अजमेर: जिले में हजारों नर्सिंगकर्मी दिन-रात एक कर संक्रमण के बीच मरीजों की सेवा कर रहे हैं. इस दौरान कई नर्सिंगकर्मी खुद भी संक्रमण का शिकार होते रहे हैं. एक परिवार के साथ ऐसा ही हुआ. माता-पिता दोनों सरकारी नर्सिंग कर्मचारी थे. दोनों ही एक साथ कोरोना संक्रमित हुए. दोनों को अस्पताल में भर्ती कराया गया. महज 6 दिन के अंतराल में दोनों जिंदगी की जंग हार गए. एक हंसता-खेलता परिवार कोरोना से उजड़ गया. दोनों नर्सिंग कर्मचारियों की 2 बेटियां है. दोनों पढ़ाई कर रही हैं. दोनों ही अविवाहित हैं और बेरोजगार भी हैं.
कोरोना ने उजाड़ा हंसता खेलता परिवार
मृतक नर्सिंगकर्मी दंपती की दोनों बेटियों नलिनी और नूपुर ने बताया कि उनके माता-पिता करतार और चंद्रवती फर्स्ट ग्रेड नर्सिंग कर्मचारी थे. दोनों को एक साथ कोरोना संक्रमण हुआ. उन्हें अजमेर के जवाहरलाल नेहरू अस्पताल में भर्ती करवाया गया. 21 अप्रैल को मां चंद्रवती को जयपुर के महात्मा गांधी हॉस्पिटल में शिफ्ट कर दिया गया. कुछ दिन बाद 28 अप्रैल को पिता करतार को भी महात्मा गांधी हॉस्पिटल में एडमिट करवाया गया. दोनों का इलाज एक ही कोविड आईसीयू वार्ड में चल रहा था. 5 मई को माता की मृत्यु हो गई. इसके ठीक 6 दिन बाद 11 मई को पिता ने भी दुनिया से रुखसत ले ली लेकिन मरने से पहले दोनों की ही कोविड-19 रिपोर्ट नेगेटिव नहीं आई थी.
कोरोना योद्धाओं की जिंदगी के साथ हेर-फेर!
अस्पताल की ओर से जारी मृत्यु की रिपोर्ट में दोनों के ही मरने का कारण कोरोना नहीं माना गया. माता की रिपोर्ट में मृत्यु का कारण कार्डिक अरेस्ट बताया गया, जबकि पिता की मौत भी कोविड की वजह से होना नहीं माना गया. ऐसे में दोनों बेटियों के सामने अपने जीवन निर्वहन का संकट खड़ा हो गया है. क्योंकि रिपोर्ट के अनुसार उनके माता-पिता की मृत्यु कोरोना की वजह से नहीं हुई है. ऐसे में प्रशासन द्वारा उन्हें कोरोना वॉरियर्स की मृत्यु के बाद उनके परिवार को दिए जाने वाले लाभ भी नहीं दिए जा रहे हैं.
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बड़ी बेटी कहती हैं कि वह माता-पिता की मृत्यु के बाद खुद भी संक्रमण का शिकार थी और आईसीयू में भर्ती थी. इस वजह से उन्हें तो अपने माता-पिता के अंतिम दर्शन तक नसीब नहीं हुए. माता-पिता की रिपोर्ट 10 से 15 दिन अस्पताल में रहने के बावजूद नेगेटिव नहीं आई थी. फिर भी उनकी मौत का कारण कोरोना को नहीं माना जा रहा है.
दादी को चिंता, 'कौन रखेगा पोतियों का ख्याल'
नूपुर और नीलिमा की दादी कहती हैं कि उनके बेटे और बहू की मृत्यु कोरोना की वजह से हुई है. इसीलिए सरकार को इन दोनों बच्चियों के लिए सहायता करनी ही चाहिए. दोनों बेटियां अभी अविवाहित हैं. इसलिए इन दोनों को सरकार की तरफ से नौकरी दी जाए.
दादी का कहना है कि उनके बेटा और बहू दोनों कोरोना योद्धा थे. संक्रमण की वजह से ही उनकी मौत हुई है. इसीलिए उनके बेटे और बहू को शहीद का दर्जा दिया जाए. शहीदों को दी जाने वाली सुविधाएं उनकी पोतियों को दी जाए.
सरकारी दावे खोखले !
परिवार की स्थिति को देखने के बाद प्रशासन और सरकार के दावे खोखले नजर आ रहे हैं. अब तक कोई भी प्रशासनिक अधिकारी इस परिवार की सुध लेने तक नहीं पहुंचा है. ऐसे में आम जनता सरकार के बड़े-बड़े दावों पर कैसे विश्वास कर सकती है?
राज्य और केंद्र सरकारें समय-समय पर कोरोना वॉरियर्स का सम्मान तो कर रही हैं लेकिन कहीं ना कहीं यह सम्मान और योजनाएं हकीकत के धरातल पर खोखली नजर आ रही हैं.