अजमेर. महाशय धर्मपाल गुलाटी आर्य समाज को खुले हाथों से दान दिया करते थे. आर्य समाज के लोग तो यहां तक बताते हैं कि महाशय ने अजमेर में तांगा तक चलाया है. महाशय अजमेर में पत्रकारों से साल 2010 में कहा था कि कभी पैसों के पीछे मत भागो, केवल इमानदारी से अपना काम करिए. पैसा स्वयं आपके पीछे आएगा. वह विभाजन के दौरान पाकिस्तान से भारत आए थे और यहां आकर उन्होंने इतनी मेहनत किया कि देश भर में उनकी मसालों की लगभग 15 फैक्ट्रियां हैं.
उन्होंने यह भी कहा कि अगर वह उनके मसालों का विज्ञापन किसी प्रसिद्ध अभिनेता से भी करवाए तो वो भी उसके बारे में इतना अच्छे से नहीं बता सकता, जितना बखूबी वो बताते हैं. इसके साथ ही वो इस विज्ञापन को करने के लाखों करोड़ों रुपए भी लेंगे. महाशय ने अजमेर में आर्य समाज के लिए लाखों रुपए की राशि दान की. उन्होंने अपनी मां की स्मृति में चमार घाटी स्थित ऋषि उद्यान में गौशाला का निर्माण भी करवाया. जहां उनकी मां और पिता के नाम से गौशाला ऋषि उद्यान में संचालित है. जहां गायों का ध्यान रखा जाता है.
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डॉक्टर गोपाल बाहेती ने बताया कि महाशय का एक सपना था कि महर्षि दयानंद सरस्वती की विशाल प्रतिमा अजमेर में लगाई जाए, जिससे कि अजमेर में प्रवेश करते ही प्रतिमा नजर आए. उसके लिए भी उन्होंने प्रयास शुरू करवा दिए थे. वो संभवत ही पूरा भी हो जाता, लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते वह अधूरा रह गया.
करोड़ों रुपए निर्वाण स्थली कि लिए दिए दान
महाशय ने अजमेर के जयपुर रोड स्थित स्वामी दयानंद की निर्वाण स्थली भिनाय कोठी और ऋषि घाटी स्वामी दयानंद के उत्तराधिकारी संस्था परोपकारिणी सभा को विकास कार्यों के लिए करोड़ों रुपए का दान भी दिया है. इन दोनों स्थानों का विकास धर्मपाल की वजह से ही हुआ है. परोपकारिणी सभा के प्रमुख धर्मवीर आर्य की माने तो महाशय का उनसे काफी स्नेह रहा है. निर्वाण स्थली पर स्वामी दयानंद की वस्तुएं संरक्षित रहें और आर्य समाज के सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार हमेशा होता रहे. इसके लिए महर्षि दयानंद स्मारक ट्रस्ट को दिल खोलकर उनके द्वारा दान भी दिया गया है.