोना मरीजों के इलाज में काम आने वाली ये दवाएं बाजार से गायब हैं जिसका फायदा दलाल उठा रहे हैं.