अजमेर. जिले में वन क्षेत्र में पैंथर की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है यह खबर ईटीवी भारत ने सबसे पहले प्रकाशित की थी जिसमें जवाजा, नसीराबाद, मसूदा और पुष्कर क्षेत्र में पैंथर के मूवमेंट को भी बताया था. जिले में बढ़ती पैंथर की संख्या को लेकर वन विभाग में खुशी थी लेकिन वन विभाग उस अनजान खतरे से अनभिज्ञ रहा.
दरअसल पैंथर की मूवमेंट के साथ ही जिले में शिकारियों की सक्रियता भी बढ़ गई है. सोमवार की सुबह पदमपुरा ढाणी में शिकंजे में फंसी मादा पैंथर इस मामले की पुष्टि करती है. हालांकि वन विभाग पदमपुरा क्षेत्र में शिकारियों द्वारा शिकंजा लगाए जाने से इनकार नहीं कर रहा है. वहीं, शिकंजा नीलगाय के लिए लगाए जाने की संभावनाएं भी व्यक्त कर रहा है.
बता दें कि नीलगाय से फसलों को बचाने के लिए किसान पटाखे या लाइसेंसशुदा टोपीदार बंदूक से हवाई फायर कर उन्हें भगाते हैं. नीलगाय को पकड़ने के लिए शिकंजा नहीं लगाते. वहीं किसानों के पास पशुओं को पकड़ने के लिए शिकंजा नहीं होता. शिकंजे का इस्तेमाल शिकारी ही करते हैं. पदमपुरा ढाणी में जिस तरीके से शिकंजा लगाया गया, शिकारियों का ही काम लग रहा है.
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वन संरक्षक सुदीप कौर ने बताया कि सुबह 7:00 बजे उन्हें शिकंजे में फंसे पैंथर के बारे में सूचना मिली उसके बाद जयपुर वन्यजीव रेस्क्यू टीम को उन्होंने सूचना दी. वहीं वन्य जीव चिकित्सा अधिकारी जयपुर चिड़ियाघर के डॉक्टर अरविंद माथुर का पदमपुरा में पैंथर को शिकंजे से मुक्त करवाने का 55 वा रेस्क्यू था.
माथुर ने बताया कि शिकंजे में फंसी मादा पैंथर की उम्र 2 वर्ष एवं वजन 35 किलो है उन्होंने बताया कि पैंथर के सीधे हाथ का पंजा शिकंजे से घायल हुआ है. उसको आवश्यक दवाइयां दी गई है. जल्दी पैंथर को जंगल में छोड़ा जाएगा शिकंजे के सवाल पर उन्होंने कहा कि पदमपुरा में शिकंजा किसने लगाया यह गहन जांच का विषय है. जिले के वन क्षेत्र में जहां पैंथर की बड़ी संख्या से वन विभाग में खुशी थी वही शिकंजे में फंसे पैंथर की घटना ने वन विभाग की अब चिंता बढ़ा दी है ऐसे में वन विभाग को और भी ज्यादा सजग रहने की जरूरत है.
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10 साल से नही मिली ट्रंकुलाइजर गन
अजमेर में पिछले एक दशक से दर्जनों घटनाएं हुई है जहां आबादी क्षेत्र में पैंथर का मोमेंट देखा गया है. कई बार पैंथर को रेस्क्यू भी किया गया है. ऐसी स्थिति में हमेशा वन विभाग जयपुर की ओर देखता नजर आया है. अजमेर वन विभाग की एक दशक से ट्रंकुलाइजर गन की मांग रही है. पदमपुरा में फंसी मादा पैंथर के मामले में भी जयपुर से टीम आई तब जाकर पैंथर को ट्रंकुलाइजर दिया गया. गनीमत रही कि वन विभाग की सजगता से शिकारियों के मंसूबे पूरे नहीं हो पाए और मादा पैंथर की जान बच गई.