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पितृ पक्ष 2020: पुष्कर में पितरों का श्राद्ध करने नहीं पहुंच रहे 'यजमान'...2500 पुरोहितों की आय पर असर

दिवंगत पितृजनों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने की समयावधि श्राद्ध यानी पितृ पक्ष का दौर चल रहा है. पितरों को प्रसन्न करने के लिए तर्पण, हवन और दान का विशेष महत्व है. मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान सरोवर में स्नान और तर्पण करने से पितरों को शांति मिलती है. अजमेर के पुष्कर में स्थित सरोवर में हर साल श्राद्ध पक्ष में स्नान और तर्पण की परंपरा रही है, लेकिन इस साल कोरोना के डर की वजह से यजमान अपनों का श्राद्ध करने तीर्थ पर नहीं पहुंच रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Sep 16, 2020, 2:40 PM IST

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पितरों का श्राद्ध करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में आई भारी कमी

अजमेर. तीर्थराज पुष्कर को सभी तीर्थों का गुरु माना जाता है. सृष्टि के रचयिता जगत पिता ब्रह्मा का इकलौता मंदिर पुष्कर में है. पुष्कर के धार्मिक महत्व को और बढ़ा देता है यहां स्थित सरोवर. सरोवर के बारे में मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में इसमें स्नान करके तीर्थ पुरोहित के सानिध्य में तर्पण करने से पितरों को शांति मिलती है. वहीं, अनुष्ठान करवाने वाले श्रद्धालुओं को पूजा का कोटि-कोटि पुण्य प्राप्त होता है.

पितरों का श्राद्ध करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में भारी कमी...

यह है मान्यता ...

पुष्कर के पवित्र सरोवर को लेकर यह मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने भी अपने पिता महाराज दशरथ का श्राद्ध यहां किया था. इसके अलावा एक और मान्यता है कि व्यक्ति सभी तीर्थ दर्शन कर ले, लेकिन जब तक पुष्कर तीर्थ की यात्रा नहीं करता है तब तक उसे सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य नहीं मिलता. यही वजह है कि सदियों से श्रद्धालु पुष्कर आते रहे हैं. इसके साथ ही तीर्थ पुरोहितों और श्रद्धालुओं के बीच जजमानी की परंपरा का संबंध भी पीढ़ी दर पीढ़ी बन गया है. पुष्कर में श्राद्ध पक्ष में पवित्र सरोवर पर तर्पण और श्राद्ध करने का महत्व और भी बढ़ जाता है. सरोवर के 52 घाटों पर तीर्थ पुरोहित अपने यजमानों के लिए अनुष्ठान करवाने में व्यस्त रहते थे, लेकिन कोरोना महामारी से सब कुछ बदल दिया है.

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श्राद्ध के लिए आए यजमान...

90 फीसदी कम हुए श्रद्धालु...

श्राद्ध पक्ष में तीर्थ पुरोहितों के मुंह से निकले मंत्रों की आवाजें अब कम आने लगी हैं. श्रद्धालुओं से भरे रहने वाले घाट सुने हो गए हैं. हालात ऐसे हैं कि श्राद्ध पक्ष में देश के कोने कोने से आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 90 फीसदी कम हो गई है. बाकी 10 फीसदी श्रद्धालु राजस्थान या आसपास के राज्यों से आ रहे हैं. श्रद्धालुओं के नहीं आने से तीर्थ पुरोहितों की आजीविका पर भी भारी असर पड़ा है.

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इस साल काफी कम संख्या में आए श्रद्धालु...

पढ़ें: विशेष: राजस्थान के इस गांव में आज भी जिंदा हैं पूर्वज, यहां 'बागबां' बताते हैं पुरखों का इतिहास

तीर्थ पुरोहित बताते हैं कि सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी यजमानी की परंपरा चली आ रही है. श्राद्ध पक्ष में विशेषकर यजमानों से मिली दान दक्षिणा से ही साल भर परिवार का भरण-पोषण आराम से हो जाता था. कोरोना महामारी की वजह से मार्च महीने से ही श्रद्धालु पुष्कर नहीं आ रहे हैं. वहीं, श्राद्ध पक्ष में भी श्रद्धालुओं के नही आने से उनके सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. कई तीर्थ पुरोहित लोगों से कर्ज लेकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं.

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अजमेर तीर्थ के इस सरोवर की है खास मान्यता...

पुष्कर में करीब ढाई हजार तीर्थ पुरोहित...

पुष्कर में ढाई हजार के लगभग तीर्थ पुरोहित रहते हैं, जिनकी आजीविका पुष्कर में आने वाले श्रद्धालुओं पर ही निर्भर है. हिन्दू धर्म में पूर्वजों की आत्मा की शांति का विधान है. इसके लिए श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व है, लेकिन कोरोना महामारी का असर श्राद्ध पक्ष पर भी पड़ा है. लोग घरों में ही अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर रहे हैं. वहीं, कुछ लोग ही हैं जो अपने निजी वाहनों से पुष्कर आकर पवित्र सरोवर के किनारे अपने पितृ शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध कर रहे हैं, लेकिन ऐसे श्रद्धालुओ की संख्या काफी कम है.

कोरोना की मार पुरोहितों पर भी...

पुरोहित बताते हैं कि पहले जब श्रद्धालु आते थे तो कुछ दिन पुष्कर में ठहरा करते थे, लेकिन अब अगर लोग आते भी हैं तो ठहरते नहीं हैं. पितृ शांति के लिए श्राद्ध का प्रयोजन पूरा होते ही लौट जाते हैं. श्रद्धालुओं में आई कमी का सबसे बड़ा कारण कोरोना महामारी है. वहीं, इस महामारी के चलते ट्रेनों का कम हुआ संचालन भी बड़ी वजह है. ज्यादातर श्रद्धालु देश के कोने-कोने से पुष्कर ट्रेनों के जरिए आते थे. वो भी फिलहाल पूरी तरह से चालू नहीं हो पाई है.

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सरोवर में डूबकी लगाने से मिलती है पितरों को मुक्ति...

पढ़ें: Special: श्राद्ध पक्ष में कौवों के घरौंदे हुए लुप्त, भोग लगाने के लिए पितरों के प्रतिनिधियों की तलाश

कोरोना का संकट देश में टला नहीं है. हालांकि, आर्थिक गतिविधियां शुरू हो चुकी हैं. बावजूद इसके लोग यात्रा करने से अभी भी कतरा ही रहे हैं. फिलहाल देश में जिस तरीके से कोरोना संक्रमित मरीजों के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं. ऐसे में श्राद्ध पक्ष की क्रियाविधि भी प्रभावित हुई है.

अजमेर. तीर्थराज पुष्कर को सभी तीर्थों का गुरु माना जाता है. सृष्टि के रचयिता जगत पिता ब्रह्मा का इकलौता मंदिर पुष्कर में है. पुष्कर के धार्मिक महत्व को और बढ़ा देता है यहां स्थित सरोवर. सरोवर के बारे में मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में इसमें स्नान करके तीर्थ पुरोहित के सानिध्य में तर्पण करने से पितरों को शांति मिलती है. वहीं, अनुष्ठान करवाने वाले श्रद्धालुओं को पूजा का कोटि-कोटि पुण्य प्राप्त होता है.

पितरों का श्राद्ध करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में भारी कमी...

यह है मान्यता ...

पुष्कर के पवित्र सरोवर को लेकर यह मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने भी अपने पिता महाराज दशरथ का श्राद्ध यहां किया था. इसके अलावा एक और मान्यता है कि व्यक्ति सभी तीर्थ दर्शन कर ले, लेकिन जब तक पुष्कर तीर्थ की यात्रा नहीं करता है तब तक उसे सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य नहीं मिलता. यही वजह है कि सदियों से श्रद्धालु पुष्कर आते रहे हैं. इसके साथ ही तीर्थ पुरोहितों और श्रद्धालुओं के बीच जजमानी की परंपरा का संबंध भी पीढ़ी दर पीढ़ी बन गया है. पुष्कर में श्राद्ध पक्ष में पवित्र सरोवर पर तर्पण और श्राद्ध करने का महत्व और भी बढ़ जाता है. सरोवर के 52 घाटों पर तीर्थ पुरोहित अपने यजमानों के लिए अनुष्ठान करवाने में व्यस्त रहते थे, लेकिन कोरोना महामारी से सब कुछ बदल दिया है.

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श्राद्ध के लिए आए यजमान...

90 फीसदी कम हुए श्रद्धालु...

श्राद्ध पक्ष में तीर्थ पुरोहितों के मुंह से निकले मंत्रों की आवाजें अब कम आने लगी हैं. श्रद्धालुओं से भरे रहने वाले घाट सुने हो गए हैं. हालात ऐसे हैं कि श्राद्ध पक्ष में देश के कोने कोने से आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 90 फीसदी कम हो गई है. बाकी 10 फीसदी श्रद्धालु राजस्थान या आसपास के राज्यों से आ रहे हैं. श्रद्धालुओं के नहीं आने से तीर्थ पुरोहितों की आजीविका पर भी भारी असर पड़ा है.

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इस साल काफी कम संख्या में आए श्रद्धालु...

पढ़ें: विशेष: राजस्थान के इस गांव में आज भी जिंदा हैं पूर्वज, यहां 'बागबां' बताते हैं पुरखों का इतिहास

तीर्थ पुरोहित बताते हैं कि सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी यजमानी की परंपरा चली आ रही है. श्राद्ध पक्ष में विशेषकर यजमानों से मिली दान दक्षिणा से ही साल भर परिवार का भरण-पोषण आराम से हो जाता था. कोरोना महामारी की वजह से मार्च महीने से ही श्रद्धालु पुष्कर नहीं आ रहे हैं. वहीं, श्राद्ध पक्ष में भी श्रद्धालुओं के नही आने से उनके सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. कई तीर्थ पुरोहित लोगों से कर्ज लेकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं.

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अजमेर तीर्थ के इस सरोवर की है खास मान्यता...

पुष्कर में करीब ढाई हजार तीर्थ पुरोहित...

पुष्कर में ढाई हजार के लगभग तीर्थ पुरोहित रहते हैं, जिनकी आजीविका पुष्कर में आने वाले श्रद्धालुओं पर ही निर्भर है. हिन्दू धर्म में पूर्वजों की आत्मा की शांति का विधान है. इसके लिए श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व है, लेकिन कोरोना महामारी का असर श्राद्ध पक्ष पर भी पड़ा है. लोग घरों में ही अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर रहे हैं. वहीं, कुछ लोग ही हैं जो अपने निजी वाहनों से पुष्कर आकर पवित्र सरोवर के किनारे अपने पितृ शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध कर रहे हैं, लेकिन ऐसे श्रद्धालुओ की संख्या काफी कम है.

कोरोना की मार पुरोहितों पर भी...

पुरोहित बताते हैं कि पहले जब श्रद्धालु आते थे तो कुछ दिन पुष्कर में ठहरा करते थे, लेकिन अब अगर लोग आते भी हैं तो ठहरते नहीं हैं. पितृ शांति के लिए श्राद्ध का प्रयोजन पूरा होते ही लौट जाते हैं. श्रद्धालुओं में आई कमी का सबसे बड़ा कारण कोरोना महामारी है. वहीं, इस महामारी के चलते ट्रेनों का कम हुआ संचालन भी बड़ी वजह है. ज्यादातर श्रद्धालु देश के कोने-कोने से पुष्कर ट्रेनों के जरिए आते थे. वो भी फिलहाल पूरी तरह से चालू नहीं हो पाई है.

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सरोवर में डूबकी लगाने से मिलती है पितरों को मुक्ति...

पढ़ें: Special: श्राद्ध पक्ष में कौवों के घरौंदे हुए लुप्त, भोग लगाने के लिए पितरों के प्रतिनिधियों की तलाश

कोरोना का संकट देश में टला नहीं है. हालांकि, आर्थिक गतिविधियां शुरू हो चुकी हैं. बावजूद इसके लोग यात्रा करने से अभी भी कतरा ही रहे हैं. फिलहाल देश में जिस तरीके से कोरोना संक्रमित मरीजों के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं. ऐसे में श्राद्ध पक्ष की क्रियाविधि भी प्रभावित हुई है.

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