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अलवर: आशा सहयोगिनियों ने कहा- हमसे ज्यादा पैसे तो बाई को मिल जाते हैं, मांगे नहीं मानने तक जारी रखेंगे हड़ताल

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Published : Oct 13, 2020, 7:59 PM IST

अलवर की आशा सहयोगिनी मानदेय बढ़ाने और नियमित करने की मांग को लेकर लगातार हड़ताल पर हैं. मंगलवार को आशा सहयोगिनियों ने जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर मांगे पूरी करने की बात कही. उन्होंने कहा कि 2700 रुपए के मानदेय में उन्हें दो-दो विभागों का काम करना पड़ता है. हमसे ज्यादा पैसे तो बाई को मिल जाते हैं.

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अलवर में आशा सहयोगिनियों की हड़ताल

अलवर. 1 अक्टूबर से हड़ताल कर रही जिले की आशा सहयोगिनी मंगलवार को अपनी मांगों को लेकर फिर से जिला कलेक्टर को ज्ञापन देने पहुंची. आशा सहयोगिनियों ने बताया कि वह महिला बाल विकास विभाग का भी काम करती हैं और साथ में मेडिकल विभाग वाले भी उनसे जबरन काम लेते हैं. कोई भी रिपोर्ट लेनी हो या कोरोना के दौरान सर्वे करना हो, इन्हीं आशा सहयोगिनियों को फील्ड में भेजा जाता है. हालात यह है कि रात को 8 बजे भी यदि कोरोना पेशेंट आ जाए तो इन्हीं आशा सहयोगिनियों को फील्ड में भेज जाता है.

पढ़ें: पुजारी को जिंदा जलाने और मॉब लिचिंग पर बोले गहलोत के मंत्री, राजस्थान बड़ा राज्य इसलिए छोटी-मोटी घटनाएं हो जाती हैं...

आशा सहयोगिनिओं ने बताया कि मात्र 2700 का मानदेय उन्हें मिलता है. जो कि न्यूनतम मजदूरी से भी कम है. इतने पैसे तो घर में काम करने वाली बाई ले लेती है. इन महिलाओं ने बताया कि वह महिला बाल विकास विभाग का भी काम करते हैं और फिर उसके बाद मेडिकल विभाग भी हर काम में उन्हें ही दौड़ाता है. आशा सहयोगिनी ने कहा कि हम मंत्री टीकाराम जूली को भी कुछ दिन पहले ज्ञापन दे चुके हैं, लेकिन हमारी मांगों के ऊपर किसी भी प्रकार से ध्यान नहीं दिया जा रहा है.

आशा सहयोगिनी ज्योति वर्मा ने बताया कि गांव में चाहे कोरोना का मामला हो या मलेरिया या डेंगू का मामला हो इन्हीं ही मौके पर जाना पड़ता है. मेडिकल पूरा काम इनसे लेता है और पैसे भी नहीं देता है. यही नहीं गांव में कार्यरत एएनएम भी उन्हीं पर दबाव बनाती हैं. इन महिलाओं ने कहा कि जब तक उनकी मांगे नहीं मानी जाएंगी, उनकी हड़ताल जारी रहेगी. उनकी मांग है कि उनके नियमित किया जाए और उनका मानदेय बढ़ाया जाए. आशा सहयोगिनी इतने कम मानदेय में अपना घर भी नहीं चला पा रहा हैं.

अलवर. 1 अक्टूबर से हड़ताल कर रही जिले की आशा सहयोगिनी मंगलवार को अपनी मांगों को लेकर फिर से जिला कलेक्टर को ज्ञापन देने पहुंची. आशा सहयोगिनियों ने बताया कि वह महिला बाल विकास विभाग का भी काम करती हैं और साथ में मेडिकल विभाग वाले भी उनसे जबरन काम लेते हैं. कोई भी रिपोर्ट लेनी हो या कोरोना के दौरान सर्वे करना हो, इन्हीं आशा सहयोगिनियों को फील्ड में भेजा जाता है. हालात यह है कि रात को 8 बजे भी यदि कोरोना पेशेंट आ जाए तो इन्हीं आशा सहयोगिनियों को फील्ड में भेज जाता है.

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आशा सहयोगिनिओं ने बताया कि मात्र 2700 का मानदेय उन्हें मिलता है. जो कि न्यूनतम मजदूरी से भी कम है. इतने पैसे तो घर में काम करने वाली बाई ले लेती है. इन महिलाओं ने बताया कि वह महिला बाल विकास विभाग का भी काम करते हैं और फिर उसके बाद मेडिकल विभाग भी हर काम में उन्हें ही दौड़ाता है. आशा सहयोगिनी ने कहा कि हम मंत्री टीकाराम जूली को भी कुछ दिन पहले ज्ञापन दे चुके हैं, लेकिन हमारी मांगों के ऊपर किसी भी प्रकार से ध्यान नहीं दिया जा रहा है.

आशा सहयोगिनी ज्योति वर्मा ने बताया कि गांव में चाहे कोरोना का मामला हो या मलेरिया या डेंगू का मामला हो इन्हीं ही मौके पर जाना पड़ता है. मेडिकल पूरा काम इनसे लेता है और पैसे भी नहीं देता है. यही नहीं गांव में कार्यरत एएनएम भी उन्हीं पर दबाव बनाती हैं. इन महिलाओं ने कहा कि जब तक उनकी मांगे नहीं मानी जाएंगी, उनकी हड़ताल जारी रहेगी. उनकी मांग है कि उनके नियमित किया जाए और उनका मानदेय बढ़ाया जाए. आशा सहयोगिनी इतने कम मानदेय में अपना घर भी नहीं चला पा रहा हैं.

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