ETV Bharat / bharat

संघर्ष समाधान का रास्ता है गांधीवादी तरीका - indian independence movement

इस साल महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती मनाई जा रही है. इस अवसर पर ईटीवी भारत दो अक्टूबर तक हर दिन उनके जीवन से जुड़े अलग-अलग पहलुओं पर चर्चा कर रहा है. हम हर दिन एक विशेषज्ञ से उनकी राय शामिल कर रहे हैं. साथ ही प्रतिदिन उनके जीवन से जुड़े रोचक तथ्यों की प्रस्तुति दे रहे हैं. प्रस्तुत है आज 13वीं कड़ी.

गांधी की डिजाइन फोटो
author img

By

Published : Sep 5, 2019, 7:00 AM IST

Updated : Sep 29, 2019, 12:10 PM IST

गांधी की तुलना में दुनिया में ऐसे कई नेता आए, जिन्होंने उनसे अधिक कार्य किए और वे चले गए. लेकिन उनका प्रभाव कितना रहा, यह बहस का विषय जरूर है. पर, इतना जरूर है कि गांधी इन सब नेताओं से अलग थे. उनका प्रभाव इन सारे नेताओं से कहीं अधिक था. शायद यही वजह है कि गांधी आज भी पहले की तरह ही प्रासंगिक हैं.

गांधी ने तब सबसे मजबूत ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिला दी थीं, वह भी बिना हिंसा का सहारा लिए हुए. उन्होंने सत्याग्रह के जरिए आम भारतीयों को लड़ने का एक प्रमुख औजार दिया. पूरी दुनिया ने इसे स्वीकार किया. गांधी की रणनीति में सुकरात का ज्ञान, सेंट फ्रांसिस की विनम्रता, बुद्ध की मानवता, प्राचीन ऋषियों का साधुवाद और लेनिन की सामूहिक अपील थी. यह अपने आप में अनूठा था. वह एक मास्टर रणनीतिकार थे. उन्होंने भारत के लिए एक साझा दृष्टिकोण विकसित किया. और बिना रक्तपात के इसे हासिल किया. उनमें संवाद स्थापित करने की अद्भुत क्षमता थी. जब भी वह लोगों का आह्वान करते थे, लाखों लोग उसका जवाब देते थे. उन्होंने लोगों का सम्मान जीता था. उनकी निष्ठा और आत्मविश्वास पर विजय प्राप्त कर लिया था.

गांधी की खासियत थी कि वह आम आदमी को एकत्रित कर लिया करते थे. किसी भी कार्य के लिए आम आदमी को सहमत करवाने की उनमें विशेष क्षमता थी. वह लोगों को प्रेरित करते थे. गांधी की शिक्षाएं न केवल भारत बल्कि विश्व भर में प्रासंगिक हैं. वे सार्वभौमिक उपदेश के रूप में सभी समय के लिए प्रासंगिक हैं. वह विचारों, शब्दों और कर्मों में परिपूर्ण था. उन्होंने कई बार दोहराया कि उनका जीवन ही उनका संदेश है.

ये भी पढ़ें: गांधीवादी संवाद : सकारात्मक विचार, शब्द, व्यवहार, आदत और मूल्य से बनते हैं भाग्य

आज की स्थिति देखिए. माइक्रो और मैक्रो स्तर पर संघर्ष एक खतरा बन गया है. संघर्ष और कुछ नहीं, बल्कि हितों का टकराव है. इसका आधार भिन्न-भिन्न हो सकता है-व्यक्तिगत, नस्लीय, वर्गीय, जातिगत, राजनीतिक, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय. संघर्ष असहमति का एक विस्तार है. यह इसकी सामान्य शर्त है. संघर्ष व्यवहार के अस्तित्व की विशेषता है. इसमें हरेक पक्ष सक्रिय रूप से एक दूसरे को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं.

श्रेष्ठता, अन्याय, वल्नरेबिलिटी, डिस्ट्रस्ट और हेल्पलेसनेस प्रमुख मान्यताएं हैं, जो किसी भी समूह को संघर्षों की ओर ले जाती हैं. पहले के मुकाबले संघर्षों की संख्या बहुत अधिक बढ़ रही है, क्योंकि हम शांतिपूर्ण तरीकों से संघर्षों को हल करने के गांधीवादी तरीके को भूल गए हैं, जो किसी भी हिंसा से बचते हैं. हम कितने बौद्धिक और मूर्ख हैं, यह सवाल उतना महत्वपूर्ण नहीं है. आज ज्ञान और मूर्खता एक साथ चल रहे हैं.

ये भी पढ़ें: जब गांधी ने कहा था, 'मैं दलित के घर बतौर लड़की पैदा होना चाहता हूं'

बीसवीं सदी की शुरुआत से ही दुनिया में हिंसा ने एक पंथ सा रूप ले लिया है. अगस्त 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु बम विस्फोटों के बाद से, परमाणु सशस्त्र शक्तियों के बीच संभावित तीसरे विश्व युद्ध का व्यापक प्रसार और लंबे समय तक भय बना रहा है.

1947 के शुरुआत में अल्बर्ट आइंस्टीन ने टिप्पणी की थी, 'मुझे नहीं पता कि विश्व युद्ध तीन को किन हथियारों से लड़ा जाएग, लेकिन विश्व युद्ध चार को लाठी और पत्थरों से लड़ा जाएगा.' आपको बता दें कि पहले और दूसरे विश्वयुद्ध के अलावा 250 छोटे युद्धों में 5 करोड़ से अधिक लोग मारे गए हैं. वर्तमान में दुनिया भर में 40 से अधिक छोटे-बड़े स्तर पर लड़ाई जारी है. यहां तक ​​कि घरेलू हिंसा में भी जबरदस्त वृद्धि हुई है.

ये भी पढ़ें: आज के भारत में क्या है हमारे लिए गांधी का मतलब

हम हिंसा के साये में जी रहे हैं और इस धरती पर कोई भी जीवन सुरक्षित नहीं है. दुनिया के सभी देशों का सैन्य खर्च 1,822 बिलियन अमेरिकी डॉलर था. यहां तक ​​कि भारत ने यूएसए, चीन और सऊदी अरब के बाद सैन्य खर्च में दुनिया में चौथे स्थान पर कब्जा करते हुए 66.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किए.

भारत में सक्रिय सैन्य कर्मी 15 लाख के आसपास हैं. चीन में 21 लाख सैनिक हैं. विकसित देश राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सैन्य खर्च पर लगभग बीस गुना खर्च करते हैं, जितना कि वे आर्थिक विकास के लिए प्रदान करते हैं. 70% विश्व सैन्य खर्च छह प्रमुख सैन्य शक्तियों द्वारा किया जाता है, 15% अन्य औद्योगिक देशों द्वारा और शेष 15% विकासशील देशों द्वारा.

दुनिया भर में आवश्यक आवश्यकताओं के स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास आदि क्षेत्रों में प्रगति, राष्ट्रीय सुरक्षा, सैन्य उद्देश्यों और आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए बहुमूल्य मानव संसाधनों के मोड़ से धीमा है. दुनिया के परमाणु सशस्त्र राज्यों के पास कुल मिलाकर लगभग 14,000 परमाणु अस्त्र हैं.

ये भी पढ़ें: गांधी की नजरों में क्या था आजादी का मतलब ?

90% से अधिक रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका के हैं. भारत के पास 160 परमाणु अस्त्र हैं. पाकिस्तान के पास 140 परमाणु अस्त्र हैं. चीन, भारत और पाकिस्तान सभी नई बैलिस्टिक मिसाइल, क्रूज मिसाइल और समुद्र आधारित परमाणु वितरण प्रणाली का पीछा कर रहे हैं. इसके अलावा, आम नागरिक खुद को सुरक्षित रखने के लिए बंदूकें पकड़ रहे हैं. अमेरिका में प्रति सौ नागरिकों पर 121 बंदूकें हैं. जर्मनी में 20, रूस में 12, तुर्की में 17, ब्राजील में आठ और भारत में पांच हैं.

अगर हम गांधीवाद का पालन करते हैं तो क्या यह सब आवश्यक है? गांधीवादी विश्व व्यवस्था का उद्देश्य अनिवार्य रूप से शांति की संस्कृति विकसित करना है. जिससे मानव आक्रामकता पर अंकुश लगा सकेगा. और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति या कम से कम गैर-सैन्य वैश्विक प्रतिस्पर्धा की नीति का पालन करने के लिए तैयार हो सकेगा. उसके लिए, युद्ध अधर्म है क्योंकि यह अहिंसा के सिद्धांत और धर्म के उच्च कानून का खंडन करता है.

ये भी पढ़ें: ज्यादा से ज्यादा लोगों को देना है रोजगार, तो गांधी का रास्ता है बेहतर विकल्प

गांधी ने युद्ध को अल्पसंख्यक के रूप में माना, जो बहुमत पर अपनी इच्छा थोपने का प्रयास करेंगे. उन्होंने सभी विवादों, पारस्परिक और अंतरराष्ट्रीय मामलों को निपटाने के लिए नैतिक साधनों को निर्धारित किया. गांधी ने महसूस किया कि हिंसा हिंसा को जन्म देती है और यह दृढ़ विश्वास है कि हिंसा को केवल अहिंसा द्वारा ही हटाया जा सकता है.

गांधी के अनुसार, कोई 'शत्रु' नहीं है. उन्हें दबाकर आप जीत नहीं सकते हैं. आप आत्मीय होकर ही जीत सकते हैं. गांधी ने संघर्षों के अहिंसक संकल्प और विश्व शांति की स्थापना के लिए लाखों लोगों को जुटाने की सलाह दी. उनके अनुसार, शांति का अभाव सामाजिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रों में तनाव का कारण और प्रभाव दोनों है. शांति लोगों को एकजुट करने का एक सकारात्मक बल है. युद्ध, जो एक विभाजनकारी शक्ति है, वैश्विक शांति को बढ़ावा देने की दिशा में कभी योगदान नहीं कर सकता. आइए हम उनकी 150 वीं जयंती की पूर्व संध्या पर उन्हें वास्तविक श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए उनके आदर्शों पर फिर से विचार करें.

(लेखक-वी बालमोहनदास, पूर्व वीसी, आचार्य नागार्जुन यूनिवर्सिटी)

(आलेख में लिखे विचार लेखक के निजी है. इनसे ईटीवी भारत का कोई संबंध नहीं है.)

गांधी की तुलना में दुनिया में ऐसे कई नेता आए, जिन्होंने उनसे अधिक कार्य किए और वे चले गए. लेकिन उनका प्रभाव कितना रहा, यह बहस का विषय जरूर है. पर, इतना जरूर है कि गांधी इन सब नेताओं से अलग थे. उनका प्रभाव इन सारे नेताओं से कहीं अधिक था. शायद यही वजह है कि गांधी आज भी पहले की तरह ही प्रासंगिक हैं.

गांधी ने तब सबसे मजबूत ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिला दी थीं, वह भी बिना हिंसा का सहारा लिए हुए. उन्होंने सत्याग्रह के जरिए आम भारतीयों को लड़ने का एक प्रमुख औजार दिया. पूरी दुनिया ने इसे स्वीकार किया. गांधी की रणनीति में सुकरात का ज्ञान, सेंट फ्रांसिस की विनम्रता, बुद्ध की मानवता, प्राचीन ऋषियों का साधुवाद और लेनिन की सामूहिक अपील थी. यह अपने आप में अनूठा था. वह एक मास्टर रणनीतिकार थे. उन्होंने भारत के लिए एक साझा दृष्टिकोण विकसित किया. और बिना रक्तपात के इसे हासिल किया. उनमें संवाद स्थापित करने की अद्भुत क्षमता थी. जब भी वह लोगों का आह्वान करते थे, लाखों लोग उसका जवाब देते थे. उन्होंने लोगों का सम्मान जीता था. उनकी निष्ठा और आत्मविश्वास पर विजय प्राप्त कर लिया था.

गांधी की खासियत थी कि वह आम आदमी को एकत्रित कर लिया करते थे. किसी भी कार्य के लिए आम आदमी को सहमत करवाने की उनमें विशेष क्षमता थी. वह लोगों को प्रेरित करते थे. गांधी की शिक्षाएं न केवल भारत बल्कि विश्व भर में प्रासंगिक हैं. वे सार्वभौमिक उपदेश के रूप में सभी समय के लिए प्रासंगिक हैं. वह विचारों, शब्दों और कर्मों में परिपूर्ण था. उन्होंने कई बार दोहराया कि उनका जीवन ही उनका संदेश है.

ये भी पढ़ें: गांधीवादी संवाद : सकारात्मक विचार, शब्द, व्यवहार, आदत और मूल्य से बनते हैं भाग्य

आज की स्थिति देखिए. माइक्रो और मैक्रो स्तर पर संघर्ष एक खतरा बन गया है. संघर्ष और कुछ नहीं, बल्कि हितों का टकराव है. इसका आधार भिन्न-भिन्न हो सकता है-व्यक्तिगत, नस्लीय, वर्गीय, जातिगत, राजनीतिक, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय. संघर्ष असहमति का एक विस्तार है. यह इसकी सामान्य शर्त है. संघर्ष व्यवहार के अस्तित्व की विशेषता है. इसमें हरेक पक्ष सक्रिय रूप से एक दूसरे को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं.

श्रेष्ठता, अन्याय, वल्नरेबिलिटी, डिस्ट्रस्ट और हेल्पलेसनेस प्रमुख मान्यताएं हैं, जो किसी भी समूह को संघर्षों की ओर ले जाती हैं. पहले के मुकाबले संघर्षों की संख्या बहुत अधिक बढ़ रही है, क्योंकि हम शांतिपूर्ण तरीकों से संघर्षों को हल करने के गांधीवादी तरीके को भूल गए हैं, जो किसी भी हिंसा से बचते हैं. हम कितने बौद्धिक और मूर्ख हैं, यह सवाल उतना महत्वपूर्ण नहीं है. आज ज्ञान और मूर्खता एक साथ चल रहे हैं.

ये भी पढ़ें: जब गांधी ने कहा था, 'मैं दलित के घर बतौर लड़की पैदा होना चाहता हूं'

बीसवीं सदी की शुरुआत से ही दुनिया में हिंसा ने एक पंथ सा रूप ले लिया है. अगस्त 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु बम विस्फोटों के बाद से, परमाणु सशस्त्र शक्तियों के बीच संभावित तीसरे विश्व युद्ध का व्यापक प्रसार और लंबे समय तक भय बना रहा है.

1947 के शुरुआत में अल्बर्ट आइंस्टीन ने टिप्पणी की थी, 'मुझे नहीं पता कि विश्व युद्ध तीन को किन हथियारों से लड़ा जाएग, लेकिन विश्व युद्ध चार को लाठी और पत्थरों से लड़ा जाएगा.' आपको बता दें कि पहले और दूसरे विश्वयुद्ध के अलावा 250 छोटे युद्धों में 5 करोड़ से अधिक लोग मारे गए हैं. वर्तमान में दुनिया भर में 40 से अधिक छोटे-बड़े स्तर पर लड़ाई जारी है. यहां तक ​​कि घरेलू हिंसा में भी जबरदस्त वृद्धि हुई है.

ये भी पढ़ें: आज के भारत में क्या है हमारे लिए गांधी का मतलब

हम हिंसा के साये में जी रहे हैं और इस धरती पर कोई भी जीवन सुरक्षित नहीं है. दुनिया के सभी देशों का सैन्य खर्च 1,822 बिलियन अमेरिकी डॉलर था. यहां तक ​​कि भारत ने यूएसए, चीन और सऊदी अरब के बाद सैन्य खर्च में दुनिया में चौथे स्थान पर कब्जा करते हुए 66.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किए.

भारत में सक्रिय सैन्य कर्मी 15 लाख के आसपास हैं. चीन में 21 लाख सैनिक हैं. विकसित देश राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सैन्य खर्च पर लगभग बीस गुना खर्च करते हैं, जितना कि वे आर्थिक विकास के लिए प्रदान करते हैं. 70% विश्व सैन्य खर्च छह प्रमुख सैन्य शक्तियों द्वारा किया जाता है, 15% अन्य औद्योगिक देशों द्वारा और शेष 15% विकासशील देशों द्वारा.

दुनिया भर में आवश्यक आवश्यकताओं के स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास आदि क्षेत्रों में प्रगति, राष्ट्रीय सुरक्षा, सैन्य उद्देश्यों और आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए बहुमूल्य मानव संसाधनों के मोड़ से धीमा है. दुनिया के परमाणु सशस्त्र राज्यों के पास कुल मिलाकर लगभग 14,000 परमाणु अस्त्र हैं.

ये भी पढ़ें: गांधी की नजरों में क्या था आजादी का मतलब ?

90% से अधिक रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका के हैं. भारत के पास 160 परमाणु अस्त्र हैं. पाकिस्तान के पास 140 परमाणु अस्त्र हैं. चीन, भारत और पाकिस्तान सभी नई बैलिस्टिक मिसाइल, क्रूज मिसाइल और समुद्र आधारित परमाणु वितरण प्रणाली का पीछा कर रहे हैं. इसके अलावा, आम नागरिक खुद को सुरक्षित रखने के लिए बंदूकें पकड़ रहे हैं. अमेरिका में प्रति सौ नागरिकों पर 121 बंदूकें हैं. जर्मनी में 20, रूस में 12, तुर्की में 17, ब्राजील में आठ और भारत में पांच हैं.

अगर हम गांधीवाद का पालन करते हैं तो क्या यह सब आवश्यक है? गांधीवादी विश्व व्यवस्था का उद्देश्य अनिवार्य रूप से शांति की संस्कृति विकसित करना है. जिससे मानव आक्रामकता पर अंकुश लगा सकेगा. और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति या कम से कम गैर-सैन्य वैश्विक प्रतिस्पर्धा की नीति का पालन करने के लिए तैयार हो सकेगा. उसके लिए, युद्ध अधर्म है क्योंकि यह अहिंसा के सिद्धांत और धर्म के उच्च कानून का खंडन करता है.

ये भी पढ़ें: ज्यादा से ज्यादा लोगों को देना है रोजगार, तो गांधी का रास्ता है बेहतर विकल्प

गांधी ने युद्ध को अल्पसंख्यक के रूप में माना, जो बहुमत पर अपनी इच्छा थोपने का प्रयास करेंगे. उन्होंने सभी विवादों, पारस्परिक और अंतरराष्ट्रीय मामलों को निपटाने के लिए नैतिक साधनों को निर्धारित किया. गांधी ने महसूस किया कि हिंसा हिंसा को जन्म देती है और यह दृढ़ विश्वास है कि हिंसा को केवल अहिंसा द्वारा ही हटाया जा सकता है.

गांधी के अनुसार, कोई 'शत्रु' नहीं है. उन्हें दबाकर आप जीत नहीं सकते हैं. आप आत्मीय होकर ही जीत सकते हैं. गांधी ने संघर्षों के अहिंसक संकल्प और विश्व शांति की स्थापना के लिए लाखों लोगों को जुटाने की सलाह दी. उनके अनुसार, शांति का अभाव सामाजिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रों में तनाव का कारण और प्रभाव दोनों है. शांति लोगों को एकजुट करने का एक सकारात्मक बल है. युद्ध, जो एक विभाजनकारी शक्ति है, वैश्विक शांति को बढ़ावा देने की दिशा में कभी योगदान नहीं कर सकता. आइए हम उनकी 150 वीं जयंती की पूर्व संध्या पर उन्हें वास्तविक श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए उनके आदर्शों पर फिर से विचार करें.

(लेखक-वी बालमोहनदास, पूर्व वीसी, आचार्य नागार्जुन यूनिवर्सिटी)

(आलेख में लिखे विचार लेखक के निजी है. इनसे ईटीवी भारत का कोई संबंध नहीं है.)

Intro:Body:Conclusion:
Last Updated : Sep 29, 2019, 12:10 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.