अजमेर. वर्तमान में पर्यटन और धार्मिक नगरी के नाम से पहचाने जाने वाले अजमेर को कभी रेल नगरी के नाम से भी जाना जाता था. अजमेर की धरा का द्वितीय विश्व युद्ध से भी नाता रहा है. देश को पहला एफ सीरीज का रेल इंजन अजमेर ने दिया. वहीं, द्वितीय विश्व युद्ध में बम के गोलों के खोल और इनफील्ड राइफल्स का निर्माण भी अजमेर के लोको कारखाने में हुआ.
साल 1876 का वो समय था, जब अंग्रेजों ने आगरा ईदगाह से रेल कारखाने को अजमेर में स्थापित किया और उसको नाम दिया गया लोको कारखाना. शुरुआती दौर में कारखाने में 18,975 श्रमिक काम किया करते थे, जिनकी कार्य कुशलता की बदौलत देश का पहला एफ स्टीम रेल इंजन अजमेर में बना था. धीरे-धीरे कारखाने का उपयोग आयुध की सामग्री बनाने में किया गया. साल 1939 के द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लंबे समय तक लोको कारखाने में बम के गोलों के खोल और इनफील्ड राइफल बनती रही. इतना ही नहीं, कारखाने में कई प्रकार के स्टीम इंजनों का निर्माण हुआ.
बताया जाता है कि साल 1880 में प्रतिदिन कारखाने में एक स्टीम इंजन का निर्माण होता था. अजमेर में निर्मित देश का पहला रेल इंजन आज भी दिल्ली के रेल संग्रहालय में रखा हुआ है. उस दौर में ब्रिटिश कंपनी ब्लैक होथर्न द्वारा निर्मित आयती स्टीम इंजन भी इस कारखाने में आया था, जिसका उपयोग 50 साल तक शटिंग के कार्य में लिया गया और इंजन अब भी चालू हालत में है.
रेल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अजमेर में स्थापित लोको कारखाने की रही है, लेकिन बदलते वक्त के साथ लोको कारखाना से अलग करके कैरिज कारखाना भी अजमेर में स्थापित किया गया. यहां लोको कारखाने में वैगन और कैरिज कारखाने में यात्री गाड़ियों के कोच बनने लगे. साल 1993 में अजमेर में रेल विकास के कार्य को बहुत बड़ा झटका लगा. रेलवे बोर्ड ने अजमेर में स्टीम इंजन के आवधिक रिपेयर का कार्य बंद कर दिया. इसके बाद बड़े बदलाव करते हुए कारखाने में ब्रॉडगेज इंजनों के कल-पुर्जों का निर्माण शुरू हुआ.
तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन के समय लोको कारखाने में मत पेटियों का निर्माण भी करवाया गया. इतना ही नहीं, ट्रैक टेंपिंग मशीन की मरम्मत का कार्य भी बिना किसी अतिरिक्त संसाधनों के लोको कारखाने ने कम लागत में कर दिखाया, जबकि वही कार्य निजी कंपनी प्लाजार्स ऑफ इंडिया दोगुने दामों कर रही थी. कारखाने में कुशल श्रमिक और इंजीनियर हैं. इनकी कुशलता से बर्मा, बांग्लादेश और श्रीलंका आदि छोटे देशों में कंडम हुए मीटर गेज इंजन की मरम्मत की गई. ये इंजन अब भी चालू अवस्था में कार्य कर रहे हैं. वर्तमान में लोको में 1200 और कैरिज में 2800 कर्मचारी कार्यरत हैं. कोरोना काल में भी यहां रेल के कोच में आईसीयू का निर्माण किया गया. साथ ही अस्पतालों में सुविधा के लिए स्वचालित डोलिया बनाई गई. उसके अलावा सैनिटाइजर टनल आदि भी बनाए गए.
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लोको कारखाने के ऊपर ब्रिटिश कालीन घड़ी ने रेल कारखाने के स्वर्णिम समय को देखा है, साथ ही कारखाने को आधुनिकता अपनाते हुए भी देखा है. अब रेल के हर छोटे- बड़े काम निजी कंपनी को दिए जाने लगे हैं. यही वजह है कि लोको कारखाना और कैरिज कारखाने में लंबे समय से भर्तियां नहीं हुई है. काम मिलना कम हो गया है और जो काम मिल रहा है, उसके लिए पर्याप्त कर्मचारी नहीं है. निजीकरण की छाया रेल पर गहराने लगी है. वहीं, रेल का निजीकरण नहीं होने देने के लिए रेलकर्मी संघर्षशील हैं.
कहा जा सकता है कि अजमेर के रेल कारखानों ने जमाना बदलते देखा है. लेकिन, अब सरकारों की बेरुखी और निजीकरण को मंशा के चलते कारखाने ढलान की ओर अग्रसर हैं. कारखानों का इतिहास संग्रहालय में मौजूद हैं. वहीं, वर्तमान में कारखानों के भविष्य को बचाने की जद्दोजहद की जा रही है.