अजमेर. कोरोना की दूसरी लहर में इतनी मौतें हुईं कि श्मशान घाट में भी लोगों को अंतिम संस्कार के लिए इंतजार करना पड़ा. लंबी वेटिंग के बाद भी अजमेर के गैस शवदाह गृह में करीब ढाई महीने में सिर्फ 6 शवों का ही अंतिम संस्कार किया गया है. ईटीवी भारत ने श्मशानों के हालात और शवदाह गृह पर पड़ताल की तो यह भी सामने आया कि राशि स्वीकृत होने के बाद भी अजमेर विकास प्राधिकरण पहाड़गंज श्मशान में विद्युत संचालित शवदाह गृह नहीं बना पाया. नगर निगम और भामाशाहों के बूते कोरोना से मरने वालों को सम्मानजनक अंतिम विदाई मिल रही है.
गैस शवदाह गृह नहीं जा रहे लोग?
अजमेर शहर में छोटे-बड़े करीब 15 श्मशान हैं. लेकिन गैस शवदाह गृह पुष्कर रोड स्थित मोक्षधाम पर ही मौजूद है. यह एलपीजी गैस सिलेंडर से संचालित होता है. नगर निगम की ओर से गैस शवदाह गृह में अंतिम संस्कार पूरी तरह से नि:शुल्क है. लेकिन 5 मार्च से लेकर अबतक शवदाह गृह में सिर्फ 6 शवों का ही अंतिम संस्कार किया गया है.
लकड़ी से अंतिम संस्कार को ही प्राथमिकता
नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी रुपाराम चौधरी बताते हैं कि लोगों को नि:शुल्क लकड़ियां और अंतिम संस्कार का सामान मिलने की वजह से लोग शवदाह गृह में शव का अंतिम संस्कार नहीं चाहते हैं. हालांकि नगर निगम की ओर से परिजनों को समझाया भी जाता है. चौधरी ने बताया कि पहाड़गंज में विद्युत संचालित शव दाह गृह स्वीकृत है, जिसका निर्माण किया जा रहा है.
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पुष्कर रोड स्थित मोक्षधाम में श्मशान कर्मी अमरचंद बताते हैं कि पुराने रीति-रिवाजों के अनुसार ही लोग लकड़ियों पर ही अंतिम संस्कार करने के लिए कहते हैं. अभी तक शव दाह गृह में केवल 6 शव का ही अंतिम संस्कार किया गया है. अंतिम संस्कार में कपाल क्रिया और चिता में घी डालने का रिवाज है. यही वजह है कि लोग शव दाह गृह का उपयोग कम करते हैं.
विद्युत शवदाह गृह अब तक क्यों नहीं बना?
शहर में पहाड़गंज श्मशान भी काफी बड़ा है. अजमेर विकास प्राधिकरण की ओर से 60 लाख रुपए विद्युत चलित शवदाह गृह के लिए बहुत पहले ही स्वीकृत हो चुके थे. एडीए की उदासीनता की वजह से इसका निर्माण समय पर नहीं हो पाया, जब लोगों को इसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी. श्मशान के हालातों को देखने के बाद एडीएम प्रशासन अब जाकर चेता है. शवदाह गृह का निर्माण शुरू हो चुका है.
अंतिम संस्कार के लिए परेशान हुए लोग
क्षेत्रवासी राम बताते है कि पहाड़गंज श्मशान में शवों के अंतिम संस्कार को लेकर लोगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ी थी. यदि समय पर विद्युत चलित शव दाह गृह बन जाता तो लोगों को फायदा मिलता. लोगों में इस बात का मलाल है लेकिन अब निर्माण शुरू होने से लोगों में संतोष भी है.
रीति-रिवाज की वजह से विद्युत शवदाह गृह का उपयोग नहीं
कोरोना महामारी का दौर थमा नहीं है. भामाशाहों की मदद से नगर निगम कोरोना से मरने वाले उन लोगों को भी सम्मान से अंतिम विदाई दे रहा है, जो बेसहारा, गरीब और लावारिस हैं. यह और बात है कि शव दाह गृह का उपयोग लोग अपने रीति रिवाज के मद्देनजर नहीं करते हैं.
एलपीजी शवदाह गृह में भी बराबर लगता है समय
एलपीजी से चलित शवदाह गृह में लकड़ियों के बराबर ही अंत्योष्टि में समय लगता है. दरसल पुष्कर रोड स्थित मोक्ष धाम में शवदाह गृह में 3 घण्टे का समय लगता है. अंत्योष्टि में एक घंटा और शवदाह गृह को 1 घण्टा गर्म होने और अगले शव के लिए ठंडा करने के लिए एक घंटे का समय लगता है. लोगों का मानना है कि लकड़ियों के जलने और उसमें घी डालने से वातावरण प्रदूषित नहीं होता है. जबकि एलपीजी चलित शवदाह गृह की चिमनी से शरीर जलने से प्रदूषण होता है और आसपास गन्ध फैल जाती है.
रात में भी दाह संस्कार
अजमेर में कोरोना की दूसरी लहर के कहर ने सैकड़ों लोगों की जाने ली हैं. कोरोना से मरने वाले लोगों के सरकारी आंकड़ों और श्मशानों में दहक रही चिताओं के आंकड़ों में दिन-रात का फर्क देखा गया. हालात यह कि सनातन धर्म में सूर्यास्त के बाद दाह संस्कार करना निषेध माना जाता है. लेकिन कोरोना से मरने वाले के शरीर को घर में नहीं रखने की मजबूरी के चलते लोगों ने रात को भी दाह संस्कार किए हैं.
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पिछले 15 दिनों से नगर निगम ने 4 बड़े श्मशान में अंत्येष्टि की व्यवस्था कर रखी है. यहां लावारिस, बेसहारा गरीब तबके के लोगों को नि:शुल्क लकड़ियां और अंतिम संस्कार का सामान उपलब्ध कराया जाता है. यहां तक की दाह संस्कार के लिए भी कर्मचारी नगर निगम में रखे हुए हैं. पूरी लकड़ियां और अंतिम संस्कार का सामान मिलने से कई लोग लकड़ियों पर ही दाह संस्कार करवा रहे हैं.