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SPECIAL : राजस्थान की सड़कों की शान तांगा गाड़ी आज है बदहाल, चालक और घोड़े दोनों है दाने-दाने के मोहताज

एक वक्त था जब राजस्थान की शान का प्रतीक तांगा गाड़ी भी शान से सड़कों पर दौड़ती थी, लेकिन आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है. कोरोना काल में शानो शौकत की यह सवारी तंगी से गुजर रही है. इसके साथ ही तांगा चालक भी आज दो वक्त की रोटी के मोहताज हो गए हैं. तांगा चालकों ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया की उन्हें किस-किस प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. पढ़ें पूरी खबर...

अजमेर के तांगा वाले, Ajmer Tanga
राजस्थान की सड़कों की शान तांगा गाड़ी आज है बदहाल
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Published : May 20, 2021, 1:02 PM IST

अजमेर. कभी शानो शौकत का प्रतीक तांगे समय के साथ परिवहन के साधन बने, लेकिन आज हालात यह है कि कोरोना काल में शानो शौकत की यह सवारी तंगी से गुजर रही है. अजमेर में कभी 3 हजार तांगे लोगों के आवागमन का साधन थे. मगर पेट्रोल डीजल की सरपट दौड़ती गाड़ियों ने तांगों को बदहाली की ओर धकेल दिया है. खास बात यह कि सरकारें प्रदूषण से बचाव के लिए इलेक्ट्रिक व्हीकल को बढ़ावा दे रही है. मगर प्रदूषण मुक्त तांगे वालों को कोई सहयोग नहीं दिया जा रहा.

राजस्थान की सड़कों की शान तांगा गाड़ी आज है बदहाल

पढ़ेंः SPECIAL : सहकार कर्मियों पर टूटा कोरोना का कहर...नहीं चेता सरकारी तंत्र, अब भी वैक्सीनेशन कैम्प का इंतजार

बस बचे है 45 तांगेः

शहर में 45 तांगे बचे है जो अब अपने अस्तित्व को बचाने की जंग लड़ रहे है. एक समय था जब अजमेर की सड़कों पर केवल तांगे ही नजर आया करते थे. अजमेर की हवा स्वच्छ थी. आज वो समय है जब हर घर में 1 से 4 वाहन उपलब्ध है. अजमेर शहर भी प्रदूषित शहरों में शुमार हो चुका है. स्वच्छ हवा से याद आया कि कोरोना काल में मरीजों के जीवन को बचाने वाली प्राण वायु भी स्वच्छ हवा से मिल रही है.

अजमेर के तांगा वाले, Ajmer Tanga
बदहाली से गुजर रहे तांगा चालक

साल 2020 से कोरोना काल चल रहा है. इस दौरान कई बदलाव देखे गए. ज्यादातर लोग आर्थिक संकट से जूझ रहे है. हालांकि बीच में कुछ समय वह भी आया जब लोगों ने खुद को आर्थिक संकट से उभरने के लिए प्रयास शुरू किए थे लेकिन कोरोना की दूसरी लहर ने उन सभी प्रयासों पर पानी फेर दिया. इनमें यह गरीब तांगे वाले शामिल है.

अजमेर के तांगा वाले, Ajmer Tanga
अजमेर के तांगा चालक

1995 का दौर था सुनहराः

घोड़ों को खिलाने के लिए तांगे वालों के पास घास, दलिया, कुट्टी तक के पैसे नहीं है. तांगे वाले जहांगीर ने बताया कि सन 1995 तक का दौर तांगे वालों के रोजगार के लिए सुनहरा समय था. इसके बाद ऐसी गिरावट आई की. 3 हजार तांगों वाले शहर में महज 45 तांगे रह गए है. ऑटो, टैंपो और अन्य साधनों की वजह से शहर से लगातार तांगे घटते गए. साथ ही तांगे वालों की घटती आय की वजह से ज्यादातर तांगे वालों ने अपना व्यवसाय ही बदल दिया है. उन्होंने बताया कि दरगाह और पुष्कर की वजह से उनके परिवार का पेट चल रहा है वहीं, घोड़ों को खुराक मिल जाती है लेकिन कोरोना काल ने घोड़ों और परिवार जन का पेट पालने के लिए कर्जदार बना दिया है.

अजमेर के तांगा वाले, Ajmer Tanga
पेट्रोल डीजल की गाड़ियों ने भी छीना तांगा चालकों का रोजगार

पुलिस भी करती है परेशानः

तांगे वाले पप्पू बताते है कि तांगा शानो शौकत का प्रतीक था. राजा रजवाड़ों, सेठ, साहूकारों के पास ही तांगे हुआ करते थे. आजादी के बाद तांगा लोगों के आवागमन के लिए सुगम जरिया बन गया था. तेज रफ्तार के लिए अच्छी नस्ल के घोड़े हुआ करते थे. शहर में कई जगह तांगा स्टैंड थे. जहां छाया, चारे और पानी का इंतजाम था, लेकिन आज एक भी स्टैंड तांगे वालों को नगर निगम ने नही दिया. जहां जगह मिली वही तांगे वाले तांगों को खड़ा कर लेते है. उन्होंने बताया कि तांगे वालो को कभी सरकार और प्रशासन की ओर से आर्थिक सहायता नही मिली. बल्कि पुलिस तांगे वालों को परेशान करते है. लॉकडाउन में जीना दुर्भर हो गया है.

अजमेर के तांगा वाले, Ajmer Tanga
घोड़ों को भी नहीं मिल पा रहा पूरा खाना

पढ़ेंः SPECIAL : स्टेरॉयड का ज्यादा इस्तेमाल लोगों की ले रहा है जान, कोरोना के बाद ब्लैक फंगस ने किया परेशान

रमेश तांगे वाले ने बताया कि घोड़ों को दिया जाने वाला चारा महंगा हो गया है. कुट्टी 12 रुपए किलो, दलिया 20 रुपए किलो है. उन्होंने बताया कि खुद भले ही रह जाए लेकिन घोड़ों को खिलाना जरूरी होता है. कब तक कर्जा लेकर घोड़ो को खिलाते रहेंगे. अब हालात भूखों मरने जैसे हो गए हैं.

अजमेर के तांगा वाले, Ajmer Tanga
बड़ी मुश्किल से घोड़ों के लिए हो पाता है दाना पानी का जुगाड़

रोज कमाने और रोज खाने वाले मेहनतकश लोगों में शामिल यह तांगे की तकदीर को बदलते समय ने पहले ही धोखा दे दिया. रही सही कसर कोरोना काल पूरी कर रहा है. शहर को प्रदूषण से मुक्त रखने वाले यह तांगे वाले बदहाली की स्थिति में पहुच गए है. कही ऐसा ना हो कि अगले कुछ वर्षों में तांगे शहर की सड़कों से गायब होकर केवल फोटो में दिखाई दे. ऐसे में सरकार को प्रदूषण मुक्त शहर बनाने के लिए तांगे वालों को आर्थिक संबल देना होगा तभी इन तांगों का अस्तित्व बचा रहेगा.

अजमेर. कभी शानो शौकत का प्रतीक तांगे समय के साथ परिवहन के साधन बने, लेकिन आज हालात यह है कि कोरोना काल में शानो शौकत की यह सवारी तंगी से गुजर रही है. अजमेर में कभी 3 हजार तांगे लोगों के आवागमन का साधन थे. मगर पेट्रोल डीजल की सरपट दौड़ती गाड़ियों ने तांगों को बदहाली की ओर धकेल दिया है. खास बात यह कि सरकारें प्रदूषण से बचाव के लिए इलेक्ट्रिक व्हीकल को बढ़ावा दे रही है. मगर प्रदूषण मुक्त तांगे वालों को कोई सहयोग नहीं दिया जा रहा.

राजस्थान की सड़कों की शान तांगा गाड़ी आज है बदहाल

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बस बचे है 45 तांगेः

शहर में 45 तांगे बचे है जो अब अपने अस्तित्व को बचाने की जंग लड़ रहे है. एक समय था जब अजमेर की सड़कों पर केवल तांगे ही नजर आया करते थे. अजमेर की हवा स्वच्छ थी. आज वो समय है जब हर घर में 1 से 4 वाहन उपलब्ध है. अजमेर शहर भी प्रदूषित शहरों में शुमार हो चुका है. स्वच्छ हवा से याद आया कि कोरोना काल में मरीजों के जीवन को बचाने वाली प्राण वायु भी स्वच्छ हवा से मिल रही है.

अजमेर के तांगा वाले, Ajmer Tanga
बदहाली से गुजर रहे तांगा चालक

साल 2020 से कोरोना काल चल रहा है. इस दौरान कई बदलाव देखे गए. ज्यादातर लोग आर्थिक संकट से जूझ रहे है. हालांकि बीच में कुछ समय वह भी आया जब लोगों ने खुद को आर्थिक संकट से उभरने के लिए प्रयास शुरू किए थे लेकिन कोरोना की दूसरी लहर ने उन सभी प्रयासों पर पानी फेर दिया. इनमें यह गरीब तांगे वाले शामिल है.

अजमेर के तांगा वाले, Ajmer Tanga
अजमेर के तांगा चालक

1995 का दौर था सुनहराः

घोड़ों को खिलाने के लिए तांगे वालों के पास घास, दलिया, कुट्टी तक के पैसे नहीं है. तांगे वाले जहांगीर ने बताया कि सन 1995 तक का दौर तांगे वालों के रोजगार के लिए सुनहरा समय था. इसके बाद ऐसी गिरावट आई की. 3 हजार तांगों वाले शहर में महज 45 तांगे रह गए है. ऑटो, टैंपो और अन्य साधनों की वजह से शहर से लगातार तांगे घटते गए. साथ ही तांगे वालों की घटती आय की वजह से ज्यादातर तांगे वालों ने अपना व्यवसाय ही बदल दिया है. उन्होंने बताया कि दरगाह और पुष्कर की वजह से उनके परिवार का पेट चल रहा है वहीं, घोड़ों को खुराक मिल जाती है लेकिन कोरोना काल ने घोड़ों और परिवार जन का पेट पालने के लिए कर्जदार बना दिया है.

अजमेर के तांगा वाले, Ajmer Tanga
पेट्रोल डीजल की गाड़ियों ने भी छीना तांगा चालकों का रोजगार

पुलिस भी करती है परेशानः

तांगे वाले पप्पू बताते है कि तांगा शानो शौकत का प्रतीक था. राजा रजवाड़ों, सेठ, साहूकारों के पास ही तांगे हुआ करते थे. आजादी के बाद तांगा लोगों के आवागमन के लिए सुगम जरिया बन गया था. तेज रफ्तार के लिए अच्छी नस्ल के घोड़े हुआ करते थे. शहर में कई जगह तांगा स्टैंड थे. जहां छाया, चारे और पानी का इंतजाम था, लेकिन आज एक भी स्टैंड तांगे वालों को नगर निगम ने नही दिया. जहां जगह मिली वही तांगे वाले तांगों को खड़ा कर लेते है. उन्होंने बताया कि तांगे वालो को कभी सरकार और प्रशासन की ओर से आर्थिक सहायता नही मिली. बल्कि पुलिस तांगे वालों को परेशान करते है. लॉकडाउन में जीना दुर्भर हो गया है.

अजमेर के तांगा वाले, Ajmer Tanga
घोड़ों को भी नहीं मिल पा रहा पूरा खाना

पढ़ेंः SPECIAL : स्टेरॉयड का ज्यादा इस्तेमाल लोगों की ले रहा है जान, कोरोना के बाद ब्लैक फंगस ने किया परेशान

रमेश तांगे वाले ने बताया कि घोड़ों को दिया जाने वाला चारा महंगा हो गया है. कुट्टी 12 रुपए किलो, दलिया 20 रुपए किलो है. उन्होंने बताया कि खुद भले ही रह जाए लेकिन घोड़ों को खिलाना जरूरी होता है. कब तक कर्जा लेकर घोड़ो को खिलाते रहेंगे. अब हालात भूखों मरने जैसे हो गए हैं.

अजमेर के तांगा वाले, Ajmer Tanga
बड़ी मुश्किल से घोड़ों के लिए हो पाता है दाना पानी का जुगाड़

रोज कमाने और रोज खाने वाले मेहनतकश लोगों में शामिल यह तांगे की तकदीर को बदलते समय ने पहले ही धोखा दे दिया. रही सही कसर कोरोना काल पूरी कर रहा है. शहर को प्रदूषण से मुक्त रखने वाले यह तांगे वाले बदहाली की स्थिति में पहुच गए है. कही ऐसा ना हो कि अगले कुछ वर्षों में तांगे शहर की सड़कों से गायब होकर केवल फोटो में दिखाई दे. ऐसे में सरकार को प्रदूषण मुक्त शहर बनाने के लिए तांगे वालों को आर्थिक संबल देना होगा तभी इन तांगों का अस्तित्व बचा रहेगा.

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