अजमेर. विश्व विख्यात ख्वाजा गरीब नवाज का 808 वां सालाना उर्स जारी है. उर्स के खास मौके पर अपनी अकीदत का नजराना पेश करने के लिए लाखों जायरीन दरगाह में जियारत के लिए आए हैं. दरगाह में रौशनी का वक़्त बहुत ही खास होता है. दरगाह में परंपरागत रस्म के तहत मोमबत्ती से रोशनी की जाती है.
यहां शाम को रौशनी के वक्त की बात ही अलग है. ये वही महसूस कर सकता है जो उस वक्त वहां मौजूद रहता है. बताया जाता है कि दरगाह में रौशनी की परंपरा सदियों पहले उस वक़्त की है, जब विद्युत की व्यवस्था नहीं थी. उस वक्त मोमबत्तियां जलाकर रौशनी की जाती थी. आज भी दरगाह में रौशनी के वक्त मोमबत्तियां जलाई जाती है. इस दौरान सभी के लिए दुआएं की जाती है.
लोग खड़े होकर अपने और अपने परिवार के लिए हाथ उठाकर दुआएं मांगते है. मान्यता है कि रौशनी के वक़्त की गई की गई दुआ ख्वाजा गरीब नवाज जरूर पूरी करते हैं. रौशनी के वक़्त दरगाह में मौजूद जायरीन खुद को खुशनसीब समझते हैं.
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दरगाह में बुजुर्ग खादिम डॉ. सैयद नजमुल हसन चिश्ती बताते हैं कि रौशनी के वक़्त ख्वाजा गरीब नवाज से की गई दुआ कबूल होती है, फिर चाहे व्यक्ति घर पर हो या घर से दूर कही पर भी हो. भोपाल से जियारत करने आई रेशमा खान बताती हैं कि रौशनी के वक़्त की गई दुआ में शामिल होने से उन्हें दिली सुकून मिला है. दिल्ली से आए मोहम्मद नजमूल हसन ने बताया कि ख्वाजा गरीब नवाज की रौशनी कयामत तक रहेगी.
बता दें कि रौशनी के वक़्त दरगाह में खादिम हजरात की ओर से मोमबत्तियां जायरीन के सिर पर लगाई जाती है. उसके बाद मोमबत्तियों को रौशन किया जाता है. उस वक़्त जायरीन में मोमबत्तियों को छूने और सिर पर लगवाने की होड़ मच जाती है.