भरतपुर. हिमालय की वादियों में भरतपुर की 'रुक्मणि' लहलहाती नजर आएगी. भरतपुर स्थित सरसों अनुसंधान निदेशालय की ओर से तैयार की गई नई किस्म की सरसों का नाम डीआरएमआर -1165-40 यानी रुक्मणि रखा गया है. सरसों की यह किस्म न केवल अच्छी पैदावार देगी, बल्कि तेल की मात्रा भी भरपूर होगी. इस नई किस्म की सरसों की बुवाई जम्मू कश्मीर के साथ ही राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में भी की जा सकेगी.
135 दिन में पककर तैयार होगी फसल : सरसों अनुसंधान निदेशालय के निदेशक डॉ. पीके राय ने बताया (Bharatpur new mustard seed Rukmani) कि निदेशालय ने नई किस्म की सरसों डीआरएमआर -1165-40 यानी रुक्मणि तैयार की है. यह किसानों को काफी पसंद आ रही है. उन्होंने बताया कि यह नई किस्म पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और जम्मू कश्मीर में आसानी से और अच्छा उत्पादन दे सकेगी. यह किस्म 135 से 140 दिन में पककर तैयार हो जाएगी. इसमें तेल का अंश 41 से 42% तक है. साथ ही प्रति हेक्टेयर में 1680 से 1850 किलोग्राम तक पैदावार हो सकेगी.
अगले साल सीड चेन से हट जाएगी गिरिराज : डॉ. पीके राय ने बताया कि निदेशालय की (New variety of mustard Seed Developed in Bharatpur) सबसे लोकप्रिय गिरिराज (IJ-31) अगले साल डीआरएमआर की सीड चेन से हटा दी जाएगी. अगले साल गिरिराज को पूरे दस साल हो जाएंगे. भारत सरकार के नियमानुसार किसी भी किस्म को 10 साल से ज्यादा सीड चेन में नहीं रख सकते. ऐसे में रुक्मणि किस्म किसानों के लिए बेहतर विकल्प बनेगी.
डीआरएमआर की ये किस्में भी बेहतरीन :
1. डीआरएमआर - 2017- 15 'राधिका' : यह किस्म 131 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसमें तेल की मात्रा 40.7 प्रतिशत और औसत उत्पादन 1788 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. इस किस्म को 'राधिका' नाम से जाना जाता है.
2. डीआरएमआरआईसी -16-38 'बृजराज' : यह किस्म 132 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसमें तेल की मात्रा 39.9% और औसत उत्पादन 1733 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. इस किस्म को 'ब्रजराज' नाम से जाना जाता है.
3. पूसा सरसों-32 : निदेशालय के नेतृत्व में अखिल भारतीय राई सरसों परियोजना के अंतर्गत इस किस्म का विकास भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के वैज्ञानिकों ने किया है. इस किस्म का चयन उत्तर पूर्वी राजस्थान के साथ-साथ पंजाब-हरियाणा, पूर्वी उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में बुवाई के लिए किया गया है. यह किस्म 145 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसमें तेल की मात्रा 38% और प्रति हेक्टेयर उत्पादन 2713 किलोग्राम है.
4. तोरिया की टीएस-38 : इस किस्म का विकास असम कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने किया है. इस किस्म को सिंचित अवस्था में समय पर बुवाई के लिए असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा राज्यों के लिए विकसित किया गया है.
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विभिन्न प्रकार की सरसों की किस्में विकसित : भरतपुर स्थित सरसों अनुसंधान निदेशालय सरसों की नई-नई किस्म (Variety of mustard Seeds in Bharatpur) विकसित करता है. यहां अब तक 9 विभिन्न प्रकार की सरसों की किस्में विकसित की जा चुकी हैं. इतना ही नहीं भरतपुर स्थित सरसों अनुसंधान निदेशालय में विकसित की गई सरसों की किस्मों को न केवल भरतपुर बल्कि राजस्थान समेत देश के 17 राज्यों में बोया जाता है. इनमें राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, जम्मू कश्मीर, असम, मेघालय, मणिपुर समेत 17 राज्य शामिल हैं.