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बेंगलुरु में खुला देश का पहला स्कार क्लिनिक, ऐसे मरीजों का होगा इलाज

कोरोना वायरस से संक्रमित होने वालों की संख्या में थोड़ी कमी जरूर आई है. हालांकि कोरोना के गंभीर रोगियों के ठीक होने के बाद भी कुछ निशान रह जाते हैं. इन्ही निशानों को मिटाने के लिए बेंगलुरु में स्थित जीवीजी इवीवो अस्पताल ने स्कार क्लिनिक शुरू किया है. क्लिनिक खुलने से पहले ही 50 मरीजों ने बुकिंग भी करा ली है.

Scar Clinic to treat NIV mask sores
जीवीजी इनवीवो अस्पताल के डॉक्टर
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Published : Nov 1, 2020, 6:09 PM IST

बेंगलुरु : कार्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में स्थित देश का पहला एंटी एजिंग अस्पताल जीवीजी इवीवो कोरोना महामारी के दौरान संक्रमितों के इलाज में लगा था. हालांकि, अब संक्रमितों की संख्या उतनी नहीं है जितनी पहले थी, तो जीवीजी इवीवो अस्पताल ने स्कार क्लिनिक खोला है. यह इस तरह का देश का पहला क्लिनिक है.

कोरोना संक्रमण के गंभीर रोगियों के इलाज में नॉन इन्वेसिव वेंटिलेशन (Non Invasive Ventilation) का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसा देखा गया है कि एनआईवी के इस्तेमाल से कई लोगों के चेहरे पर दाग पड़ जाते हैं. जीवीजी इवीवो अस्पताल का स्कार क्लिनिक इन्हीं निशानों को मिटाने में मदद करेगा.

अस्पताल प्रबंध ने बताया कि स्कार क्लिनिक में इलाज के लिए 50 मरीजों ने रजिस्ट्रेशन भी करा लिया है.

जीवीजी इनवीवो अस्पताल के चीफ प्लास्टिक सर्जन व सीएमडी डॉ. गुणासेकर वुप्पलपति ने कहा कि वह हमेशा अपने मरीजों की मदद करने के लिए मौजूद हैं. कोरोना वायरस से फैली महामारी के दौरान जीवीजी इनवीवो एंटी एजिंग एंड एस्थेटिक अस्पताल कोविड-19 केयर सेंटर में बदल दिया गया था. अब कोरोना से संक्रमितों की संख्या में कमी आ गई है. कोरोना संक्रमण से ठीक हुए लोग एनआईवी के निशान से छुटकारा पाना चाहते हैं और जीवीजी इनवीवो अस्पताल उसके लिए भी तैयार है.

पढ़ें-लखनऊ: कोरोना को मात देने के बाद भी बीमार पड़ रहे लोग, डॉक्टर बता रहे ये वजह

उन्होंने आगे बताया कि कोरोना संक्रमितों का इलाज करते समय देखा गया कि मरीज कोरोना संक्रमण से तो ठीक हो गए, लेकिन उनके चेहरे पर एनआईवी का निशान रह गया था. इससे उनके आत्मविश्वास में कमी आने की आशंका बढ़ जाती है.

उन्होंने कहा कि ऐसे ज्यादातर मामले फिट्जपैट्रिक स्किन टाइप 3 से 6 में देखे गए. उन मरीजों के चेहरे पर पोस्ट इनफ्लेमेट्री हाइपरपिगमेंटेशन की स्थिति पैदा हो जाती है. इस स्थिति में निशान जरूरत से ज्यादा पिगमेंटेड हो जाता है.

डॉक्टर वुप्पलपति ने बताया कि कोरोना संक्रमितों की संख्या कम होता देख उनके अस्पताल ने स्कार क्लिनिक शुरू करने की सोची. जीवीजी अस्पताल की स्थापना 2007 में हुई थी. यह अस्पताल देश का पहला एंटी एजिंग और एस्थेटिक अस्पताल है.

कोरोना से फैली महामारी ने इस सर्जिकल अस्पताल को मेडिकल अस्पताल में बदल दिया था. इस दौरान अस्पताल की मेडिकल आईसीयू सुविधाओं में बहुत सुधार हुआ, जिसके चलते इस अस्पताल में अब माइक्रोवैस्क्यूलर और न्यूरो सर्जरी की जा सकती है.

बेंगलुरु : कार्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में स्थित देश का पहला एंटी एजिंग अस्पताल जीवीजी इवीवो कोरोना महामारी के दौरान संक्रमितों के इलाज में लगा था. हालांकि, अब संक्रमितों की संख्या उतनी नहीं है जितनी पहले थी, तो जीवीजी इवीवो अस्पताल ने स्कार क्लिनिक खोला है. यह इस तरह का देश का पहला क्लिनिक है.

कोरोना संक्रमण के गंभीर रोगियों के इलाज में नॉन इन्वेसिव वेंटिलेशन (Non Invasive Ventilation) का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसा देखा गया है कि एनआईवी के इस्तेमाल से कई लोगों के चेहरे पर दाग पड़ जाते हैं. जीवीजी इवीवो अस्पताल का स्कार क्लिनिक इन्हीं निशानों को मिटाने में मदद करेगा.

अस्पताल प्रबंध ने बताया कि स्कार क्लिनिक में इलाज के लिए 50 मरीजों ने रजिस्ट्रेशन भी करा लिया है.

जीवीजी इनवीवो अस्पताल के चीफ प्लास्टिक सर्जन व सीएमडी डॉ. गुणासेकर वुप्पलपति ने कहा कि वह हमेशा अपने मरीजों की मदद करने के लिए मौजूद हैं. कोरोना वायरस से फैली महामारी के दौरान जीवीजी इनवीवो एंटी एजिंग एंड एस्थेटिक अस्पताल कोविड-19 केयर सेंटर में बदल दिया गया था. अब कोरोना से संक्रमितों की संख्या में कमी आ गई है. कोरोना संक्रमण से ठीक हुए लोग एनआईवी के निशान से छुटकारा पाना चाहते हैं और जीवीजी इनवीवो अस्पताल उसके लिए भी तैयार है.

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उन्होंने आगे बताया कि कोरोना संक्रमितों का इलाज करते समय देखा गया कि मरीज कोरोना संक्रमण से तो ठीक हो गए, लेकिन उनके चेहरे पर एनआईवी का निशान रह गया था. इससे उनके आत्मविश्वास में कमी आने की आशंका बढ़ जाती है.

उन्होंने कहा कि ऐसे ज्यादातर मामले फिट्जपैट्रिक स्किन टाइप 3 से 6 में देखे गए. उन मरीजों के चेहरे पर पोस्ट इनफ्लेमेट्री हाइपरपिगमेंटेशन की स्थिति पैदा हो जाती है. इस स्थिति में निशान जरूरत से ज्यादा पिगमेंटेड हो जाता है.

डॉक्टर वुप्पलपति ने बताया कि कोरोना संक्रमितों की संख्या कम होता देख उनके अस्पताल ने स्कार क्लिनिक शुरू करने की सोची. जीवीजी अस्पताल की स्थापना 2007 में हुई थी. यह अस्पताल देश का पहला एंटी एजिंग और एस्थेटिक अस्पताल है.

कोरोना से फैली महामारी ने इस सर्जिकल अस्पताल को मेडिकल अस्पताल में बदल दिया था. इस दौरान अस्पताल की मेडिकल आईसीयू सुविधाओं में बहुत सुधार हुआ, जिसके चलते इस अस्पताल में अब माइक्रोवैस्क्यूलर और न्यूरो सर्जरी की जा सकती है.

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