अजमेर. राजस्थान अपने ऐतिहासिक किलों और धार्मिक स्थलों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है. यहां की संस्कृति बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है. राज्य के अजमेर जिले को धार्मिक नगरी के नाम से भी जाना जाता है. यहां कई दर्शनीय मंदिर हैं. इन्ही में से एक है, घसेटी बाजार में स्थित भगवान रघुनाथ जी का प्राचीन मंदिर है. बताया जाता है कि अजमेर में चौहान शासन के वक्त मन्दिर का निर्माण हुआ था. बाद में मराठाओ के अजमेर में शासन के दौरान मन्दिर को भव्य रूप दिया गया.
मन्दिर में राम, सीता, लखन और हनुमान की प्राचीन प्रतिमा विराजमान है. मन्दिर प्रबंधन के पास डेढ़ सौ बरस पहले तक के साक्ष्य इतिहास के रूप में है, लेकिन क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि मंदिर सदियों पुराना है. करीब ढाई सौ वर्षो से विजयदशमी के दिन मंदिर से रेवाड़ी निकालने की परंपरा रही है. लेकिन इस साल कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते विजयदशमी के दिन ढाई सौ बरस पुरानी रेवाड़ी निकालने की परंपरा टूटने जा रही है. इस साल ना भगवान रघुनाथ जी मंदिर से निकलेंगे और ना ही रावण का वध होगा.
विजयदशमी पर होता है भव्य रावण दहन
मंदिर का प्रबंधन अग्रवाल पंचायत घसेटी धड़ा संभालता है. मन्दिर के प्रबंधक मुकेश चौधरी ने बताते हैं कि अजमेर में रावण की बगीची में एक ही जगह रावण दहन होता था. जहां विजयदशमी के दिन रघुनाथ मंदिर से भव्य रेवाड़ी धूमधाम से निकला करती थी. वहीं रावण वध करने के बाद भगवान रघुनाथ जी की रेवाड़ी धूमधाम देर रात तक लौट जाती थी.
दर्शन के लिए जुटती है भारी भीड़
हजारों लोग श्रद्धा के साथ भगवान रघुनाथ जी की रेवाड़ी के दर्शनों के लिए जुटा करते थे. उसके बाद तत्कालीन नगर परिषद के चेयरमैन वीर कुमार के समय से ही रेवाड़ी का मार्ग बदल दिया गया. नगर परिषद की ओर से रावण दहन का कार्यक्रम आयोजित होने लगा और नगर निगम के आग्रह से भगवान श्री रघुनाथ जी की रेवाड़ी पटेल स्टेडियम हर विजयदशमी के दिन जाने लगी थी.
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मन्दिर प्रबंधक मुकेश चौधरी बताते हैं कि मंदिर से भगवान श्री रघुनाथ जी की रेवाड़ी एक प्रकार से सेना के रूप में पटेल स्टेडियम पहुंची थी. जहां लंका दहन के बाद कुंभकरण मेघनाथ और रावण का वध किया जाता है. रावण दहन के पश्चात भगवान श्री रघुनाथ जी की रेवाड़ी शानों शौकत के साथ वापस मंदिर लौट जाती है.
नहीं होगा राम और रावण का युद्ध
उन्होंने बताया कि सालों से यह परंपरा चली आ रही है, लेकिन इस बार कोरोना महामारी को देखते हुए राज्य सरकार के निर्देशों की पालना के तहत रेवाड़ी नहीं निकाली जाएगी. उन्होंने बताया कि भगवान श्री रघुनाथ जी की रेवाड़ी नहीं निकलेगी, तो राम और रावण का युद्ध नहीं होगा और युद्ध नहीं हुआ तो रावण का वध भी इस बार नहीं होगा. मंदिर के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा, जब रेवाड़ी की परंपरा इस विजयदशमी पर टूट जाएगी.
मंदिर प्रबंधन समिति के संयुक्त सचिव सुरेश गोयल ने बताया कि वर्षों से चली आ रही रेवाड़ी की परंपरा के साथ लोगों की भावना और श्रद्धा जुड़ी हुई है. धर्म परायण लोग चाहते हैं कि यह परंपरा ना टूटे. इसका कोई हल जरूर निकालना चाहिए.
प्रशासन निकाले कोई रास्ता
गोयल ने बताया कि सरकार और प्रशासन अगर भगवान श्री रघुनाथ की रेवाड़ी की अनुमति नहीं देता है, तो समिति की ओर से यह कोशिश रहेगी कि लोगों की आस्था और भावना को ध्यान में रखते हुए प्रतीकात्मक रूप से रेवाड़ी भी निकले और रावण दहन की हो जाए.
भगवान श्री रघुनाथ मंदिर से अजमेर शहर में दो बड़े भव्य धार्मिक आयोजन होते हैं, इनमें गणगौर और दूसरा दशहरे पर निकलने वाली रेवाड़ी है. यही वजह है कि सदियों से लोगों की पीढ़ी दर पीढ़ी भगवान श्री रघुनाथ मंदिर में गहरी आस्था है. लोग चाहते हैं कि कोरोना गाइडलाइन की पालना भी हो जाए और वर्षों पुरानी रेवाड़ी की परंपरा भी ना टूटे.
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सदियों से चली आ रही रेवाड़ी की परंपरा अजमेर की संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है. अजमेर के प्राचीन मंदिरों में से एक भगवान श्री रघुनाथ मंदिर में लोगों की गहरी आस्था है. साथ ही भगवान की रेवाड़ी के दर्शनों के लिए लोग साल भर इंतजार करते हैं. सदियों से चली आ रही परंपरा के प्रति लोगों की भावना है कि यह परंपरा ना टूटे.