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SPECIAL : इतिहास का झरोखा है अढ़ाई दिन का झोपड़ा...ख्वाजा साहब आने वाले जायरीन जरूर देखते हैं ये इमारत - Dargah of Ajmer Khwaja Saheb

असल में यह झोपड़ा नहीं बल्कि एक मस्जिद है जो सैकड़ों साल पुरानी है. यह भारत की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक है. अजमेर का सबसे पुराना स्मारक भी है. आखिर इस मस्जिद का नाम अढ़ाई दिन का झोपड़ा क्यों रखा गया इसके पीछे भी एक इतिहास है. जो करीब 800 साल पुराना है.

Ajmer's adhai din ka jhonpda, Mughal buildings of Rajasthan, Sanskrit college of King Biseldev of Chauhan dynasty, Dargah of Ajmer Khwaja Saheb dargah, Ajmer tourist places
इतिहास का झरोखा है अढ़ाई दिन का झोंपड़ा
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Published : Feb 15, 2021, 7:38 PM IST

अजमेर. सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह से चंद कदमों की दूरी पर अंदरकोट में एक मस्जिद स्थित है जिसे अढ़ाई दिन का झोपड़ा कहा जाता है. अपनी खूबसूरती के कारण ये इमारत दुनियाभर में प्रसिद्ध है. अजमेर आने वाले पर्यटक इस इमारत को जरूर देखते हैं. देखिये यह रिपोर्ट...

अजमेर की ऐतिहासिक धरोहर- अढ़ाई दिन का झोंपड़ा

असल में यह झोपड़ा नहीं बल्कि एक मस्जिद है जो सैकड़ों साल पुरानी है. यह भारत की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक है. अजमेर का सबसे पुराना स्मारक भी है. आखिर इस मस्जिद का नाम अढ़ाई दिन का झोपड़ा क्यों रखा गया इसके पीछे भी एक इतिहास है. जो करीब 800 साल पुराना है.

Ajmer's adhai din ka jhonpda, Mughal buildings of Rajasthan, Sanskrit college of King Biseldev of Chauhan dynasty, Dargah of Ajmer Khwaja Saheb dargah, Ajmer tourist places
मेहराब और गुंबदों पर लिखी हैं आयतें

1192 ईस्वी में हुआ था अढ़ाई दिन के झोपड़े का निर्माण

इस मस्जिद को 1192 ईस्वी में अफगानी आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी के आदेश पर उसके सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था. अढ़ाई दिन का झोपड़े के मुख्य द्वार के बाई ओर संगमरमर का एक शिलालेख है.

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इतिहास का झरोखा है अढ़ाई दिन का झोंपड़ा

जिस पर संस्कृत में उस महाविद्यालय का जिक्र है जिसे चौहानवंश के शासक बीसलदेव ने बनवाया था. सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह पर काफी तादाद में जायरीन जियारत करने के लिए पहुंचते हैं. ये जायरीन अढ़ाई दिन के झोपड़े को देखना नहीं भूलते.

पढ़ें- जवाहर-गन्ना की अनसुनी प्रेम कहानी, भरतपुर में आज भी प्रचलित है ये किस्सा

इस मस्जिद में 70 स्तम्भ हैं

अढ़ाई दिन का झोपड़ा में कुल 70 स्तंभ हैं. इन स्तंभों की ऊंचाई करीब 25 फीट है. हर स्तंभ पर खूबसूरत नक्काशी की गई है. 1990 के दशक में यहां मिली पुरा सामग्री को संरक्षित भी किया गया है. इस मस्जिद को नेशनल हेरिटेज में शामिल किया गया है.

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जियारत करने वाले जायरीन जरूर करते हैं दर्शन

जिसे जामा अल्तमश मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है. बाहर से आने वाले पर्यटकों की तादाद में यहां अच्छी खासी है. लाल पत्थरों से तामीर इस ऐतिहासिक इमारत में दिलकश नक्काशी मन मोह लेती है. इमारत के बाहरी हिस्से की तरफ कलामे इलाही लिखा देखा जा सकता है.

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1192 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाई थी इमारत

इमारत के मेहराब में खूबसूरत अंदाज और बेहतरीन लिखावट में कुरान की आयतें भी दर्ज हैं. पर्यटक जब भी अजमेर जियारत के लिए आते हैं तो इस मस्जिद में नमाज जरूर अदा करते हैं.

अजमेर. सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह से चंद कदमों की दूरी पर अंदरकोट में एक मस्जिद स्थित है जिसे अढ़ाई दिन का झोपड़ा कहा जाता है. अपनी खूबसूरती के कारण ये इमारत दुनियाभर में प्रसिद्ध है. अजमेर आने वाले पर्यटक इस इमारत को जरूर देखते हैं. देखिये यह रिपोर्ट...

अजमेर की ऐतिहासिक धरोहर- अढ़ाई दिन का झोंपड़ा

असल में यह झोपड़ा नहीं बल्कि एक मस्जिद है जो सैकड़ों साल पुरानी है. यह भारत की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक है. अजमेर का सबसे पुराना स्मारक भी है. आखिर इस मस्जिद का नाम अढ़ाई दिन का झोपड़ा क्यों रखा गया इसके पीछे भी एक इतिहास है. जो करीब 800 साल पुराना है.

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मेहराब और गुंबदों पर लिखी हैं आयतें

1192 ईस्वी में हुआ था अढ़ाई दिन के झोपड़े का निर्माण

इस मस्जिद को 1192 ईस्वी में अफगानी आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी के आदेश पर उसके सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था. अढ़ाई दिन का झोपड़े के मुख्य द्वार के बाई ओर संगमरमर का एक शिलालेख है.

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इतिहास का झरोखा है अढ़ाई दिन का झोंपड़ा

जिस पर संस्कृत में उस महाविद्यालय का जिक्र है जिसे चौहानवंश के शासक बीसलदेव ने बनवाया था. सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह पर काफी तादाद में जायरीन जियारत करने के लिए पहुंचते हैं. ये जायरीन अढ़ाई दिन के झोपड़े को देखना नहीं भूलते.

पढ़ें- जवाहर-गन्ना की अनसुनी प्रेम कहानी, भरतपुर में आज भी प्रचलित है ये किस्सा

इस मस्जिद में 70 स्तम्भ हैं

अढ़ाई दिन का झोपड़ा में कुल 70 स्तंभ हैं. इन स्तंभों की ऊंचाई करीब 25 फीट है. हर स्तंभ पर खूबसूरत नक्काशी की गई है. 1990 के दशक में यहां मिली पुरा सामग्री को संरक्षित भी किया गया है. इस मस्जिद को नेशनल हेरिटेज में शामिल किया गया है.

Ajmer's adhai din ka jhonpda, Mughal buildings of Rajasthan, Sanskrit college of King Biseldev of Chauhan dynasty, Dargah of Ajmer Khwaja Saheb dargah, Ajmer tourist places
जियारत करने वाले जायरीन जरूर करते हैं दर्शन

जिसे जामा अल्तमश मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है. बाहर से आने वाले पर्यटकों की तादाद में यहां अच्छी खासी है. लाल पत्थरों से तामीर इस ऐतिहासिक इमारत में दिलकश नक्काशी मन मोह लेती है. इमारत के बाहरी हिस्से की तरफ कलामे इलाही लिखा देखा जा सकता है.

Ajmer's adhai din ka jhonpda, Mughal buildings of Rajasthan, Sanskrit college of King Biseldev of Chauhan dynasty, Dargah of Ajmer Khwaja Saheb dargah, Ajmer tourist places
1192 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाई थी इमारत

इमारत के मेहराब में खूबसूरत अंदाज और बेहतरीन लिखावट में कुरान की आयतें भी दर्ज हैं. पर्यटक जब भी अजमेर जियारत के लिए आते हैं तो इस मस्जिद में नमाज जरूर अदा करते हैं.

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