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अजमेर स्मार्ट सिटी योजना : 1947 करोड़ में से ढाई साल में सिर्फ 88 करोड़ ही हुए खर्च

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Published : May 10, 2019, 11:32 PM IST

पिछले ढाई साल से अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने की योजना उदासीनता का शिकार होती नजर आ रही है. इस योजना के लिए अजमेर को केन्द्र सरकार ने 1947 करोड़ का बजट स्वीकार कर रखा है लेकिन विकास कार्य कछुआ चाल पर हो रहा है.

अधिकारियों की उदासीनता का शिकार अजमेर स्मार्ट सिटी योजना

अजमेर. केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना अजमेर में उदासीनता के चलते दम तोड़ती हुई नजर आ रही है. 1947 करोड़ रुपए के भारी-भरकम बजट के साथ शुरू हुई इस योजना की दुर्दशा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ढाई साल में प्रशासन ने मात्र 88 करोड़ रुपए ही इस योजना को साकार करने में खर्च किए हैं.

अजमेर को स्मार्ट सिटी योजना की इस कछुआ चाल के पीछे स्थानीय कलेक्टर व स्मार्ट सिटी लिमिटेड कंपनी के सीईओ विश्वमोहन शर्मा की कार्यशैली को जिम्मेदार माना जा रहा है. योजना को लेकर जिला कलेक्टर विश्व मोहन शर्मा कितने गंभीर है इसकी बानगी इस बात से ही मिल जाती है कि प्रगति की समीक्षा के लिए होने वाली नियमित बैठकें पिछले कुछ महीनों से आयोजित ही नहीं की गई है.

5 साल में खर्च होने हैं 1947 करोड़ रुपए
अजमेर के जिला प्रशासन की उदासीनता अजमेर वासियों के स्मार्ट सिटी के सपने पर ग्रहण बनी हुई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद वर्ष 2017 के जनवरी माह से इस योजना ने अजमेर में आकार लेना शुरू कर दिया था. घोषणा के अनुरूप अगले 5 सालों 1947 करोड़ रुपए के बजट से अजमेर की तस्वीर और तकदीर को बदला जाना था.

वीडियोः अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने की योजना की कछुआ चाल

इस योजना के तहत 923 करोड रुपए का बजट स्मार्ट सिटी मिशन के तहत खर्च किया जाना था. शेष लगभग 1000 करोड़ रुपए कन्वर्जेंस यानी विभिन्न सरकारी विभागों के माध्यम से खर्च किए जाने का प्रावधान रखा गया था. लगभग ढाई साल का समय गुजरने के बाद अब यदि इस योजना की प्रगति जानने की कोशिश करते हैं तो हालत नो दिन चले अढ़ाई कोस वाले दिखाई देते हैं. ढाई सालों में योजना के तहत 88 करोड़ के विकास कार्य ही हो पाए हैं जो पूरी योजना के बजट का महज साढ़े चार प्रतिशत ही है.

केन्द्र सरकार की ये महत्वकांशी योजना जो अजमेर की तस्वीर बदल सकती थी उस योजना को किस तरह से स्थानीय प्रशासन की उदासीनता ने हाशिये पर डाल दिया है. अब जरा इस योजना के दूसरे पहलूओ पर भी नजर डाल लेते हैं जो इस बात की तरफ इशारा करते हैं. यदि कलेक्टर विश्व मोहन शर्मा स्मार्ट सिटी लिमिटेड के सीईओ के रूप में थोड़े भी सजग होते तो योजना का लाभ जनता को मिलना शुरू हो जाता.

अजमेर स्मार्ट सिटी योजना के नाम पर जो खेल चल रहा है उसने अजमेर के लोगों के सपनों को तो तोड़ा ही है. साथ ही अजमेर में विकास के पहिए को भी थाम सा दिया है. अधिकारियों के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि आखिर इस लेटलतीफी के पीछे जिम्मेदार कौन है. यहां तक कि खुद कलेक्टर विश्व मोहन शर्मा भी इस योजना कि प्रगति के सवालों से बचते रहते हैं.

अजमेर. केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना अजमेर में उदासीनता के चलते दम तोड़ती हुई नजर आ रही है. 1947 करोड़ रुपए के भारी-भरकम बजट के साथ शुरू हुई इस योजना की दुर्दशा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ढाई साल में प्रशासन ने मात्र 88 करोड़ रुपए ही इस योजना को साकार करने में खर्च किए हैं.

अजमेर को स्मार्ट सिटी योजना की इस कछुआ चाल के पीछे स्थानीय कलेक्टर व स्मार्ट सिटी लिमिटेड कंपनी के सीईओ विश्वमोहन शर्मा की कार्यशैली को जिम्मेदार माना जा रहा है. योजना को लेकर जिला कलेक्टर विश्व मोहन शर्मा कितने गंभीर है इसकी बानगी इस बात से ही मिल जाती है कि प्रगति की समीक्षा के लिए होने वाली नियमित बैठकें पिछले कुछ महीनों से आयोजित ही नहीं की गई है.

5 साल में खर्च होने हैं 1947 करोड़ रुपए
अजमेर के जिला प्रशासन की उदासीनता अजमेर वासियों के स्मार्ट सिटी के सपने पर ग्रहण बनी हुई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद वर्ष 2017 के जनवरी माह से इस योजना ने अजमेर में आकार लेना शुरू कर दिया था. घोषणा के अनुरूप अगले 5 सालों 1947 करोड़ रुपए के बजट से अजमेर की तस्वीर और तकदीर को बदला जाना था.

वीडियोः अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने की योजना की कछुआ चाल

इस योजना के तहत 923 करोड रुपए का बजट स्मार्ट सिटी मिशन के तहत खर्च किया जाना था. शेष लगभग 1000 करोड़ रुपए कन्वर्जेंस यानी विभिन्न सरकारी विभागों के माध्यम से खर्च किए जाने का प्रावधान रखा गया था. लगभग ढाई साल का समय गुजरने के बाद अब यदि इस योजना की प्रगति जानने की कोशिश करते हैं तो हालत नो दिन चले अढ़ाई कोस वाले दिखाई देते हैं. ढाई सालों में योजना के तहत 88 करोड़ के विकास कार्य ही हो पाए हैं जो पूरी योजना के बजट का महज साढ़े चार प्रतिशत ही है.

केन्द्र सरकार की ये महत्वकांशी योजना जो अजमेर की तस्वीर बदल सकती थी उस योजना को किस तरह से स्थानीय प्रशासन की उदासीनता ने हाशिये पर डाल दिया है. अब जरा इस योजना के दूसरे पहलूओ पर भी नजर डाल लेते हैं जो इस बात की तरफ इशारा करते हैं. यदि कलेक्टर विश्व मोहन शर्मा स्मार्ट सिटी लिमिटेड के सीईओ के रूप में थोड़े भी सजग होते तो योजना का लाभ जनता को मिलना शुरू हो जाता.

अजमेर स्मार्ट सिटी योजना के नाम पर जो खेल चल रहा है उसने अजमेर के लोगों के सपनों को तो तोड़ा ही है. साथ ही अजमेर में विकास के पहिए को भी थाम सा दिया है. अधिकारियों के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि आखिर इस लेटलतीफी के पीछे जिम्मेदार कौन है. यहां तक कि खुद कलेक्टर विश्व मोहन शर्मा भी इस योजना कि प्रगति के सवालों से बचते रहते हैं.

Intro: नियर धर्मेंद्र गहलोत की बाइट एफटीपी के माध्यम से भेजी गई है

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अजमेर/ आज हम बात अजमेर सिटी योजना की कर रहे हैं जो केंद्र सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है जो अजमेर में उदासीनता का शिकार होकर दम तोड़ती हुई नजर आ रही है

1947 करोड़ रुपए के भारी-भरकम बजट के साथ शुरू हुई इस योजना की दुर्दशा को इसी बात से समझा जा सकता है कि ढाई साल का समय गुजर जाने के बाद भी अभी तक इस योजना में मात्र 88 करोड़ ही अभी तक खर्च हो पाए हैं स्मार्ट सिटी योजना की इस कछुआ चाल के पीछे स्थानीय कलेक्टर व स्मार्ट सिटी लिमिटेड कंपनी के सीईओ विश्वमोहन शर्मा की कार्यशैली को जिम्मेदार माना जा रहा है


Body:स्मार्ट सिटी योजना को लेकर जिला कलेक्टर विश्व मोहन शर्मा कितने गंभीर है इस बात को इसी से समझा जा सकता है कि इस योजना की प्रगति की समीक्षा के लिए होने वाली नियमित बैठकें पिछले कुछ महीनों से आयोजित ही नहीं की गई है

अजमेर के जिला प्रशासन की उदासीनता अजमेर वासियों के स्मार्ट सिटी के सपने पर ग्रहण बनी हुई है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद वर्ष 2017 के जनवरी माह से इस योजना ने अजमेर में आकार लेना शुरू कर दिया था घोषणा के अनुरूप अगले 5 सालों 1947 करोड़ रुपए के बजट से अजमेर की तस्वीर और तकदीर को बदला जाना था

लेकिन इस योजना के तहत 923 करोड रुपए का बजट स्मार्ट सिटी मिशन के तहत खर्च किया जाना था शेष लगभग 1000 करोड़ रुपए कन्वर्जेंस यानी विभिन्न सरकारी विभागों के माध्यम से खर्च किए जाने का प्रावधान रखा गया था लगभग ढाई साल का समय गुजरने के बाद अब यदि इस योजना की प्रगति जानने की कोशिश करते हैं तो हालत नो दिन चले अढ़ाई कोस वाली दिखाई देती है ढाई सालों में योजना के तहत 88 करोड़ के विकास कार्य ही उपाय है जो पूरी योजना के बजट का माल साढे चार प्रतिशत ही खर्च किया जा सका है


Conclusion:आंकड़ों की मदद से हमने आप को समझाने की कोशिश की है आखिर इतनी महत्वकांशी योजना जो अजमेर की तस्वीर बदल सकती थी उस योजना को किस तरह से स्थानीय कलेक्टर विश्व मोहन शर्मा की उदासीनता ने हाशिये पर डाल दिया है


अब जरा इस योजना के दूसरे पहलूओ पर भी नजर डाल लेते हैं जो इस बात की तरफ इशारा करते है कि यदि कलेक्टर विश्व मोहन शर्मा स्मार्ट सिटी लिमिटेड के सीईओ के रूप में थोड़े भी सर्जक होते तो योजना का लाभ जनता को मिलना शुरू हो जाता


अजमेर स्मार्ट सिटी योजना के नाम पर जो खेल चल रहा है उसने अजमेर के लोगों के सपनों को तो थोड़ा ही दिया है साथ ही अजमेर में विकास के पहिए को भी थाम सा दिया है अधिकारियों के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि आखिर इस लेटलतीफी के पीछे जिम्मेदार कौन है यहां तक की खुद कलेक्टर विश्व मोहन शर्मा भी इस योजना की प्रगति के सवाल से बचते हुए दिखाई दिय


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बाईट-योगेंद्र ओझा स्थानीय निवासी
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