अजमेर. सोफिया की 'निर्भया' को तब शायद अंदाजा भी नहीं था कि गैस सिलेंडर की महत्वाकांक्षा पाले जिस रास्ते पर वो बढ़ चली है, अगर उसमें किसी ने माचिस की तीली डाल दी तो उसके जैसी न जाने कितनी 'निर्भया' झुलस जाएंगी. अनहोनी होनी थी और वो हो गई. यकीन मानें ये कोई दंत कथा नहीं है बल्कि राजस्थान के अजमेर की वो कलंक गाथा है जिसका दाग तीन दशक बाद भी मिटाए नहीं मिट रहा है.
कई अबलाएं हैं जो उसे जीवन से खुरच कर निकालना चाहती हैं लेकिन झुलसने से उभरा घाव दादी नानी बनने के बाद भी चैन से जीने नहीं दे रहा है. दर्द बीते साल दिसंबर में एक बार फिर सबके सामने उभर आया. जब गैंगरेप की पीड़ा से गुजरी महिला पॉक्सो कोर्ट पहुंची. नासूर इतना गहरा था, टीस इतनी थी कि वो अदालती कक्ष में चिल्ला उठी. वकीलों और अदालत में मौजूद आरोपियों पर बिफरी और बोली, ‘मुझे अब भी बार-बार कोर्ट क्यों बुला रहे हो? 30 साल हो गए… मैं अब एक दादी हूं, मुझे अकेला छोड़ दो.’ उसके इन शब्दों ने 1992 अजमेर कांड (Ajmer sex Scandal) के जख्म को फिर से हरा कर दिया.
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ये वो 'निर्भया' हैं जो अब भी सोफिया की उस एक 'निर्भया' की नासमझी, मासूमियत या यूं कहें कि महत्वाकांक्षा की बलि चढ़ रही हैं. शुरुआत अजमेर के नामचीन सोफिया सेकंड्री स्कूल में पढ़ने वाली 'निर्भया' से होती है. वो लड़की जो चुलबुली थी, महत्वाकांक्षी थी और राजनीति के कैनवास पर अपना नाम उकेरना चाहती थी. ख्वाहिश एक अदद सिलेंडर कनेक्शन पाने की भी थी. 90 के दशक में घरेलू सिलेंडर का कनेक्शन हासिल करना एक बड़ा मुकाम हासिल करने सरीखा था. ये वो समय था जब गैस नंबर पाने के लिए लोग मंत्री, सांसद की सिफारिश लेकर आते थे. रसूख की आस में 12वीं में पढ़ने वाली इस किशोरी ने अपने दोस्त के जरिए कांग्रेस युवा विंग के जिला अध्यक्ष फारूख चिश्ती और उप जिला अध्यक्ष नसीम चिश्ती से मुलाकात की.
एकाध मुलाकात में विश्वास पक्का हो गया. जरूरी कागजातों का आदान-प्रदान हुआ और 'निर्भया' को लगा कि मंजिल करीब है. गैस कनेक्शन उसकी 'पहुंच' की नजीर पेश करेगा. लेकिन वो शायद नहीं जानती थी कि ये एक नजीर ही उसे चौराहे पर खड़ा कर देगी. वो उस सिलेंडर में माचिस की तीली साबित होगी, जिसमें सोफिया संग सावित्री स्कूल की भी कई बालाएं झुलस जाएंगी.
2003 में इस केस (Ajmer Infamous Rape Case) में सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला आया. जिसमें 'निर्भया' की गवाही का ब्योरा दिया गया था. ग्रूमिंग से लेकर Sexual Exploitation की पूरी दास्तां 'निर्भया' ने सुनाई. उसने बताया कि कैसे दरगाह के खादिम परिवार की चिश्ती जोड़ी और उनके दोस्तों के लिए उसने अपनी सहेलियों को परोसने की हामी भरी. कैसे उसकी अश्लील तस्वीरें खींची गईं, जिनकी बिनाह पर उसे ब्लैकमेल किया गया. 'निर्भया' के मुताबिक वो अपने दोस्त के जरिए चिश्ती जोड़ी से मिली. कई बार. उसने बताया कि वो बस स्टैंड पर थी तो वे अपनी मारुति वैन में आए और आश्वस्त कर गए कि वे उसे कांग्रेस में एक 'असाइनमेंट' के साथ जगह दिला देंगे.
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बाद में, उनके सैयद अनवर चिश्ती नाम के शख्स ने उससे एक फॉर्म भरवाया- गैस कनेक्शन का. साथ ही कहा कि इस फॉर्म में उसकी तस्वीर भी चस्पा होगी. सब कुछ तर्कसंगत और नॉर्मल था. तब तक जब तक कि स्कूल से लौटते वक्त उसे नफीस और फारूक ने अपनी मारूति वैन में लिफ्ट नहीं दी. स्कूल के बजाए उसे फॉर्म हाउस ले गए जहां उसका रेप किया गया और जान से मारने की धमकी भी दी. उसके बाद ये सिलसिला जारी रहा. चिश्ती भाइयों के कहने पर वो अपनी सहेलियां लाती रही और बदनियती का ये खेल चलता रहा. बलात्कारी बलात्कार की तस्वीरें भी लेते थे, क्योंकि शर्म और ब्लैकमेल इन पीड़िताओं की चुप्पी बरक़रार रखने की सबसे विश्वसनीय गारंटी थी.
सब जानते थे लेकिन खामोश रहे: 1990 से 1992 के बीच डर्टी पिक्चर का खेल चलता रहा. जिम्मेदारों को भनक थी कि ऐसा गंदा खेल शांत से अजमेर में खेला जा रहा है. जानते थे कि आरोपी रसूखदार, राजनीतिक वरदहस्त प्राप्त जोड़ी फारूक और नफीस चिश्ती और उनके दोस्तों का गैंग है. फिर भी अजमेर की बेटियों की बेबसी पर सब चुप थे! स्कूल की 'निर्भया' को महीनों तक धमकियों और ब्लैकमेल के जाल में फंसाना और उनका गैंग रेप करना इनका शगल बन गया था. इनकी इस काली करतूत का एक साथी वो एक फोटो कलर लैब भी था, जो इन बच्चियों की नग्न तस्वीरें डेवलप कर उसे खास मार्केट में पेश करता था.
'निर्भया' ने अपनी गवाही में भी बताया था कि कैसे उसकी सहेली ने हिम्मत भी दिखाई. पुलिस कॉन्स्टेबल के पास गुहार भी लगाई, लेकिन जब सिस्टम बिका हो तो भला उस मजलूम की कौन सुनता. इस केस में भी ऐसा ही हुआ. इतना ही नहीं इन लड़कियों को बुलाकर बलात्कारियों से धमकी भी दिलवाई गई.
...और इस तरह जाहिर हुई कहानी: ये मामला शायद सैकड़ों से हजारों तक पहुंच जाता अगर एक पत्रकार ने आवाज बुलंद न की होती. उसने एक सिरे को पकड़ा न होता तो ज्यादतियों का ये क्रम कई 'निर्भया' को आग की भट्टी में झोंक चुका होता. नाम है इनका संतोष गुप्ता और तब ये दैनिक नवज्योति अखबार में काम करते थे. बताते हैं कि कैसे एक शख्स के सहारे उन्होंने इस हाई-प्रोफाइल सेक्स स्कैंडल को पब्लिक डोमेन में डाला.
गुप्ता के मुताबिक- पुरुषोत्तम नामक एक रील डेवलपर ने देवेंद्र जैन नाम के शख्स को 'असली चीज' कहकर बलात्कारियों संग प्रताड़ित लड़कियों की फोटो दिखाई. जैन को ये तस्वीरें भेंट भी की. जिसने इसे अखबार तक पहुंचाया.
21 अप्रैल 1992 को गुप्ता ने अजमेर सेक्स कांड पर पहली रिपोर्ट लिखी. खबर का कुछ खास असर नहीं दिखा.जब तक 15 मई 1992 को दूसरी रिपोर्ट नहीं छपी. इस बार बलात्कार की शिकार लड़कियों की वो तस्वीरें थीं जो किसी भी सभ्य समाज को शर्मसार कर दें. इसमें पीड़ितओं की बगैर कपड़ों की तस्वीरें थीं. जिसमें उनकी आंखों को धुंधला किया गया था. पूरे अजमेर ने दो चोटी बनाई उस स्कूली लड़की के दर्द को महसूस किया, जिसकी बगल में बैठे दो वहशी दरिंदे कुटिलता से मुस्कुरा रहे थे. इस छवि ने हंगामा बरपा दिया. शहर सड़क पर आ गया और विरोध में 18 मई को अजमेर बंद रखा गया.
सितंबर 1992 में, 250 पृष्ठों की पहली चार्ज शीट दाखिल हुई. जिसमें 128 प्रत्यक्षदर्शी गवाहों के नाम और 63 सबूत थे. जिला सत्र अदालत ने 28 सितंबर को सुनवाई शुरू की थी.
साम्प्रदायिक सौहार्द्र का लबादा ढंकने की कोशिश : ये वो समय भी था जब देश की राजनीति करवट बदल रही थी. अडवाणी की रथ यात्रा निकली थी और बाबरी मस्जिद को लेकर बहुत कुछ कहा-सुना जाने लगा था. इस केस में एकाध को छोड़ सभी आरोपी मुसलमान थे. शायद इसलिए बढ़ते जनाक्रोश के चलते उस दौर में पहली बार सूफी संतों के इस शहर में NSA लगाया गया, साम्प्रदायिक समरसता स्थापित करने के नाम पर. फिर सितंबर 1992 में 250 पेज की पहली चार्जशीट दायर की गई. जिसमें 128 प्रत्यक्षदर्शी गवाहों के नाम और 63 सबूत थे. जिला सत्र अदालत ने 28 सितंबर को सुनवाई शुरू की थी.
अदालतों में मुकदमों और लंबी तकरीरों का दौर: केस की परतें खुलती गईं और साथ ही अदालतों में सुनवाई का कभी न खत्म होने वाले सिलसिले का भी आगाज हो गया. कानूनी प्रक्रिया जितनी जटिल थी उतनी ही तकलीफदेह उन भुक्तभोगियों के लिए जिन्हें तारीख दर तारीख गवाही के लिए आना पड़ा. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने प्रकरण से जुड़े 12 आरोपियों में से 11 आरोपियों को गिरफ्तार किया था. इनमें से एक, पुरुषोत्तम (फिल्म डिवलेपर), ने 1994 में आत्महत्या कर ली थी. आठ संदिग्धों को 1998 में जिला सत्र अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई, लेकिन साल 2001 में राजस्थान HC ने उनमें से चार को रिहा कर दिया था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में बाकी आरोपियों की सजा को घटाकर 10 साल कर दिया. मुजरिमों के गुनाह के मुकाबले तकलीफ छोटी है, लेकिन पीड़िताओं के दर्द का तो कोई पारावार नहीं है. जिन्हें गवाही के लिए बुलाया जाता है.
अभियोजन विभाग के उपनिदेशक वीरेन्द्र सिंह इस तकलीफ के बारे में बताते हैं. वो गुनाहगारों की स्ट्रैटजी का जिक्र करते हैं. कहते हैं- इस प्रकरण में अभियुक्त जनों ने स्ट्रैटजी बनाई है...50 बयान हो जाते हैं तो नया अभियुक्त आ जाता है या सरेंडर कर देता है. फिर पुनः बयान होता है और इस प्रक्रिया में चौथी बार साक्षी जनों को तलब किया जा रहा है. पीड़िताओं को बार-बार बुलाया जा रहा है. क्या करें न्यायिक प्रक्रिया है.
वो दरिंदे- आरोपी कैलाश सोनी, हरीश तोलानी, फारूक चिश्ती (Congress Related Farooq Chishti), मोइनुल्ला उर्फ खुतन इलाहाबादी, परवेज अंसारी, महेश लुधानी, सैयद अनवर चिश्ती, शमशु भिश्ती उर्फ मेंराडोना और जहूर चिश्ती को पुलिस ने गिरफ्तार किया था. सन 1994 में नसीम उर्फ टार्जन भी गिरफ्तार हो गया. बाद में नफीस चिश्ती, इकबाल भाटी, सलीम चिश्ती, सोहेल गनी, सैयद जमीर हुसैन गिरफ्तार हुए. इस पूरे प्रकरण में आरोपी अल्मास महाराज अब भी फरार है. बाकी संदिग्धों को अगले कुछ दशकों में गिरफ्तार किया गया और उनके मामलों को अलग-अलग समय पर मुकदमे के लिए भेजा गया.
इन दरिंदों में से एक फारूक चिश्ती स्किजोफ्रेनिक है. दावा है कि इसलिए वो मुकदमे का सामना करने के लिए मानसिक तौर पर सक्षम नहीं है, लेकिन 2007 में, एक फास्ट-ट्रैक अदालत ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई. 2013 में, राजस्थान उच्च न्यायालय ने माना कि उसने पर्याप्त समय कैद में बिता दिया है और इस वजह से उसे रिहा कर दिया गया.
नफीस चिश्ती, एक हिस्ट्री शीटर था. जो नशीली दवाओं की तस्करी के मामलों में भी वांछित था, 2003 में दिल्ली पुलिस ने उसे बुर्के की आड़ में बचने का प्रयास करते हुए पकड़ा था. एक अन्य संदिग्ध इकबाल भट 2005 तक गिरफ्तारी से बचता रहा, जबकि सुहैल गनी चिश्ती ने 2018 में आत्मसमर्पण कर दिया.
अंदर से डर है, समाज की शर्म भी फिर भी...: ईटीवी भारत ने एक ऐसी जाबांज महिला से मुलाकात की जो उस समय 18 बरस की थी. 6 भाई बहनों में पली बढ़ी. गरीब परिवार की मानसिक तौर पर थोड़ी कमजोर बच्ची. अपने पड़ोस के लड़के के कहने पर भोली लड़की उसके साथ चल दी, खंडहर में एक-एक कर 8 लोगों ने उसके साथ ज्यादती की. फोटो खींची (जैसा इस गिरोह का Modus Operandi था), भाइयों को मारने की धमकी दी, ब्लैकमेल किया और अलग-अलग जगह पर रेप किया.
ऐसी ही एक वारदात का इस संवाददाता से उसने जिक्र किया. बताया- तब किशनगढ़ में मेरे साथ गलत काम हुआ. उस वक्त तो मेरा कुर्ता भी हवा में उड़ गया. मैं उसी तरह बैठी रही. तब एक भले पुलिस वाले ने मेरी मदद की. कुर्ता दिया और घरवालों को खबर की. जब भी याद करती हूं एक अजीब सी बेचैनी महसूस करती हूं. उस एक पल ने मुझे तोड़ कर रख दिया. मेरी ही तस्वीरें अदालत में बतौर सबूत पेश होती रहीं. मुझे पहले 2001 में बुलाया गया. मानसिक तौर पर न तो मैं परिपक्व थी न मुझमें समझ थी. मैंने गवाही ठीक से नहीं दी और मुलजिम रिहा हो गए. 2020 में एक पुलिसवाला भईया मुझे ढूंढते हुए आया और मैं अदालत की दहलीज पर सच का साथ देने पहुंच गई.
इस गरीब 'निर्भया' की जिन्दगी भी आजमाइशों से भरी रही. दरिंदगी की शिकार हुई तो गर्भ ठहरा. बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ. फिर ब्याह हुआ तो पति 4 दिन बाद मायके छोड़ गया. बलात्कार फिर हुआ एक बच्चे को जन्म दिया जो बाद में मर गया. फिर 28 साल की उम्र में दूसरे शहर के शख्स से ब्याही गई. एक बेटा हुआ. उसने भी 2010 में तलाक दे दिया. फिर भी इसके दिल से उसका प्यार खत्म नहीं हुआ. बड़े भोलेपन से कहती है सब उन्हें अनिल कपूर और मुझे श्रीदेवी कहते थे. लेकिन ऊपर वाले को शायद ये मंजूर नहीं था. 3 महीने पहले ही मेरे अनिल कपूर का देहांत हो गया. बेटा है लेकिन वो मेरे साथ नहीं पति के घरवालों के पास है. पर संतोष है कि चलो मेरे अदालती पेशी के बारे में तो नहीं जानता.
भोली सी इस 'निर्भया' के मुंह से निकले ये शब्द उसकी बेबसी और बेचारगी को एकसाथ बयान कर देते हैं. इसका मासूम अंदाज तो तब भी दिखा था जब इसने अपने दरिंदों की शिनाख्ती के दौरान एक को भईया कह कर पुकारा था.वीरेन्द्र सिंह पोक्सो कोर्ट के उस बयान के बारे में भी बताते हैं. कहते हैं वो बयान आज भी कानों में गूंजता है और दिमाग को सन्न कर जाता है. गवाह ने कहा था- नफ़ीस, जमीर, टार्ज़न…और ये भईया भी था जिन्होने रेप करा.’ वो 'भईया' सुहैल गनी था जिसे पहले 2001 में उसने पहचानने से इनकार कर दिया था.
अब तो जागो माधव: इस केस की कलंक गाथा से सबको रूबरू कराने वाले संतोष गुप्ता के ये शब्द सोफिया की 'निर्भया' के दर्द और उनकी पीड़ा को बयान करते हैं जब वो कहते हैं- बहुत हुआ द्रौपदी का चीर हरण...अब तो जागो माधव.