अजमेर: राजपूताना में अजमेर (Ajmer), अंग्रेजों की छावनी हुआ करती थी, लेकिन धीरे-धीरे अजमेर केंद्र शासित प्रदेश बन गया था. यही वजह है कि अजमेर (Ajmer) नरम और गरम दल (Moderates And Extremists) के नेताओं का गढ़ बनकर उभर रहा था. यहां पर होने वाली हर गतिविधियों के समाचार पूरे देश तक पहुंचते थे. यही वजह है कि महात्मा गांधी ने भी अजमेर का तीन बार दौरा (Bapu Visited Ajmer Thrice)किया.
हरिजन उद्धार का मंत्र
अजमेर की तीन में से बापू (Gandhi in Ajmer) की सबसे अंतिम यात्रा महत्वपूर्ण रही. इस यात्रा के दौरान उन्होंने हरिजन उद्धार (Harijan Upliftment) के कार्यों को आगे बढ़ाया और गैर हरिजन लोगों से भी हरिजनों को शिक्षा और नौकरियों एवं व्यवसाय में समान अवसर देने का आह्वान किया.
अपनी तीसरी यात्रा के दौरान महात्मा गांधी उन स्कूलों में भी गए जो उनके हरिजनों उत्थान (Harijan Upliftment) कार्यों से प्रेरित होकर खोली गई थी. इसके अलावा महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने मालूसर स्थित हरिजन बस्तियों का दौरा भी किया. वहीं, हरिजन समाज के लोगों में छोटे-छोटे सुधार कर जीवन में बड़े बदलाव आने की उम्मीद भी पैदा की.
ईटीवी भारत से साझा किए संस्मरण
महात्मा गांधी के अजमेर की तीन यात्राओं (Gandhi in Ajmer) के बारे में कुछ इतिहासकारों ने लिखा भी है. इनमे अजमेर में ही जन्मे इतिहासकार एमडीएस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त डॉ. टीके माथुर ने महात्मा गांधी की अजमेर की तीनों यात्राओं (Bapu Visited Ajmer Thrice) पर शोध किया है. ईटीवी भारत से डॉ टीके माथुर ने महात्मा गांधी की अजमेर (Gandhi in Ajmer) से जुड़ी तीनों यात्राओं से जुड़े संस्मरण बताए. 1920 के दशक के बाद महात्मा गांधी की 3 से 4 वर्षों के अंतराल में तीन यात्राएं (Bapu Visited Ajmer Thrice) हुई.
पहली यात्रा नहीं थी ज्यादा लंबी
बापू की पहली यात्रा अक्टूबर 1922 में हुई, लेकिन यह यात्रा लंबी नहीं रही. उस दौरान अहमदाबाद में कांग्रेस का अधिवेशन (Congress Session) होने जा रहा था और उन्हें उस अधिवेशन में पहुंचना था. हालांकि इस छोटी सी यात्रा के दौरान भी उन्होंने स्थानीय कांग्रेस के नेताओं से मुलाकात की थी. तब महात्मा गांधी ने कहा था कि अजमेर सभी मजहब और धर्मों कि तीर्थ नगरी है. यहां हिंदू मुसलमान ही नहीं सभी धर्मों के लोग श्रद्धा के साथ आते हैं.
दूसरी यात्रा में दरगाह जियारत भी की थी
क्रांतिकारी कुमारानन्द के बुलावे पर महात्मा गांधी 8 मार्च 1922 को अजमेर दूसरी बार आए थे. कुमारानंद उस वक्त के किसान और मजदूरों के नेता (Labor Union Leader) थे. रेलवे स्टेशन पर महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) का कुमारानंद और स्थानीय कांग्रेस के नेताओं ने भव्य स्वागत किया था. इसके बाद महात्मा गांधी कचहरी रोड स्थित फूल बाग बिल्डिंग में ठहरे थे. यह बिल्डिंग महात्मा गांधी के मित्र गौरी शंकर भार्गव की थी. उन्होंने अजमेर शरीफ (Ajmer Sharif) में जियारत भी की थी.
विवाद को अहिंसा से सुलझाने का दिया सुझाव
महात्मा गांधी के अजमेर आगमन से दरगाह क्षेत्र में भी हलचल हो गई थी. उन दिनों दरगाह में धर्म गुरुओं के दो पक्षों के बीच विवाद चल रहा था. दोनों पक्षों ने तय किया था कि महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi)से मुलाकात करके विवाद को सुलझाएंगे. दोनों पक्ष महात्मा गांधी से मिले भी थे. तब महात्मा गांधी ने दोनों को अहिंसा के मार्ग पर चलकर अपना विवाद सुलझाने का सुझाव दिया था.
तब कुछ युवाओं ने कहा था कि इंसाफ के लिए तलवार भी उठानी पड़े तो उठाएंगे. महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने उन युवाओं को कहा था कि मेरा जीवन अहिंसा (Non-Violence) को समर्पित है. दुनिया में सारी समस्याओं का समाधान अहिंसा से हो सकता है. इस दौरान वे अजमेर की सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह भी गए थे, लेकिन यहां उन्होंने विवाद या अन्य किसी राजनीतिक मुद्दों से बोलने से साफ इनकार कर दिया.
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मुझे पोस्टकार्ड पर जरूर लिखते रहिएगा...
दरगाह से वापसी के दौरान दोनों पक्षों के कई धर्मगुरु उनसे इतने प्रभावित हुए कि वह उनके पीछे-पीछे चलने लगे और उन्होंने बापू (Mahatma Gandhi) से कहा कि आप जहां कहेंगे हम चलने के लिए तैयार हैं. तब महात्मा गांधी ने उन्हें कहा था कि आपका कार्य दरगाह में सेवा करना है, आप सेवा कीजिए लेकिन मुझे पोस्टकार्ड पर जरूर लिखते रहिएगा.
बता दें कि महात्मा गांधी को पोस्टकार्ड लिखना बेहद पसंद था. तब मौलाना हसरत मोइनी ने महात्मा गांधी से कहा था कि वह अहिंसा के सिद्धांत (Doctrine Of Non-Violence) का अजमेर में जगह-जगह जाकर प्रचार करूंगा. इस घटना के बाद महात्मा गांधी ट्रेन के जरिए अहमदाबाद निकल गए और वहां पहुंचते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
उस वक्त अजमेर के चीफ कमिश्नर ने ब्रिटिश सरकार को लिखा था कि यदि महात्मा गांधी को अजमेर में गिरफ्तार किया जाता है तो यहां दंगे भड़कने की पूरी उम्मीद है. बता दें कि उस वक्त अजमेर गरम और नरम दल के क्रांतिकारियों का गढ़ हुआ करता था. नरम और गरम दल से जुड़े क्रांतिकारी महात्मा गांधी का सम्मान करते थे.
हरिजन बस्तियों में जाकर लोगों से मिले थे बापू
डॉ. टीके माथुर बताते हैं कि महात्मा गांधी का सबसे महत्वपूर्ण अजमेर दौरा सन 1935 में हुआ. 10 वर्ष के अंतराल के बाद महात्मा गांधी फिर से अजमेर आए थे. इन 10 वर्षों के बीच महात्मा गांधी हरिजन उत्थान (Harijan Upliftment) के कार्य में लग गए थे. तब उन्होंने हरिजन उद्धार (Harijan Upliftment) के लिए 9 महीने तक देश के कई प्रमुख शहरों की यात्राएं की थी. उन शहरों में से एक यात्रा अजमेर की भी थी.
5 जुलाई 1935 को महात्मा गांधी ट्रेन से अजमेर आए, लेकिन उनकी ट्रेन काफी लेट हो चुकी थी. देर रात तक उनके चाहने वाले रेलवे स्टेशन पर रुके रहे. इस बार महात्मा गांधी को हरिजन सेवा संघ ने आमंत्रित किया था. महात्मा गांधी के अजमेर आने के बाद उनका यहां का कार्यक्रम दीवान बहादुर हरबिलास शारदा ने तय किया था.
उस दौरान स्थानीय कांग्रेस के नेताओं से महात्मा गांधी ने सवाल किया था कि हरिजन उत्थान (Harijan Upliftment) के लिए आप क्या कर रहे हो. महात्मा गांधी ने हरिजन समाज की बालिकाओं के लिए खोले गए स्कूल पर जाने के लिए कहा था. तब श्रीनगर रोड स्थित पन्नालाल महेश्वरी के घर महात्मा गांधी गए.
बता दें कि पन्नालाल महेश्वरी ने महात्मा गांधी के हरिजन उत्थान (Harijan Upliftment) के कार्यों से प्रेरित होकर एक स्कूल खोला था, जिसमें हरिजन समाज की बालिकाएं शिक्षा ग्रहण करती थी. 6 जुलाई 1935 को महात्मा गांधी ने स्कूल जाकर देखा और पन्नालाल महेश्वरी को कहा कि इस स्कूल को तुम मैट्रिक स्तर तक बनाओ. महात्मा गांधी ने उस स्कूल में खाना भी खाया था. इसके बाद बापू नया बाजार स्थित एक और बालिका स्कूल गए गए थे.
कांग्रेस नेताओं ने एक सभा के लिए किया था आग्रह
अजमेर यात्रा (Gandhi In Ajmer) के दौरान कांग्रेसी नेताओं ने महात्मा गांधी से एक सभा के लिए भी आग्रह किया था. सभा का विषय 'विविध भाषा और धर्मों के बीच एक साथ कैसे जिया जाए' था. तब महात्मा गांधी ने कहा कि अगर इंसान के मन में दया है तो वह सब मजहब और धर्मों से ऊपर है. उन्होंने कहा कि यह मैं नहीं कहता, यह तुलसीदास ने लिखा है. अजमेर यात्रा (Bapu Ki Ajmer Yatra) के दौरान उन्होंने हरिजन समाज के नेताओं से भी मुलाकात की और उनसे उनकी समस्याओं के बारे में चर्चा की. तब गांधी ने उनसे कहा था कि छोटी-छोटी चीजों में सुधार करके ही जीवन में बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं. हरिजन समाज के नेताओं के साथ महात्मा गांधी ने मलूसर एवं देहली गेट स्थित हरिजन बस्तीयों का भी दौरा किया और बस्तियों में रहने वाले लोगों से बातचीत की.
महात्मा गांधी ने यह भी कहा कि हरिजन समाज में शिक्षा और उनकी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए बढ़ावा दिया जाए. बताया जाता है कि सन 1926 से 1935 तक महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के प्रयासों से ही राजस्थान के कई शहरों में स्कूलें खोली गई थी. हरिजन समाज के बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने और गैर हरिजन लोगों के समान ही हरिजन समाज के लोगों को भी नौकरियां एवं व्यवसाय में समान अवसर देने के लिए महात्मा गांधी ने कहा था.
अजमेर और ब्यावर में हुआ था विरोध
महात्मा गांधी के हरिजन उद्धार (Harijan Upliftment) के कार्यों में जुटे होने से कई लोगों में उनके प्रति नाराजगी भी थी. डॉ टीके माथुर बताते हैं कि महात्मा गांधी आनासागर झील की खूबसूरती से काफी प्रभावित हुए. झील को देखने के लिए वह वहां गए तो बड़ी संख्या में लोग उन्हें सुनने के लिए वहां भी पहुंच गए. इस दौरान बाबा लाल नाथ ने महात्मा गांधी के हरिजन उद्धार को लेकर किए जा रहे कार्य के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर की और उन्हें काले झंडे दिखाए.
महात्मा गांधी ने विनम्र भाव से बाबा लाल नाथ को मंच पर आकर बैठने के लिए कहा, लेकिन बाबा लाल नाथ नहीं माने और कहा कि महात्मा गांधी जहां-जहां जाएंगे वहां-वहां वे उन्हें काले झंडे दिखाएंगे. इस बात से उपस्थित महात्मा गांधी के कई समर्थक उद्वेलित हो गए और उन्होंने डंडों से बाबा लाल नाथ की पिटाई कर डाली.
इस घटना से महात्मा गांधी काफी नाराज हुए. बापू ने कहा कि विरोध करना उसका अधिकार था लेकिन मैं हिंसा (Violence) के पक्ष में नहीं हूं. महात्मा गांधी वहां से चले गए. इसके बाद महात्मा गांधी ने उन दिनों बीमार चल रहे क्रांतिकारी अर्जुन लाल सेठी से मदार गेट स्थित उनके निवास पर जाकर मुलाकात की.
इसी दिन महात्मा गांधी ब्यावर के लिए रवाना हो गए, लेकिन यहां भी पंडित चंद्रशेखर नाम के एक व्यक्ति ने महात्मा गांधी का विरोध किया. ब्यावर में मिशन कंपाउंड में महात्मा गांधी की सभा हुई. इस दौरान महात्मा गांधी ने ब्यावर में हुए एक विधवा के पुनर्विवाह को लेकर प्रसन्नता जाहिर की. साथ ही इस प्रकार के कार्यों को आगे बढ़ाने का आह्वान किया.
सभा में महात्मा गांधी ने हरिजन उद्धार (Harijan Upliftment) कार्यों के लिए सहयोग राशि जमा करने की भी लोगों से अपील की थी. ब्यावर यात्रा के दौरान ही महात्मा गांधी ने जैन संतों (Jain Saints) से भी मुलाकात की. इन संतों में संत लक्ष्मी ऋषि महात्मा गांधी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने महात्मा गांधी के साथ ही रहने का निश्चय कर लिया.
बताया जाता है कि महात्मा गांधी के अंतिम दिनों तक संत लक्ष्मी ऋषि उनके साथ ही थे. महात्मा गांधी जब लौटने लगे तो उन्हें ब्यावर के लोगों से जुटाई 1172 रुपए की राशि दी गई. इसके बाद महात्मा गांधी दोबारा अजमेर (Bapu Ki Ajmer Yatra) कभी नहीं आए, लेकिन इसके बाद दो बार महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा अजमेर निजी यात्रा पर आईं थी.
अजमेर की तीन यात्राओं के अलावा एक गुप्त यात्रा भी थी
प्रमाणित तौर पर महात्मा गांधी की तीन बार अजमेर यात्रा (Bapu Ki Ajmer Yatra) हुई है. लेकिन बताया जाता है कि सन 1930 में भी महात्मा गांधी अजमेर आए थे. यह यात्रा पर उनकी काफी गोपनीय थी. इस यात्रा के बारे में स्थानीय कांग्रेस के नेताओं को भी भनक नहीं थी. केवल उनके करीबी ही इस यात्रा के बारे में जानते थे.
रात्रि को शहर की तंग गलियों से गुजरते हुए महात्मा गांधी रास्ता भटक गए थे और नोहरे में पहुंच गए. तब उनके प्रशंसक ने उन्हें पहचान लिया और महात्मा गांधी रात उसी प्रशंसक के घर रुके. यह प्रशंसक नेमीचंद सोगानी (Nemichand Sogani) थे.
इसके बाद सुबह जल्दी ही महात्मा गांधी नेमीचंद सोगानी के घर से रवाना हो गए, लेकिन जाने से पहले उन्होंने सोगानी को कहा कि वह उनके अजमेर में होने का (Bapu Ki Ajmer Yatra) जिक्र किसी से न करें. बताया जाता है कि महात्मा गांधी क्रांतिकारी अर्जुन लाल सेठी से मिलने अजमेर आए थे. उस वक्त क्रांतिकारी अर्जुन लाल सेठी ने अजमेर में शरण लेते हुए अपने क्रांतिकारी गतिविधियों से अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था.