अजमेर. स्वस्थ शरीर और बौद्धिक विकास खेल से ही संभव है. शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो बचपन मे खेला-कूदा नहीं होगा. मगर क्या आज बच्चों को खेलने के लिए खेल मैदान मिल पा रहे हैं. जरा सोचिए, बिना खेले बच्चों का भविष्य कैसा होगा. कैसे बच्चे आगे चलकर खेलों में अपना भविष्य सवार पाएंगे. देखिये यह खास रिपोर्ट...
अजमेर में खेल मैदानों के नहीं होने की समस्या शहरों में ही नहीं बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी विकट है. वर्तमान में बच्चों को खेलने के लिए मैदान नहीं मिल रहे. दिनों दिन अजमेर शहर का विस्तार हो रहा है. हर तरफ कॉन्क्रीट के जंगल नजर आ रहे हैं. नई बसावट में कुछ पार्क बने हैं. लेकिन इस बीच सबसे जरूरी चीज को जिम्मेदार ही नहीं शहर की जनता भी भूलती जा रही है.
अजमेर शहर की बात करें तो पटेल स्टेडियम और चंद्रवरदाई स्टेडियम दो बड़े खेल के मैदान हैं. चंद्रवरदाई स्टेडियम हॉकी के लिए है और शहर के एक छोर पर मौजूद है. दूसरे छोर से खिलाड़ी वहां खेलने जाएं यह उसके लिए बहुत ही मुश्किल है. पटेल स्टेडियम शहर के बीच में है. यह ग्राउंड फुटबॉल खिलाड़ियों के लिए बनाया गया था. लेकिन यहां सभी प्रकार की खेल और खिलाड़ी इसका उपयोग करते हैं.
कई खेलों की एकेडमी से जुड़े खिलाड़ी भी यहां अभ्यास करते हैं. इनके अलावा रेलवे के दो ग्राऊंड हैं जहां केवल रेलवे कर्मचारियों और अधिकारियों के परिवार के बच्चों के खेलने की इजाजत है. यदि कोई बाहरी खिलाड़ी यहां खेलना चाहता है तो उसे पैसा देना होता है. मेयो कॉलेज और जीसीए कॉलेज खेल ग्राउंड पर भी आम खिलाड़ियों के लिए नो एंट्री है.
गली, मोहल्ले, कॉलोनियों में खेलने की कोई जगह नही बची है. नई बसावट में पार्क बने हैं लेकिन वहां बच्चे खेल नही सकते. किशनगढ़ से कुछ बच्चे 30 किलोमीटर का सफर कर, किराया खर्च कर खेलने के लिए अजमेर आते हैं. इनका कहना है कि पटेल स्टेडियम एकमात्र खेल मैदान है. लेकिन इसका उपयोग भी 26 जनवरी 15 अगस्त और अन्य समारोह के लिए किया जाता है. इस कारण उनका अभ्यास छूट जाता है.
फुटबॉल में स्टेट टीम के कप्तान रह चुके सुनील रावत बताते हैं कि वह किशनगढ़ से 10 किलोमीटर दूर गांव से अजमेर खेलने आते हैं. क्योंकि खेल मैदान की सुविधा किशनगढ़ में भी नही है. उनका सपना है कि वे भारत के लिए फुटबॉल खेलें. यही पीड़ा अन्य खिलाड़ियों की भी है.
पुराने खिलाड़ी शिव पाराशर बताते हैं कि खेलने की नर्सरी घर के नजदीक खुले मैदान से ही शुरू होती है. अपना अनुभव बताते हुए पाराशर ने कहा कि वर्तमान में सबसे बड़ी विकट समस्या खेल मैदानों को लेकर है. गली मोहल्ले कॉलोनियों में खेल मैदान नहीं हैं. ऐसे में बच्चे खेलने कहां जाए. उन्होंने बताया कि जरूरी नहीं है कि खेलने से खिलाड़ी ही बनना है खेल इसलिए भी जरूरी है कि इससे शारीरिक और मानसिक विकास होता है.
उन्होंने बताया कि कई बार नगर निगम और प्रशासन को खेल मैदानों के लिए जगह देने और मौजूदा खेल मैदानों को खेल के लिए ही रखने के लिए मांग उठाई जा चुकी है लेकिन इस पर जिम्मेदार कोई ध्यान नहीं देते.
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अजमेर फुटबॉल एसोसिएशन के सचिव और फुटबॉल कोच सुधीर जोसफ ने बताया कि शहर में बच्चों के खेलने की जगह नहीं रही है. जो कुछ ग्राउंड बचे हैं वहां बच्चों को खेलने नहीं दिया जाता. कुछ शिक्षण संस्थाओं और रेलवे के खेल मैदान हैं जहां खेलने के लिए पैसा लिया जाता है. उन्होंने बताया कि प्रशासन से खेल मैदानों को संरक्षित करने की मांग रखी गई थी.
स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत तोपदडा क्षेत्र में खेल मैदान में पवेलियन बनाना प्रस्तावित है. ईटीवी भारत में तोपदड़ा मैदान के हालात भी देखे. बड़े-बड़े गड्ढे हर तरफ मलबा और कचरे का ढेर मैदान में जमा हैं. मैदान का कुछ हिसा ठीक है लेकिन वह भी पशुपालकों के उपयोग में आ रहा है.
सुधीर जोसेफ बताते हैं कि बड़े शर्म की बात है कि नसीराबाद ब्यावर किशनगढ़ जैसे बड़े कस्बो में भी खेल के मैदान नहीं हैं. ऐसे में बच्चों के लिए टूर्नामेंट करवाएं तो कहां करवाएं. पटेल स्टेडियम एकमात्र खेल मैदान है जहां सभी खेलों से जुड़े खिलाड़ी आते हैं. ऐसे में यहां फुटबॉल खिलाड़ियों का अभ्यास करना मुश्किल हो जाता है.
घरों में रहकर बच्चों का शारीरिक विकास नहीं हो सकता जब तक कि बच्चे खेलें नहीं. बच्चों से उनके खेल मैदान छीन चुके हैं. शहर में जनसंख्या के हिसाब से खेल मैदान विकसित नहीं किए गए. जिसका खामियाजा न केवल बच्चों को बल्कि खेल में अपना भविष्य देख रहे खिलाड़ियों को भी हो रहा है.