अजमेर. जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम जीने के लिए संघर्ष करना छोड़ दें. आज कल की भागदौड़ की जिंदगी में तनाव ऐसी भयावह बीमारी हो गई है कि तनाव के शिकार व्यक्ति को पता भी नहीं चलता की वो तनाव के अंधकार में समा रहा है. खास बात यह कि तनाव होने पर भी लोग मनोचिकित्सक के पास जाने से कतराते हैं. उन्हें लगता है कि वह पागल तो है नहीं, जबकि ऐसा नहीं है कि वह पागलपन के शिकार हैं, बल्कि वह तनाव से ग्रस्त हैं. ऐसे लोगों को उपचार के जरिए तनाव से बाहर निकला जा सकता है. जिससे वे फिर से सामान्य जिंदगी जी सकते हैं.
तनाव को लेकर ईटीवी भारत ने वरिष्ठ मनोरोग चिकित्सक डॉ. महेंद्र जैन से विशेष बातचीत की. जिसमें उन्होंने बताया कि यह विकट समय चल रहा है. मनोरोग के मरीजों की संख्या बढ़ रही है. कई लोग तनाव का शिकार हो चुके हैं, जो आत्महत्या भी कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि आत्महत्याओं के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन उन सब में तनाव बड़ा कारण है.
आत्महत्या का मुख्य कारण तनाव
डॉ. जैन ने जानकारी देते हुए बताया कि अप्रैल से जून तक के बीच में शरीर में रसायन परिवर्तन होते हैं. जिसकी वजह से डोपामाइन की मात्रा मस्तिष्क में बढ़ जाती है. जिससे लोगों में चिड़चिड़ाहट, मन की उदासी, एकाग्रता में कमी, कार्य में मन नहीं लगना यह सब होने लगता है. इस कारण व्यक्ति तनाव की ओर बढ़ने लगता है. कोरोना की वजह से लोगों के रोजगार पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा है. लोगों में असुरक्षा की भावना आई है, अनिश्चितता का माहौल बना है. यह सब भी तनाव के बड़े कारण हैं. जिससे व्यक्ति तनावग्रस्त हो रहा है.
तनाव ग्रस्त मरीजों की संख्या में इजाफा
उन्होंने बताया कि लॉकडाउन खुलने के बाद तनाव ग्रस्त मरीजों की संख्या अस्पताल में मनोरोग विभाग की ओपीडी में लगातार बढ़ रही है. जैन ने बताया कि रोजगार खो देने से, घरेलू क्लेश की वजह से लोगों में तनाव बढ़ा है. उन्होंने बताया कि ऐसे लोग इस पशोपेश में रहते हैं कि वह अपना उपचार किससे करवाएं, इसलिए समय पर उन्हें सहायता नहीं मिल पाती है. जब सहायता मिलती है तो काफी देर हो चुकी होती है. ऐसे में यह स्थिति आत्महत्या की परिणिति बनती है. उन्होंने कहा कि सही समय पर मनो चिकित्सक से परामर्श लेने पर तनाव के शुरुआती लक्षण और कारण का अध्यन कर उसका उपचार किया जा सकता है.
मोबाइल की लत भी तनाव का एक बड़ा
डॉ. जैन ने तनाव के उपचार को लेकर बताया कि भागदौड़ की जिंदगी में मोबाइल की लत भी तनाव का एक बड़ा कारण है. इससे अनिंद्रा और एकाग्रता में कमी आ गई है. शरीर में थकावट रहती है. सुबह के वक्त तरोताजगी नहीं रहती. इसकी वजह से चिड़चिड़ापन होने लगता है और इसलिए व्यक्ति तेजी से प्रतिक्रिया देने लगता है. जिससे घर का वातावरण असंतुलित हो जाता है. मोबाइल पर कई परिचितों के साथ हैं, लेकिन वास्तविक जीवन में अकेला महसूस करने लगे हैं. इससे व्यक्ति अपने मन की बात दूसरों से शेयर नहीं कर पाता और अकेलेपन का शिकार हो जाता है.
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मनोरोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. महेंद्र जैन ने कहा कि तनाव कोरोना से गंभीर बीमारी है. जितनी मौतें कोरोना से नहीं हुई उससे कई ज्यादा मौतें आत्महत्या से हुई है, इसलिए शुरुआत में तनाव महसूस करने के साथ ही मनोरोग चिकित्सक से परामर्श जरूर लेना चाहिए, ताकि तनाव पर समय रहते काबू पाया जाए.