नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति की पुनर्नियुक्ति को रद्द कर दिया. भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि अधिनियम, 1996 के तहत कुलपति को नियुक्त करने या फिर से नियुक्त करने की क्षमता चांसलर को दी गई है. किसी अन्य को नहीं. कोई भी व्यक्ति, यहां तक कि प्रो-चांसलर या कोई भी वरिष्ठ प्राधिकारी, वैधानिक प्राधिकारी के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है.
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने पीठ की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा, 'यदि कोई निर्णय वैधानिक प्राधिकारी द्वारा किसी ऐसे व्यक्ति के आदेश पर या सुझाव पर लिया जाता है जिसकी इसमें कोई वैधानिक भूमिका नहीं है तो यह स्पष्ट रूप से अवैध होगा. इस प्रकार यह निर्णय लेने की प्रक्रिया है जिसने प्रतिवादी संख्या 4 की कुलपति के रूप में पुनर्नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया को दूषित कर दिया है. शीर्ष अदालत ने पाया कि पुनर्नियुक्ति राज्य सरकार के हस्तक्षेप के कारण दूषित हुई थी.
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा,'हम इस अपील को स्वीकार करते हैं और 23 फरवरी, 2022 को उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय और आदेश को रद्द कर दिया गया. परिणामस्वरूप 23 नवंबर, 2021 की अधिसूचना के तहत कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति पद से बर्खास्त प्रतिवादी संख्या4 की पुनर्नियुक्ति की रद्द की जाती है.
इस साल अक्टूबर में कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति गोपीनाथ रवींद्रन की पुनर्नियुक्ति के मामले में केरल सरकार को स्पष्ट झटका देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि वीसी की नियुक्ति केवल कानूनी मानदंडों के अनुसार ही की जा सकती है. शीर्ष अदालत का फैसला केरल उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ द्वारा दिए गए फरवरी 2022 के फैसले को चुनौती देने वाली अपील पर आया, जिसमें वीसी की पुनर्नियुक्ति को मंजूरी दी गई और दिसंबर, 2021 के एकल न्यायाधीश पीठ के फैसले की पुष्टि की गई.