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मनरेगा लिस्ट से 84.8 लाख मजदूरों के नाम हटाए गए, काम के दिनों में भी भारी कटौती ! - MGNREGA

MGNREGA Workers: रिपोर्ट के मुताबिक, मनरेगा के तहत पंजीकृत मजदूरों में से 27.4 प्रतिशत से अधिक आधार-आधारित भुगतान प्रणाली के लिए अपात्र हैं.

Over 84.8 lakh workers of MGNREGA deleted: Report claims
मनरेगा मजदूर (File Photo - IANS)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 4, 2024, 11:06 PM IST

नई दिल्ली: लिब टेक (Lib Tech) की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अप्रैल से सितंबर के बीच मनरेगा ( MGNREGA) के 84.8 लाख से अधिक मजदूरों का नाम योजना से हटा दिया गया. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस योजना से 84.8 लाख मनरेगा मजदूर हटाए गए, जबकि केवल 45.4 लाख नए मजदूर जोड़े गए.

रिपोर्ट के अनुसार, तमिलनाडु और ओडिशा में व्यक्ति-दिवस (person-days) में सबसे अधिक गिरावट आई, जबकि महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश में वृद्धि देखी गई. भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण 2021 से ही मनरेगा को पश्चिम बंगाल में फिर से शुरू नहीं किया गया है, जिससे मनरेगा मजदूर बेरोजगार हो गए हैं. कई मजदूरों को एबीपीएस यानी आधार भुगतान ब्रिज सिस्टम के कार्यान्वयन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे मनरेगा में भाग लेने की उनकी क्षमता और कम हो गई है.

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इन योजनाओं के तहत रोजगार के अवसर पिछले वर्ष की तुलना में काफी कम हो गए हैं, जो 184 करोड़ से घटकर 154 करोड़ व्यक्ति-दिवस रह गए हैं.

योजना के सार्वजनिक आंकड़ों पर आधारित लिब टेक के विश्लेषण में कहा गया है कि 27.4 प्रतिशत से अधिक पंजीकृत मजदूर आधार-आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) के लिए अपात्र हैं. एबीपीएस कार्यान्वयन की समय सीमा कई बार बढ़ाई गई थी.

हालांकि, इस साल 1 जनवरी से एबीपीएस को अनिवार्य कर दिया गया है. पूर्व में विस्तारित समय सीमा के बावजूद, 27 प्रतिशत से अधिक मजदूर और 4 प्रतिशत से अधिक सक्रिय मजदूर वर्तमान में एबीपीएस के लिए अपात्र हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अक्टूबर 2023 में इस योजना से 14.3 करोड़ सक्रिय मजदूर जुड़े थे, जबकि इस साल अक्टूबर में यह संख्या घटकर 13.2 करोड़ रह गई, जो सक्रिय मजदूरों में 8 प्रतिशत की गिरावट को दर्शाता है.

अप्रैल-सितंबर 2023 की तुलना में, 14 राज्यों में सृजित कार्य दिवसों की संख्या में गिरावट आई, जबकि 6 राज्यों में अप्रैल-सितंबर 2024 में वृद्धि देखी गई. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि तमिलनाडु में सबसे अधिक 59 प्रतिशत और ओडिशा में 49.7 प्रतिशत की गिरावट देखी गई, जबकि महाराष्ट्र में 66 प्रतिशत और हिमाचल प्रदेश में 53 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई.

यह भी पढ़ें- महाराष्ट्र चुनाव: कोल्हापुर में कांग्रेस को बड़ा झटका, मधुरिमा राजे ने पर्चा वापस लिया, कई बागी भी पीछे हटे

नई दिल्ली: लिब टेक (Lib Tech) की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अप्रैल से सितंबर के बीच मनरेगा ( MGNREGA) के 84.8 लाख से अधिक मजदूरों का नाम योजना से हटा दिया गया. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस योजना से 84.8 लाख मनरेगा मजदूर हटाए गए, जबकि केवल 45.4 लाख नए मजदूर जोड़े गए.

रिपोर्ट के अनुसार, तमिलनाडु और ओडिशा में व्यक्ति-दिवस (person-days) में सबसे अधिक गिरावट आई, जबकि महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश में वृद्धि देखी गई. भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण 2021 से ही मनरेगा को पश्चिम बंगाल में फिर से शुरू नहीं किया गया है, जिससे मनरेगा मजदूर बेरोजगार हो गए हैं. कई मजदूरों को एबीपीएस यानी आधार भुगतान ब्रिज सिस्टम के कार्यान्वयन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे मनरेगा में भाग लेने की उनकी क्षमता और कम हो गई है.

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इन योजनाओं के तहत रोजगार के अवसर पिछले वर्ष की तुलना में काफी कम हो गए हैं, जो 184 करोड़ से घटकर 154 करोड़ व्यक्ति-दिवस रह गए हैं.

योजना के सार्वजनिक आंकड़ों पर आधारित लिब टेक के विश्लेषण में कहा गया है कि 27.4 प्रतिशत से अधिक पंजीकृत मजदूर आधार-आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) के लिए अपात्र हैं. एबीपीएस कार्यान्वयन की समय सीमा कई बार बढ़ाई गई थी.

हालांकि, इस साल 1 जनवरी से एबीपीएस को अनिवार्य कर दिया गया है. पूर्व में विस्तारित समय सीमा के बावजूद, 27 प्रतिशत से अधिक मजदूर और 4 प्रतिशत से अधिक सक्रिय मजदूर वर्तमान में एबीपीएस के लिए अपात्र हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अक्टूबर 2023 में इस योजना से 14.3 करोड़ सक्रिय मजदूर जुड़े थे, जबकि इस साल अक्टूबर में यह संख्या घटकर 13.2 करोड़ रह गई, जो सक्रिय मजदूरों में 8 प्रतिशत की गिरावट को दर्शाता है.

अप्रैल-सितंबर 2023 की तुलना में, 14 राज्यों में सृजित कार्य दिवसों की संख्या में गिरावट आई, जबकि 6 राज्यों में अप्रैल-सितंबर 2024 में वृद्धि देखी गई. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि तमिलनाडु में सबसे अधिक 59 प्रतिशत और ओडिशा में 49.7 प्रतिशत की गिरावट देखी गई, जबकि महाराष्ट्र में 66 प्रतिशत और हिमाचल प्रदेश में 53 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई.

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