जयपुर : राजस्थान में राजनीतिक उठापटक के बीच फोन टैपिंग का मामला सामने आने के बाद सियासी पारा और गरम हो गया है. मौजूदा कांग्रेस सरकार फोन टैपिंग के जरिए बीजेपी और बगावती तेवर अपना चुपे विधायकों के खिलाफ शिकंजा कसने की तैयारी कर रही है. लेकिन क्या सरकार इस तरह से फोन पर बातचीत को रिकॉर्ड कर सकती है? फोन टैप करने के क्या प्रावधान हैं और इसकी मंजूरी कौन देता है, इस पर ईटीवी भारत ने राजस्थान हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज पानाचंद जैन से खास बातचीत की.
इस स्थिति में फोन टैपिंग की दी जाती है अनुमति
ईटीवी भारत से खास बातचीत में जस्टिस पानाचंद जैन ने बताया कि फोन टैपिंग टेलीग्राफ एक्ट के तहत आती है. इसमें यह व्यवस्था दी गई है कि अगर देश में इमरजेंसी के हालात हैं, देश में सरकार का तख्तापलट हो सकता है या देश की संप्रभुता को नुकसान पहुंचाने के लिए षड्यंत्र रचा जा रहा है या फिर विदेशी ताकतें आक्रमण करने वाली हों, इन स्थितियों में फोन टैपिंग की अनुमति दी जाती है.
जैन ने बताया कि साधारण रिश्वत देना या खरीद फरोख्त करना इस तरह के प्रावधानों में नहीं आता है. अगर इस तरह के साधारण मामलों में किसी भी व्यक्ति की फोन टैपिंग की जाती है तो उसकी स्वतंत्रता यानि निजता के अधिकार का हनन है. उन्होंने बताया कि इस पर अंकुश लगाने का प्रयास किया जा रहा है.
फोन टैपिंग पर आर्टिकल 19A के तहत क्या अधिकार प्राप्त हैं
भारतीय संविधान में व्यक्ति को आर्टिकल 19A में जो अधिकार प्राप्त है, उन अधिकारों का हनन माना जाता है. आर्टिकल 19A में आपात स्थिति में फोन टैपिंग की अनुमति देने का अधिकार है, उसमें भी कुछ शर्तें हैं कि किन कारण से फोन टैपिंग की जा रही है. साथ ही उसमें बताना होगा कि क्या जिस व्यक्ति की फोन टैपिंग हो रही है, उससे देश की अखंडता को खतरा है, जनता में किसी तरह का विद्रोह हो रहा है या विदेशी ताकतों के साथ किसी तरह का कोई गठबंधन है.
कैसे मिलती है फोन टैपिंग की अनुमति
जस्टिस पानाचंद ने बताया कि मौजूदा वक्त में जो राजनीतिक घटनाक्रम चल रहा है, इसमें ऐसा कुछ नहीं हुआ है और ऐसे माहौल में अगर फोन टैपिंग किया गया है तो यह पूरी तरह से गलत है. फोन टैपिंग के अधिकार और अनुमति को लेकर जस्टिस पानाचंद जैन का कहना है कि पहले गृह विभाग को इसके लिए लिखित में उस जांच एजेंसी को अनुमति देनी पड़ती है, जो किसी भी शिकायत पर मामले की जांच कर रही है. गृह विभाग अनुमति देने से पूर्व उसे सूचीबद्ध करेगा कि किस परिस्थिति की वजह से यह अनुमति दी जा रही है.
फोन टैपिंग को लेकर विवाद
रिटायर्ड जज का कहना है कि राजस्थान में फोन टैपिंग को लेकर जो विवाद छिड़ा हुआ है, इसमें अब तक जो बातें सामने आई हैं उसके तहत यह है कि 12 जून को एक शिकायत दर्ज होती है. इसमें कहा जाता है कि कुछ लोग अवैध हथियार की खरीद-फरोख्त और विधायकों की खरीद परोख्त कर रहे हैं. इस शिकायत की जांच एसओजी करती है और इस दौरान फोन टैप किया जाता है.
पढ़ें- गृह मंत्रालय ने फोन टैपिंग के आरोपों पर राजस्थान सरकार से मांगी रिपोर्ट
जस्टिस जैन ने बताया कि वर्तमान में फोन टैपिंग तो तस्करी और विधायकों की खरीद-फरोख्त के लिए की गई थी, लेकिन इसमें किसी अन्य व्यक्ति की आवाज को रिकॉर्ड किया गया. उन्होंने कहा कि अब रिकॉर्ड किसने किया है यह जांच का विषय है. साथ ही अगर फोन रिकॉर्ड जांच एजेंसी ने किया है तो फिर ऑडियो क्लिप को मुख्यमंत्री के ओएसडी की ओर से मीडिया में और पब्लिक डोमेन में देने का अधिकार किसने दिया.
फोन टैपिंग की विश्वसनीयता खत्म
जस्टिस पानाचंद जैन ने कहा कि अगर एसओजी इस पूरे मामले की जांच कर रही थी या अन्य कोई एजेंसी इस मामले की जांच कर रही थी, तब जांच के लिए जो सबूत जुटाए गए वह न तो कांग्रेस को दिए जा सकते हैं और न ही मीडिया को. अगर यह मीडिया को और कांग्रेस को दिया गया है तो इसकी विश्वसनीयता वहीं खत्म हो जाती है. उनका कहना है कि इन सबके बाद इस फोन टैपिंग के हिसाब से किसी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं हो सकती क्योंकि कोई भी इसे मिटा सकता है, बिगाड़ सकता है और इसमें कुछ काट-छांट कर सकता है.
NIA एक्ट के नियमों का उल्लंघन
उन्होंने कहा कि जब पहली एफआईआर दर्ज हुई थी तो उसके बाद दूसरी एफआईआर दर्ज करना ही गलत था और एसओजी ने जिस तरीके से फोन टैप की रिकॉर्डिंग कांग्रेस को और मीडिया को दी, उससे जांच एजेंसी की दुर्भावना सामने आ जाती है. उन्होंने बताया कि यह राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) एक्ट के नियमों का उल्लंघन है. कोई भी जांच एजेंसी रिकॉर्डिंग जारी नहीं कर सकती है.
जस्टिस जैन ने बताया कि किसी के खिलाफ अगर सबूत एकत्रित किए गए हैं तो वह सिर्फ और सिर्फ न्यायालय में ही साक्ष्य के रूप में दिए जा सकते हैं. अगर फोन टैपिंग को पब्लिक डोमेन में लाया जाता है तो उसकी गंभीरता खत्म हो जाती है. उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से जो राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया है, वह इस तरह की घटनाओं में नहीं बनता है क्योंकि इसमें न तो देश की अखंडता-संप्रभुता को खतरा है और न ही देशद्रोह जैसी कोई घटना हुई है.
जांच एजेंसी ने नहीं किया एक्ट का पालना
रिटायर्ड जज जैन का कहना है कि जिस तरह की बात सामने आई है कि फोन टैपिंग में मुख्य सचिव से अनुमति नहीं ली गई है तो यह बेसिक सिद्धांतों का उल्लंघन है. उन्होंने बताया कि अगर अनुमति भी ली है तो तस्करी को लेकर अनुमति ली है. लेकिन इसमें अगर कोई दूसरा व्यक्ति वार्ता कर रहा है और उसको रिकॉर्ड किया गया है तो वह गलत है. किसी भी व्यक्ति की बिना अनुमति के फोन टैपिंग उसके अधिकारों का हनन है. उन्होंने बताया कि किसी भी सूरत में जांच एजेंसी ने न तो टेलीग्राफ एक्ट की पालना की और न ही NIA एक्ट की प्रक्रिया का पालन किया.