भोपाल। झारखंड में महिला आईएएस पूजा सिंघल के पास से करोड़ों रुपये की संपत्ति उजागर हुई है, जो कि काली कमाई से जुटाई गई. इस बीच मध्य प्रदेश सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग ने आदेश निकाला कि कोई भी पुलिस अधिकारी, लोकायुक्त संगठन या ईओडब्ल्यू जैसी भ्रष्टाचार निरोधक संस्थाएं भ्रष्टाचार से जुड़े किसी मामले में सीधे जांच या अधिकारी के खिलाफ एफआईआर या किसी भी तरह की पूछताछ नहीं कर सकती है. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 17-ए में यह प्रावधान करने के बाद अब अखिल भारतीय सेवा या उसके किसी वर्ग के भी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले मुख्यमंत्री से अनुमति अनिवार्य होगी. (Prevention of Corruption Act 1988)
एमपी में 100 से अधिक अधिकारियों पर चल रही जांचः मध्यप्रदेश विधानसभा ने प्रदेश के आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों के भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की जानकारी दी. 35 आईएएस के खिलाफ लोकायुक्त की जांच और 28 के विरुद्ध ईओडब्ल्यू जांच की जा रही है. वहीं 20 आईपीएस और 39 आईएफएस के खिलाफ भी भ्रष्टाचार की शिकायतें की गई हैं. जानकारी के मुताबिक इनमें से कई अफसर ऐसे हैं, जो रिटायर हो चुके हैं. वहीं कुछ निलंबित हैं. लोकायुक्त में जिन आईएएस अधिकारियों के खिलाफ जांच लंबित है- उनमें बसंत कुर्रे, ललित दाहिमा, जेडीयू शेख, अशोक कुमार और वीरेंद्र कुमार शामिल हैं. राज्य प्रशासनिक सेवा के मनीष सेठिया, पवन कुमार जैन, निलय सत्भैया, विवेक सिंह, पंकज शर्मा, एमपी नामदेव शामिल हैं. पुलिस महकमे के अधिकारी अनिल कुमार मिश्रा, देवेंद्र सिरोलिया, सुशील रंजन सिंह, विकास पाठक और सिद्धार्थ चौधरी के खिलाफ भी शिकायत दर्ज है. (Ruckus in MP on Section 17A)
क्या है प्रदेश का नया नियमः मप्र सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग ने नए नियम के तहत प्रावधान किया गया है कि वर्ग-दो से लेकर चार तक के अधिकारी और कर्मचारियों के मामले में प्रशासकीय विभाग की अनुमति अनिवार्य होगी. इस अनुमति के बाद ही कोई पुलिस अधिकारी आगे की कार्रवाई कर सकता है. यह नियम भारत सरकार के कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय (कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग) के निर्देशों के तहत जारी किया गया है. यह देशभर में लागू होंगे. राज्य सरकार द्वारा पांच मई को जारी नियमों के तहत अखिल भारतीय सेवा या वर्ग-एक के अधिकारियों के भ्रष्टाचार के मामलों में प्रशासकीय विभाग उन्हें जांचेगा, परखेगा और फिर उसे मुख्यमंत्री समन्वय में भेजेगा. मुख्यमंत्री के स्तर पर जो निर्णय होगा, प्रशासकीय विभाग उससे संबंधित जांच एजेंसी को अवगत कराएगा.
लाचार हो जाएंगी भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियांः नए नियमों के तहत भ्रष्टाचार नियंत्रण की जांच में लगी एजेंसियां जैसे लोकायुक्त संगठन की विशेष पुलिस स्थापना या ईओडब्ल्यू जैसी संस्थाएं पंगु बनकर रह जाएंगी. इन संस्थाओं के पास भ्रष्टाचार की जांच का भी अधिकार नहीं होगा.
जब किसी के हाथ बांध दिए जाएंगे, तो जाहिर सी बात है कि अधिकारी डरेगा क्यों ? इससे अधिकारी निरंकुश हो जाएंगे. ऐसे में भ्रष्टाचार और बढ़ेगा. अब जो अधिकारी सरकार की गुड-बुक में रहेंगे, उनके खिलाफ कार्रवाई की अनुमति सरकार नहीं देगी.
एससी त्रिपाठी, पूर्व पुलिस महानिदेशक, मप्र
2021 में क्यों हटी थी धारा 17A: जुलाई 2021 के आदेश में लोकायुक्त और आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो को भ्रष्ट अफसर या कर्मचारी के खिलाफ जांच के लिए संबंधित विभाग से इजाजत नहीं लेने के आदेश जारी किए गए थे. सरकार ने 7 महीने पहले भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में बदलाव कर जांच एजेसिंयों की ताकत कमजोर कर दी थी. इसे लेकर लोकायुक्त जस्टिस एनके गुप्ता ने सरकार से पूछा था कि एक्ट में बदलाव से पहले अनुमति क्यों नहीं ली गई. लोकायुक्त ने सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव विनोद कुमार और प्रमुख सचिव (कार्मिक) दीप्ति गौड़ मुखर्जी को नोटिस दिया था. अफसरों को 29 जुलाई को जवाब पेश करना था, लेकिन उसके एक दिन पहले ही राज्य शासन ने एक्ट में जोड़ी गई धारा (17A) हटा दी है. इस धारा के तहत बने उस नियम को सरकार ने हटाया, जिसमें लोकायुक्त-EOW को जांच के लिए विभाग की अनुमति लेनी पड़ती थी.
वरिष्ठ अधिकारियों पर ठीक तरह से कार्रवाई हो, इसके लिए कानून में बदलाव किया गया है. नेता प्रतिपक्ष गोंविद सिंह ने नए कानून को ठीक ढंग से समझा नहीं है, यही वजह है कि वे इस तरह के आरोप लगा रहे हैं.
डॉ. नरोत्तम मिश्रा, गृहमंत्री
दिसंबर 2020 में जोड़ी गई थी धारा-17A: राज्य सरकार ने 26 दिसंबर 2020 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा-17 में 17-ए जोड़ी थी. इसके तहत लोकायुक्त और EOW समेत अन्य जांच एजेंसियों को सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ जांच और पूछताछ से पहले विभाग से अनुमति लेने का प्रावधान जोड़ा गया था. इससे पहले, शिकायत के आधार पर भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ ये एजेंसियां सीधी जांच करती थी, लेकिन प्रदेश सरकार के नए आदेश के तहत उनसे ये अधिकार छीन लिए गए हैं. इसके तहत EOW और लोकायुक्त जैसी एजेंसियां जांच के लिए शिकायतों को भ्रष्ट अधिकारियों के विभाग के पास भेजेंगी. इसके बाद उसका विभाग ही तय करता कि मामले की जांच कराई जानी चाहिए या नहीं.
धारा 17 ए जोड़कर भ्रष्टाचारियों को बढ़ावा देने का काम किया जा रहा है. गोविंद सिंह ने आरोप लगाया कि सरकार द्वारा ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त की उपयोगिता खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है. आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों पर सीधे कार्रवाई न होने के लिए धारा 17-ए जोड़ी गई है. बिना मुख्यमंत्री की अनुमति के भ्रष्ट अधिकारियों पर एफआईआर दर्ज नहीं हो सकेगी. नेता प्रतिपक्ष ने तंज कसते हुए कहा कि एजेंसियों पर ताला लगा दीजिए.
डॉ. गोविंद सिंह, नेता प्रतिपक्ष, विधानसभा, मप्र