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कोरोना का असर : अजमेर का सुप्रसिद्ध लालया कालया का मेला दूसरे वर्ष भी नहीं भर सका

कोरोना महामारी के चलते अजमेर में प्रसिद्ध लालया कालया का मेला इस बार भी नहीं भर सका. भगवान नृसिंह की जयंती के पावन अवसर पर नया बाजार में 150 वर्षों से मेले की परंपरा रही है. खास बात यह कि दो वर्षों से लोग मेले में लालया के सोटे का प्रसाद और भगवान नृसिंह जयंती पर मंदिर में दर्शनों के लिए तरस गए है.

लालया कालया मेला, ajmer news
कोरोना महामारी के कारण इस साल नहीं भर सका लालया कालया का मेला
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Published : May 25, 2021, 3:51 PM IST

अजमेर. कोरोना महामारी ने आमजन के जीवन को ही नहीं बल्कि जीवन में उत्साह और उमंग भरने वाले त्योहारों पर भी असर डाला है. अजमेर शहर के बीच नया बाजार में भगवान श्री नृसिंह की जयंती के अवसर पर खामोशी है. कोरोना महामारी की वजह से लगे लॉक डाउन की वजह से सुप्रसिद्ध लालया कालया का मेला दो वर्षों से नही भर पा रहा है. जबकि यही नया बाजार में आज के दिन पैर रखने की भी जगह नहीं होती थी. सड़क के दोनों और इमारतों पर लोगों की भीड़ लगी रहती थी. श्रदालु की कोशिश रहती थी कि मेले का एक भी नजारा आंखों से ओझल ना हो जाए.

कोरोना महामारी के कारण इस साल नहीं भर सका लालया कालया का मेला

साथ ही लालया का सोटा प्रसाद के रूप में मिल जाए. यहां बता दे कि सोटा कोई खाद्य पदार्थ नही है. बल्कि लालया के घोटे का प्रहार है. इस प्रहार को अपने शरीर पर खाने के लिए लोग आतुर रहते है. मान्यता है कि लालया से मिला सोटे का प्रसाद आशीर्वाद माना जाता है. यानी जिसके लालया का सोटा पड़ गया समझो उसे भगवान नृसिंह का आशीर्वाद मिल गया. जबकि कालया के सोटे से लोग बचने की कोशिश करते है. हजारों लोगों की उपस्थिति में स्वांग के तीन किरदार लोगों का मनोरंजन भी करते है. अब जरा तीसरे किरदार के बारे में भी आपको बता दें कि वो नकटी है. मेले में लोग नकटी को छेड़ते है और वह भी छेड़ने वालों के पीछे मारने के लिए दौड़ती है.

क्षेत्रवासी राजेन्द्र सिंह गहलोत बताते है कि उनकी उम्र 60 वर्ष हो चुकी है बचपन से वह लाल्या काल्या का मेला देखते आए हैं. इस मेले को लेकर लोगों में बेसब्री से इंतजार रहता है. उन्होंने बताया कि भगवान नृसिंह का अवतार खंबा फाड़ कर बाहर निकलता है और भक्त प्रहलाद को बचाकर दानव हिरण्यकश्यप का अंत करता है. सांकेतिक रूप से खंबा कागज का बनाया जाता है. लोग खंभे का कागज लेने के लिए भी उतारु रहते हैं. गहलोत ने बताया कि कोराना महामारी के कारण गत वर्ष बीत लॉकडाउन की वजह से मेला नहीं भर पाया.

पढ़ें- चक्रवात में बदला 'यास' तूफान : नौतपा के बीच राजस्थान में कितना रहेगा असर, जानें

लाल्या काल्या का मेला बहुत ही शुभ माना जाता है. दूरदराज से लोग मेले को देखने के लिए नया बाजार में जुटते है. मेले को लेकर युवाओं और बच्चों में जबरदस्त उत्साह रहता है. मगर कोरोना महामारी ने 150 वर्ष पुरानी मेले की परंपरा को बाधित कर दिया है. अब केवल भगवान श्री नृसिंह की प्रतिमा की विधिवत पूजा की जाती है और उनका श्रंगार होता है. सोशल मीडिया के माध्यम से लोग श्रंगार के दर्शन कर लेते हैं.

वैश्विक कोरोना महामारी का दौर थमा नही है लोग भी चाहते है कि दुनिया से कोरोना चला जाए और उल्लास और उमंग के प्रतीक धार्मिक मेलों से अपने जीवन को उत्साहित बना सकें.

अजमेर. कोरोना महामारी ने आमजन के जीवन को ही नहीं बल्कि जीवन में उत्साह और उमंग भरने वाले त्योहारों पर भी असर डाला है. अजमेर शहर के बीच नया बाजार में भगवान श्री नृसिंह की जयंती के अवसर पर खामोशी है. कोरोना महामारी की वजह से लगे लॉक डाउन की वजह से सुप्रसिद्ध लालया कालया का मेला दो वर्षों से नही भर पा रहा है. जबकि यही नया बाजार में आज के दिन पैर रखने की भी जगह नहीं होती थी. सड़क के दोनों और इमारतों पर लोगों की भीड़ लगी रहती थी. श्रदालु की कोशिश रहती थी कि मेले का एक भी नजारा आंखों से ओझल ना हो जाए.

कोरोना महामारी के कारण इस साल नहीं भर सका लालया कालया का मेला

साथ ही लालया का सोटा प्रसाद के रूप में मिल जाए. यहां बता दे कि सोटा कोई खाद्य पदार्थ नही है. बल्कि लालया के घोटे का प्रहार है. इस प्रहार को अपने शरीर पर खाने के लिए लोग आतुर रहते है. मान्यता है कि लालया से मिला सोटे का प्रसाद आशीर्वाद माना जाता है. यानी जिसके लालया का सोटा पड़ गया समझो उसे भगवान नृसिंह का आशीर्वाद मिल गया. जबकि कालया के सोटे से लोग बचने की कोशिश करते है. हजारों लोगों की उपस्थिति में स्वांग के तीन किरदार लोगों का मनोरंजन भी करते है. अब जरा तीसरे किरदार के बारे में भी आपको बता दें कि वो नकटी है. मेले में लोग नकटी को छेड़ते है और वह भी छेड़ने वालों के पीछे मारने के लिए दौड़ती है.

क्षेत्रवासी राजेन्द्र सिंह गहलोत बताते है कि उनकी उम्र 60 वर्ष हो चुकी है बचपन से वह लाल्या काल्या का मेला देखते आए हैं. इस मेले को लेकर लोगों में बेसब्री से इंतजार रहता है. उन्होंने बताया कि भगवान नृसिंह का अवतार खंबा फाड़ कर बाहर निकलता है और भक्त प्रहलाद को बचाकर दानव हिरण्यकश्यप का अंत करता है. सांकेतिक रूप से खंबा कागज का बनाया जाता है. लोग खंभे का कागज लेने के लिए भी उतारु रहते हैं. गहलोत ने बताया कि कोराना महामारी के कारण गत वर्ष बीत लॉकडाउन की वजह से मेला नहीं भर पाया.

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लाल्या काल्या का मेला बहुत ही शुभ माना जाता है. दूरदराज से लोग मेले को देखने के लिए नया बाजार में जुटते है. मेले को लेकर युवाओं और बच्चों में जबरदस्त उत्साह रहता है. मगर कोरोना महामारी ने 150 वर्ष पुरानी मेले की परंपरा को बाधित कर दिया है. अब केवल भगवान श्री नृसिंह की प्रतिमा की विधिवत पूजा की जाती है और उनका श्रंगार होता है. सोशल मीडिया के माध्यम से लोग श्रंगार के दर्शन कर लेते हैं.

वैश्विक कोरोना महामारी का दौर थमा नही है लोग भी चाहते है कि दुनिया से कोरोना चला जाए और उल्लास और उमंग के प्रतीक धार्मिक मेलों से अपने जीवन को उत्साहित बना सकें.

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