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रेल लाइन बिछाने में छूट गये थे ब्रिटिश इंजीनियरों के पसीने, हिमाचली फकीर ने लठ से रच दिया था इतिहास

कालका-शिमला रेलवे हैरिटेज ट्रैक का इतिहास काफी रोचक है. सर्पीली पहाड़ियों के बीच से ट्रेन शिमला पहुंचाना बिलकुल पर आसान नहीं था. सोलन के समीप इंजीनियर बरोग टनल के दो छोर को नहीं मिला पा रहा था. इसके बाद टनल को बनाने का काम मस्तमौला बाबा भलकू को सौंपा गया.

बाबा भलकू रेल म्यूजियम
बाबा भलकू रेल म्यूजियम
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Published : Aug 31, 2021, 5:23 AM IST

शिमलाः कालका-शिमला रेलवे हैरिटेज ट्रैक का इतिहास अपने आप में बेहद खास है. साल 1903 में बना यह रेलवे ट्रैक कालका से शिमला का जोड़ता है. ब्रिटिश हुक्मरानों ने ब्रिटिश शासन काल की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला को जोड़ने के लिए इस तरह का निर्माण करवाया.

सर्पीली पहाड़ियों के बीच से ट्रेन शिमला पहुंचाना बिलकुल पर आसान नहीं था. सोलन के समीप इंजीनियर बरोग टनल के दो छोर को नहीं मिला पा रहा था जिस वजह से रेलवे ट्रैक का काम रुक गया था. इससे नाराज होकर नाराज अंग्रेज सरकार ने इंजीनियरों पर 1 रुपये का जुर्माना लगाया था. असफलता और जुर्माने से खुद को अपमानित महसूस कर बरोक ने आत्महत्या कर ली थी.

वीडियो रिपोर्ट.

इसके बाद टनल को बनाने का काम मस्तमौला बाबा भलकू को सौंपा गया. हैरत की बात है कि बाबा भलकू अपनी छड़ी के साथ पहाड़ और चट्टानों को ठोक ठोक कर स्थान को चिन्हित करते चले गए और अंग्रेज अधिकारी उनके पीछे चलते रहे. खास बात यह रही कि बाबा भलकू का अनुमान सौ फीसदी सही रहा.

बाबा भलकू की वजह से सुरंग के दोनों छोर मिल गए. इस तरह सुरंग नंबर 33 पूरी हुई. साथ ही रेलवे के इतिहास में अमर हो गया बाबा भलकू का नाम. शिमला गजट में दर्ज है कि ब्रिटिश हुकूमत ने बाबा भलकू को पगड़ी और मेडल देकर सम्मानित किया था. सोलन जिला के मशहूर पर्यटन स्थल चायल के समीप झाजा गांव के रहने वाले थे. उनके बारे में कई आख्यान बताए जाते हैं.

बाबा भलकू दिव्य दृष्टि संपन्न फकीर माने जाते थे. उनके बारे में किस्सा बताया जाता है कि उनकी दाढ़ी लंबी और उलझी हुई थी. बाबा भलकू के देहावसान के बारे में किसी के पास कोई जानकारी नहीं है. इलाके के पुराने लोग बताते हैं कि अपने अंतिम समय में बाबा वृंदावन चले गए थे और उसके बाद बाबा भलकू का कोई पता नहीं चला. बाद में सुरंग का नामकरण कर्नल बरोग के नाम पर किया गया.

बाबा भलकू रेल म्यूजियम
बाबा भलकू रेल म्यूजियम

इसे सुरंग नंबर 33 के नाम से भी जाना जाता है. 3 साल के अंतराल में ही 1143.61 मीटर से बन गई. इसके निर्माण में 8.40 लाख रुपये खर्च हुए थे. बता दें कि जिस सुरंग के दो छोड़ नहीं मिल पाए थे, वह मौजूदा सुरंग से कुछ ही दूरी पर है. कालका-शिमला रेलवे मार्ग पर 889 पुल और 103 सुरंग हैं, लेकिन इस समय सुरंग की संख्या 102 है क्योंकि सुरंग नंबर 43 भूस्खलन के कारण ध्वस्त हो गई थी.

जुलाई, 2011 में शिमला के पुराना बस अड्डे के नजदीक बाबा भलकू रेल म्यूजियम बनाया गया था. यहां कालका शिमला रेलवे लाइन से संबंधित पुराने चित्र और बाबा भलकू की प्रतिमा स्थापित की गई है. इसका जिम्मा उत्तर रेलवे के पास है. इस म्यूजियम के जरिए लोगों तक बाबा भलकू के योगदान के बारे में जानकारी दी जाती है.

बाबा भलकू
बाबा भलकू

ये भी पढे़ं- टिकैत से उलझने वाले विक्की चौहान ने मांगी माफी, बोले: अगली बार आएंगे हिमाचल तो करूंगा भव्य स्वागत

शिमलाः कालका-शिमला रेलवे हैरिटेज ट्रैक का इतिहास अपने आप में बेहद खास है. साल 1903 में बना यह रेलवे ट्रैक कालका से शिमला का जोड़ता है. ब्रिटिश हुक्मरानों ने ब्रिटिश शासन काल की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला को जोड़ने के लिए इस तरह का निर्माण करवाया.

सर्पीली पहाड़ियों के बीच से ट्रेन शिमला पहुंचाना बिलकुल पर आसान नहीं था. सोलन के समीप इंजीनियर बरोग टनल के दो छोर को नहीं मिला पा रहा था जिस वजह से रेलवे ट्रैक का काम रुक गया था. इससे नाराज होकर नाराज अंग्रेज सरकार ने इंजीनियरों पर 1 रुपये का जुर्माना लगाया था. असफलता और जुर्माने से खुद को अपमानित महसूस कर बरोक ने आत्महत्या कर ली थी.

वीडियो रिपोर्ट.

इसके बाद टनल को बनाने का काम मस्तमौला बाबा भलकू को सौंपा गया. हैरत की बात है कि बाबा भलकू अपनी छड़ी के साथ पहाड़ और चट्टानों को ठोक ठोक कर स्थान को चिन्हित करते चले गए और अंग्रेज अधिकारी उनके पीछे चलते रहे. खास बात यह रही कि बाबा भलकू का अनुमान सौ फीसदी सही रहा.

बाबा भलकू की वजह से सुरंग के दोनों छोर मिल गए. इस तरह सुरंग नंबर 33 पूरी हुई. साथ ही रेलवे के इतिहास में अमर हो गया बाबा भलकू का नाम. शिमला गजट में दर्ज है कि ब्रिटिश हुकूमत ने बाबा भलकू को पगड़ी और मेडल देकर सम्मानित किया था. सोलन जिला के मशहूर पर्यटन स्थल चायल के समीप झाजा गांव के रहने वाले थे. उनके बारे में कई आख्यान बताए जाते हैं.

बाबा भलकू दिव्य दृष्टि संपन्न फकीर माने जाते थे. उनके बारे में किस्सा बताया जाता है कि उनकी दाढ़ी लंबी और उलझी हुई थी. बाबा भलकू के देहावसान के बारे में किसी के पास कोई जानकारी नहीं है. इलाके के पुराने लोग बताते हैं कि अपने अंतिम समय में बाबा वृंदावन चले गए थे और उसके बाद बाबा भलकू का कोई पता नहीं चला. बाद में सुरंग का नामकरण कर्नल बरोग के नाम पर किया गया.

बाबा भलकू रेल म्यूजियम
बाबा भलकू रेल म्यूजियम

इसे सुरंग नंबर 33 के नाम से भी जाना जाता है. 3 साल के अंतराल में ही 1143.61 मीटर से बन गई. इसके निर्माण में 8.40 लाख रुपये खर्च हुए थे. बता दें कि जिस सुरंग के दो छोड़ नहीं मिल पाए थे, वह मौजूदा सुरंग से कुछ ही दूरी पर है. कालका-शिमला रेलवे मार्ग पर 889 पुल और 103 सुरंग हैं, लेकिन इस समय सुरंग की संख्या 102 है क्योंकि सुरंग नंबर 43 भूस्खलन के कारण ध्वस्त हो गई थी.

जुलाई, 2011 में शिमला के पुराना बस अड्डे के नजदीक बाबा भलकू रेल म्यूजियम बनाया गया था. यहां कालका शिमला रेलवे लाइन से संबंधित पुराने चित्र और बाबा भलकू की प्रतिमा स्थापित की गई है. इसका जिम्मा उत्तर रेलवे के पास है. इस म्यूजियम के जरिए लोगों तक बाबा भलकू के योगदान के बारे में जानकारी दी जाती है.

बाबा भलकू
बाबा भलकू

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