अजमेर: पुष्कर में नाग पहाड़ी और सावित्री माता की पहाड़ी के बीच स्थित है पुरुहूता पर्वत. स्कन्द पुराण में माता का 27वां शक्तिपीठ पुष्कर के पुरुहूता पर्वत पर स्थित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार जब महादेव की पत्नी सती ने सुसराल में अपने पति का अपमान किए जाने से क्रोधित होकर अग्नि में अपनी देह त्यागी. तब महादेव प्रकट हुए और माता सती की देह को हाथ में लेकर रौद्र रूप में वह भटकते रहे. तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती की देह के टुकड़े कर दिए.
सती की देह का टुकड़ा पृथ्वी पर जहां भी गिरा, वह स्थान शक्तिपीठ बन गया. पुष्कर के पुरुहूता पर्वत पर माता सती की दोनों हाथ की कलाइयां गिरी थी. पहाड़ी के ऊपर कलाइयां गिरने से पहाड़ी धस गई. आज भी पुरुहूता पर्वत पर वह स्थान मौजूद है, लेकिन काफी दुर्गम होने के कारण वहां तक नहीं पहुचने की वजह से पुरुहूता पर्वत की तलहटी में माता के मंदिर की स्थापना यहां हुई. इस मंदिर को चामुंडा माता मंदिर के नाम से जाना जाता है.
यह है मान्यता...
मंदिर में महंत दिगंबर ओमेंद्र पुरी बताते हैं कि 27वें शक्तिपीठ बनने के पीछे एक कथा और भी है, जिससे पीठ का महत्व और भी बढ़ जाता है. उन्होंने बताया कि पुष्कर से जगतपिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी. उसके लिए ब्रह्मा ने सृष्टि यज्ञ किया था, लेकिन महादेव के बिना सृष्टि यज्ञ पूरा नहीं हो सकता था. यज्ञ को पूर्ण करवाने के लिए ब्रह्माजी के आह्वान पर महादेव प्रकट हुए.
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यज्ञ का विधान है कि बिना जोड़े के यज्ञ पूर्ण नहीं हो सकता, तब महादेव ने 27वे शक्ति पीठ से माता को स्वरूप दिया. तत्पश्चात सृष्टि यज्ञ हुआ. इस दौरान ही ब्रह्माजी ने गायत्री माता का उद्भव किया. यज्ञ संपन्न हो जाने के बाद माता शक्ति और गायत्री ने सभी देवी-देवताओं से अपने लिए अनुकूल स्थान बताने के लिए कहा. तब पुरुहूता पर्वत पर माता शक्ति के साथ माता गायत्री भी विराजमान हुईं. माता के मंदिरों के स्थान पर भैरव बाबा का मंदिर जरूर होता है यहां भी भैरव नाथ का मंदिर मौजूद है.
तीर्थ गुरु पुष्कर की पवित्र धरा...
जगतपिता ब्रह्मा की नगरी और तीर्थ गुरु पुष्कर की पवित्र धरा में अध्यात्म की खुशबू है. पुष्कर ऋषि मुनियों की तपोस्थली भी रहा है. यही वजह है कि सदियों से पुष्कर हिंदू धर्म के मानने वाले लोगों के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है. यहां बड़ी संख्या में तीर्थ यात्री आते हैं. स्थानीय लोगों को 27वें शक्तिपीठ के बारे में जानकारी है, लेकिन बाहर से आने वाले तीर्थ यात्रियों को शक्तिपीठ के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है.
यह शक्तिपीठ पुष्कर के निकट ग्रामीण क्षेत्र में है. यही वजह है कि देश में अन्य शक्तिपीठों की तरह 27वें शक्तिपीठ पर बने मन्दिर को भव्यता नहीं मिल पाई है. हालांकि, अब शक्तिपीठ के बारे में लोग जानने लगे हैं. ऐसे में शक्तिपीठ पर मन्दिर का विकास भी धीरे-धीरे शुरू हो गया है. स्थानीय ग्रामीण शक्तिपीठ को चामुंडा माता मंदिर के नाम से पुकारते हैं.
हर साल लगता है चामुंडा माता मेला...
नवरात्र के पर्व पर चामुंडा माता का यहां मेला लगता है, जिसमें आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग माता के दर्शनों के लिए आते हैं. कोरोना महामारी की वजह से मंदिर में कम ही लोग दर्शनों के लिए आ रहे हैं.
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स्थानीय लोग बताते हैं कि नवरात्र में यह माता की 9 दिन आराधना करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. कई स्थानीय लोग ऐसे भी हैं, जो सालों से नवरात्र के पर्व पर माता के मंदिर में दर्शनों के लिए आते हैं.