अजमेर. राजस्थान की संस्कृति और ठाठ-बाठ भारत में ही नहीं, पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान रखते हैं. हर जगह से पर्यटक यहां के रंगों से रूबरू होना चाहते हैं. उनमें भी सबसे खास पहचान रखता है पुष्कर.
अंतरराष्ट्रीय पुष्कर मेले का आगाज 4 नवम्बर को विधिवत रूप से होगा. लेकिन पशु मेले के लिए पशुओं के साथ पशुपालक मेला क्षेत्र में अभी से आने लगे हैं. वीरान पड़े धोरों में अब लोक संस्कृति जीवंत होने लगी है. लेकिन अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाले पशु मेले की शुरुआत कैसे हुई, इसे शायद ही कोई जानता होगा. आज हम आपको बताते हैं विश्व प्रसिद्ध पुष्कर मेले का महत्व, सीधे पुष्कर की जमीं से..
तीर्थ राज पुष्कर का धार्मिक महत्व है. पूरे देश में जहां कार्तिक मास को पवित्र और शुभ माना जाता है, वहीं पुष्कर सरोवर में कार्तिक स्नान का काफी महत्व है. सदियों से तीर्थ दर्शन के लिए लोग यहां आते रहे हैं और अपने साथ पशु धन के रूप में पशु भी लाते रहे. इस दौरान पशुओं की खरीद फरोख्त भी शुरू होने लगी. समय के साथ इस सिलसिले ने धीरे-धीरे पशु मेले का रूप ले लिया. वर्तमान में पशु मेले की अंतरराष्ट्रीय पटल पर ख्याति है.
वहीं पर्यटन के अलावा पुष्कर मेले में आए पशु पालकों को मेले से काफी उम्मीदें है. उन्हें लगता है कि इस बार मेले में खरीदार उन्हें उनके पशुओं के दाम अच्छे देंगे. धोरों पर पशुपालकों ने जहां अपने डेरे जमा लिए हैं. वहीं अपने ग्रामीण परिवेश और धोरों पर ही खुले आसमान के नीचे रहकर पशुपालक अपनी और पशुओं की पेट पूजा का इंतजाम करते है. उनका यह परिवेश, गांव का रंग और ढंग ही पर्यटकों को धोरों की ओर खींच लाता है.
जैसलमेर से आए ऊंट पालक हनीफ बताते हैं कि वे कई बार इस पशु मेले में आ चुके हैं. उन्होंने बताया कि अभी पशुओं की खरीद के लिए खरीदार नहीं आए हैं. अपने पशु बेचने के सवाल पर उन्होंने बताया कि पशुओं के लिए वह चारा उपलब्ध नहीं करवा पाते हैं, इसलिए वे अपने सभी पशुओं को बेचने के लिए मेले में आए हैं. उन्हें उम्मीद है कि उनके पशुओं के अच्छे दाम उन्हें मिलेंगे.
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अंतरराष्ट्रीय ख्यातिनाम ऊंट शृंगारक अशोक टांक बताते है कि दीपावली के दो दिन बाद से ही धोरों पर पशुपालकों के डेरे जमने शुरू हो गए थे. पर्यटक मेला क्षेत्र में कैमल सफारी का आनंद भी ले रहे है. राजस्थानी रहन-सहन और ठाठ-बाठ से प्रभावित होकर पर्यटक यहां खींचे चले आते हैं.
पुष्कर मेला अधिकारी डॉ. अजय अरोड़ा बताते है कि वर्षों पहले पशु ही धन होता था. तीर्थ यात्री अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए तीर्थ यात्रा के दौरान पशुओं को खरीदते या बेचते थे. तब से पुष्कर पशु मेले की शुरुआत हुई. पर्यटन की दृष्टि से भी पशु मेले की पहचान विश्व पटल पर हो चुकी है.
देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए पुष्कर पशु मेला हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहा है. धोरों पर पशुओं के साथ सजी लोक संस्कृति की झलक पाने के लिए हर वर्ष सात समंदर पार से विदेशी पावणे भी आते है. इस वक्त पुष्कर की एक अलग ही छटा नजर आती है.