देहरादूनः हाल ही तुर्की और सीरिया में भूकंप ने भारी तबाही मचाई. इस भयानक भूकंप ने दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है. अब वैज्ञानिक उत्तराखंड, हिमाचल के साथ ही पश्चिमी नेपाल में भी बड़े भूकंप को लेकर सचेत करते नजर आ रहे हैं. एनजीआरआई हैदराबाद के साइंटिस्ट डॉ. एन पूर्णचंद्र राव ने हिमालयी रीजन में भूकंप आने की संभावना जताई है. ऐसे में एक बड़ा अदृश्य खतरा कभी भी हिमालय को दहला सकता है. जिसे लेकर अभी से चिंता जताई जा रही है.
उत्तराखंड, हिमाचल और पश्चिमी नेपाल में बड़े भूकंप आने की है संभावनाः दरअसल, हैदराबाद स्थित नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के साइंटिस्ट डॉक्टर एन पूर्णचंद्र राव की ओर से उत्तराखंड हिमाचल और पश्चिमी नेपाल में बड़े भूकंप आने के दावा किए जाने के बाद से ही हलचलें काफी बढ़ गई है. साइंटिस्ट एन पूर्णचंद्र राव ने दावा किया है कि टेक्टॉनिक प्लेट हर साल करीब 5 सेंटीमीटर आगे बढ़ रही है.
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We've a strong network of 18 seismograph stations in Uttarakhand. The region referred to as the seismic gap between Himachal & western part of Nepal incl Uttarakhand is prone to earthquakes that might occur at any time: Dr N Purnachandra Rao, Chief Scientist & Seismologist, NGRI pic.twitter.com/N2xU1jZ53U
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टेक्टॉनिक प्लेट बढ़ने के चलते हिमालयी बेल्ट में तनाव उत्पन्न हो रहा है. लिहाजा तनाव से उत्पन्न एनर्जी कभी भी बड़े भूकंप के रूप में बाहर आ सकती है. हालांकि, उन्होंने दावा किया है कि यह भूकंप खासकर उत्तराखंड, हिमाचल और पश्चिमी नेपाल में आने की संभावना है. इतना ही नहीं, राव ने ग्रेटर भूकंप आने की संभावना जताई है.
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हिमालय बेल्ट में कभी भी आ सकता है बड़ा भूकंप, भविष्यवाणी करना संभव नहींः वहीं, वाडिया से रिटायर्ड वैज्ञानिक डॉ. सुशील कुमार रुहेला ने बताया कि पूरा हिमालयन बेल्ट सिस्मिकली एक्टिव है. साथ ही हिमालय का पूरा बेल्ट सिस्मिक जोन 4 और 5 में आता है. लिहाजा, हाईली सेंसेटिव और सिस्मिक एक्टिव रीजन को जोन 5 में रखा जाता है. ऐसे में पूरी हिमालयन बेल्ट में भूकंप कहीं पर भी आ सकता है.
हालांकि, भूकंप की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. क्योंकि अभी तक ऐसा कोई इक्विपमेंट्स या फिर तकनीकी तैयार नहीं हो पाई है. जिससे आने वाले भूकंप की भविष्यवाणी की जा सके. हालांकि, विश्व स्तर पर इसका प्रयास जारी है. इसी कड़ी में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी ने गुत्तू में मल्टी पैरामेट्रिक जियोफिजिकल ऑब्जर्वेट्री लगा रखी है.
क्या है मल्टी पैरामेट्रिक जियोफिजिकल ऑब्जर्वेट्रीः विश्व में कहीं पर भी भूकंप की भविष्यवाणी किए जाने की तकनीकी उपलब्ध नहीं है. हालांकि, तमाम जानकारियों के जरिए भूकंप आने की संभावना जताई जाती रही है. इसी कड़ी में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी ने गुत्तू में मल्टी पैरामेट्रिक जियोफिजिकल ऑब्जर्वेट्री लगाई है.
इस ऑब्जर्वेट्री से भूगर्भ में तनाव पैदा होना, ग्रेविटी में बदलाव, रेस्टिविटी में बदलाव, सिस्मिक स्पीड में बदलाव के साथ ही अन्य पैरामीटर के जरिए प्रिकॉशन फिनोमिना को देखा जाता है. जिसके जरिए इस बात की जानकारी मिलती है कि क्या जो बदलाव हो रहे हैं, वह आने वाले समय में किसी भूकंप की ओर संकेत कर रहे हैं या नहीं?
कई संस्थानों के अध्ययन में बड़े भूकंप के आने की जताई गई संभावनाः इंडियन और यूरेशियन प्लेट लगातार टकरा रही है. जिसके तहत इंडियन प्लेट हर साल 40 से 50 मिलीमीटर तक मूव कर रहा है. जिसे भूगर्भ में स्ट्रेस यानी तनाव उत्पन्न हो रही है. लिहाजा, प्लेटों के मूवमेंट के चलते भूगर्भ में उत्पन्न हो रही एनर्जी के निकलने की संभावना काफी ज्यादा है. जो कि छोटी-छोटी भूकंप के माध्यम से रिलीज हो रही है.
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हालांकि, इससे ये नहीं कहा जा सकता कि यह एक बड़े भूकंप की ओर संकेत कर रहा हो, लेकिन कई संस्थानों ने अध्ययन के अनुसार हिमालयन बेल्ट में कभी भी बड़ा भूकंप आ सकता है. इसके लिए एनजीआरआई के एक साइंटिस्ट ने जीपीएस स्टडी भी की थी. इसमें इस बात का जिक्र किया था कि बड़े भूकंप आने की संभावना है.
हिमालय में रोज आते हैं तीन से चार भूकंपः वहीं, वाडिया से रिटायर्ड वैज्ञानिक डॉ. सुशील कुमार रुहेला ने बताया कि पूरा हिमालयन बेल्ट सिस्मिकली एक्टिव है. जिसके चलते रोजाना तीन से चार माइक्रो भूकंप आते हैं, जो ब्रॉडबैंड सिस्मोग्राफ में रिकॉर्ड किए जाते हैं. हालांकि, यह लोगों को महसूस नहीं होता है. क्योंकि यह करीब 3 मैग्नीट्यूड से कम का भूकंप होता है.
वाडिया इंस्टीट्यूट ने उत्तराखंड में 17 ब्रॉडबैंड सिस्मोग्राफ और 9 जीपीएस स्टेशन लगा रखा है. जिसमें छोटे से बड़े सभी भूकंप रिकॉर्ड होते रहते हैं. उन्होंने कहा कि जब चार या पांच मैग्नीट्यूड का भूकंप आता है, तब वो लोगों को महसूस होता है. भूगर्भ में जो हलचल हो रही है, वो स्लो भूकंप के रूप में धीरे-धीरे रिलीज भी हो रही है.
हिमालयन बेल्ट में कंस्ट्रक्शन से पहले बेस और मिट्टी की टेस्टिंग अनिवार्यः उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र पहले ही काफी संवेदनशील हैं. इसके साथ ही भूकंप के लिहाज से हिमालय में बेल्ट को सिस्मिक जोन 4 और 5 में रखा गया है. वैज्ञानिक रुहेला ने बताया कि पर्वतीय क्षेत्रों में जो भी कंस्ट्रक्शन के काम किए जाए, उससे पहले बेस और सॉयल टेस्टिंग किया जाना अनिवार्य हो.
जो भी भवन बनाए जा रहे हैं. वो भूकंप रोधी भवन होने चाहिए. ताकि अगर बड़े मैग्नीट्यूड का भूकंप आता है तो कम से कम नुकसान हो. लिहाजा, भूकंप की वजह से किसी भी व्यक्ति की मौत न हो, इसके लिए जोन और भूकंप रोधी भवन पर ध्यान रखने की आवश्यकता है. साथ ही भूकंप के साथ सभी को जीना सीखना पड़ेगा.
बड़ा भूकंप आया तो उत्तराखंड में मचेगी भारी तबाहीः दरअसल, उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में जो अधिकांश घर बने हैं, वो स्लैप पर आरसीसी लिंटर के माध्यम से बनाए गए हैं. ऐसे में जब कोई बड़ा भूकंप आएगा, उससे लिंटर सीधा नीचे गिर जाएगी. वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक सुशील कुमार ने बताया कि उत्तराखंड में अभी कोई ऐसा बड़ा भूकंप नहीं आया. जिससे भारी तबाही मची हो.
उनका कहना है कि इतना जरूर है कि साल 1991 में उत्तरकाशी में 6.5 मैग्नीट्यूड, साल 1999 में चमोली में आई 6.0 मैग्नीट्यूड के साथ ही 2017 में करीब 5.8 मैग्नीट्यूड की भूकंप के दौरान हजारों लोगों की मौत हुई थी. ऐसे में अगर उत्तराखंड के किसी हिस्से में ग्रेटर भूकंप आता है तो प्रदेश में भारी तबाही मचेगी.
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बड़े भूकंप से 59 फीसदी भवनों पर पड़ेगा असरः उत्तराखंड में बड़ा भूकंप यानी ग्रेटर भूकंप आने पर बड़े स्तर की तबाही होने की पुष्टि वर्ल्ड बैंक प्रोजेक्ट की स्टडी में पहले ही हो चुकी है. दरअसल, वर्ल्ड बैंक प्रोजेक्ट की स्टडी के अनुसार अगर प्रदेश में बड़ा भूकंप आता है तो इससे न सिर्फ बड़े स्तर पर जन हानि होगी. बल्कि राज्य को सालाना करीब 2480 करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है.
उत्तराखंड में बड़े भूकंप आने से न सिर्फ ट्रांसपोर्टेशन के कार्य पूरी तरह से ठप हो जाएंगे. बल्कि, पावर प्रोजेक्ट पर भी इसका बड़ा असर पड़ेगा. इसके साथ ही प्रदेश के करीब 59 फीसदी आवासीय भवनों पर भी बड़े स्तर के भूकंप का असर पड़ेगा.
उत्तराखंड के हरिद्वार में सैकड़ों साल पहले आ चुके हैं 2 ग्रेटर भूकंपः वैज्ञानिकों के अनुसार उत्तराखंड में सैकड़ों साल पहले भी दो बड़े भूकंप आ चुके हैं. जिसके तहत हरिद्वार के लालगढ़ के पास साल 1344 और साल 1505 में 8 मैग्नीट्यूड के भूकंप आ चुके हैं. इसके बाद उत्तराखंड में ग्रेटर भूकंप नहीं आया है. जिसके चलते भविष्य में बड़े भूकंप के आने की संभावना वैज्ञानिक कर रहे हैं.
बता दें कि इसके अलावा देश में कई बड़े भूकंप आ चुके है. जिसके तहत साल 1897 में असम, साल 1905 में कांगड़ा, साल 1934 में बिहार-नेपाल और 1950 में असम में 8 मैग्नीट्यूड से ज्यादा का भूकंप आया था. हालांकि, इसके बाद करीब इन 73 सालों में देश में कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है.
अर्ली वार्निंग ऐप का सेकंड वर्जन बना रहा है आपदा विभागः उत्तराखंड में बड़े भूकंप आने की संभावना के दृष्टिगत सरकार की तैयारियों के सवाल पर आपदा सचिव रंजीत सिन्हा बताते हैं कि अर्ली वार्निंग सिस्टम पर काम किया जा रहा है. जिसके लिए पहले भी ऐप बनाया गया था. जिसमें कुछ कमियां थी, उसे ठीक कर ली गई हैं. इसके साथ ही प्रदेश भर में करीब समेत 350 सेंसर भी लगाए गए हैं.
इसके अलावा आपदा विभाग अर्ली वार्निंग ऐप का सेकंड वर्जन भी तैयार कर रहा है. जिसमें 5 मैग्नीट्यूड से ज्यादा के भूकंप पर ऐप में बीप बजेगा और 6 मेग्नीट्यूड के ऊपर के भूकंप आने पर प्रदेशभर में लगाए गए सेंसर बजने लगेंगे. इन सबके अलावा भूकंप आने पर राहत बचाव के लिए टीम में तैयार हैं. हालांकि, इक्विपमेंट के लिए वर्ल्ड बैंक के सामने 40 करोड़ का प्रस्ताव रखा गया है. जिस पर कार्रवाई जारी है.
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