पुष्कर (अजमेर). धार्मिक नगरी पुष्कर में अपने पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए पिण्डदान करने की मान्यता सदियों से चली आ रही है. पद्मपुराण में उल्लेख किया गया है कि श्राद्ध पक्ष में पिण्डदान करने से व्यक्ति पितृ ऋण से मुक्त होता है. भगवान राम ने भी अपने पिता दशरथ का पुष्कर में श्राद्ध किया था. इसी मान्यता से प्रेरित होकर श्राद्ध पक्ष के पहले दिन देश के कोने-कोने से श्रद्धालु पुष्कर पहुंचे. श्रद्धालुओं ने अपने पूर्वजों की आत्मशांति के लिये पिंडदान और तर्पण किये.
पुष्कर में पूरे साल अलग-अलग तरह के धार्मिक आयोजन चलते रहते हैं लेकिन, श्राद्ध पक्ष के दौरान घाटों पर एक अलग सा नजारा देखने को मिलता है. हर तरफ पिंडो में अपने पूर्वजों की आत्मा को ढूंढते श्रद्धालुओं का सैलाब इस बात का प्रमाण है कि आज के इस आधुनिक युग में भी लोग कहीं ना कहीं अपने इतिहास और संस्कृति से जुड़े हुए हैं.
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पुरोहितों के अनुसार सारे तीर्थो में श्राद्ध करने के बाद भी पुष्कर में श्राद्ध करने से ही प्राणी की आत्मा को शांति मिलती है. पिण्डदान, तर्पण और धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए सुबह से ही सरोवर किनारे दूर -दराज के सैंकड़ों श्रद्धालुओं का तांता लगना शुरू हो गया जो दिन भर जारी रहा.
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राजस्थान के अलावा मध्यप्रदेश, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड सहित विभिन्न राज्यों के श्रद्धालुओं ने श्राद पक्ष के पहले दिन पितृ शान्ति के लिए पिण्डदान,तर्पण और धार्मिक अनुष्ठान किये. प्रतिप्रदा से शुरू हुआ ये दौर अमावस्या तक जारी रहेगा.