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हाथियों के आतंक से दशहत में किसान, राजस्व और वन विभाग की लापरवाही से परेशान ग्रामीण

इन दिनों बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 40 से ज्यादा हाथी अपना स्थाई निवास बना चुके हैं और लगातार किसान के मेहनत को अपने पैरो तल रौंद रहे हैं. यहां हाथियों के आतंक से किसान दशहत में जीने को मजबूर हैं.

Terror of elephants in Bandhavgarh
बांधवगढ़ में हाथियो का आतंक
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Published : Oct 20, 2020, 7:10 PM IST

Updated : Oct 20, 2020, 7:36 PM IST

उमरिया। जिले का बांधवगढ़ का नाम जैसे ही आता है तो दहाड़ते हुए टाइगर का छायाचित्र आंखों के सामने दिखने लगता है, लेकिन आजकल बांधवगढ़ के बियावान जंगल में छत्तीसगढ़ और उड़ीशा के जंगलों से आए गजराजों ने बांधवगढ़ के बफर जोन सहित जंगल से लगे गांवों में हड़कंप मचाकर रख दिया है. यहां हाथियों के आतंक से किसान परेशान हैं, और रातभर जगकर अपनी फसलों की रखवाली कर रहे हैं.

बांधवगढ़ में फसलों को नष्ट कर रहे हाथी

हाथियों के आतंक से ग्रामीणों को काफी नुकसान

इन दिनों बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 40 से ज्यादा हाथी अपना स्थाई निवास बना चुके हैं और लगातार किसान के मेहनत को अपने पैरो तले रौंद रहे हैं. हाथियों के कारण न सिर्फ बफर जोन में बसे हुए गांव के किसानों को खतरा बना रहता है, बल्कि ये हाथी जंगल से सटे गांव में बोई जाने वाली फसल को बर्बाद कर देते हैं. कच्चे मकानों को तोड़ देते हैं और उग्र होने पर ग्रामीणों पर भी हमला कर देते हैं. अभी हाल ही में सेहरा गांव में मचान पर सो रहे एक ग्रामीण को कुचल कर मौत के घाट उतारा दिया था.

कैस आता है हाथियों का झुंड
झारखंड से लेकर पश्चिम बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ तक हाथियों की आवाजाही का गलियारा फैला हुआ है. इन्ही प्रदेशों के जंगलों के रास्ते बांधवगढ़ तक हाथियों का प्राकृतिक कॉरिडोर विकसित हो चुका है. ये हाथी छतीसगढ़ की सीमा से मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले में प्रवेश करते हैं और शहडोल जिले के जयसिंह नगर होते हुए व्योहारी और सीधी पहुंचकर बांधवगढ़ आ जाते हैं,

बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक ने ईटीवी से बात करते हुए बताया कि बांधवगढ में 2018 दिसंबर से आया हाथियों का कुनबे से लगातार हाथियों का दल बढ़ता जा रहा है. अब इन हाथियों के साथ रहने की आदत डालनी होगी. हालांकि क्षेत्र संचालक ने कहा कि अपनी टीम को प्रशिक्षित कर रहे हैं, साथ ही इन हालातों से निपटने के लिए ग्रामीणों को भी ट्रेनिंग दी जा रही है.

क्षेत्र संचालक, बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व

नहीं मिल पा रहा है मुआवजा
हाथियों द्वारा की गई फसल नुकसान का पिछले साल का भी मुआवजा अब तक किसानों को नहीं मिला है. राजस्व विभाग में बैठे बाबुओं की कमीशनखोरी की भेंट चढ़े किसान मुआवजे के लिए तरस रहे हैं. वहीं वरिष्ठ पत्रकार संतोष द्विवेदी ने कहा कि हाथी जिस गति से किसानों की फसल तबाह कर रहे हैं उस गति से यदि राजस्व विभाग सर्वे करके किसानों को छतिपूर्ति देने लगे तो द्वंद कुछ हद तक कम हो सकता है.

वरिष्ठ पत्रकार संतोष द्ववेदी

छत्तीसगढ़ और झारखंड की घटनाओं से सीख ले प्रबंधन
झारखण्ड हो या छत्तीसगढ़ या फिर उड़ीशा यहां लगातार हाथियों के बढ़ते कुनबे के साथ साथ इंसानों और हाथियों के बीच संघर्ष की घटनाएं बढ़ती जा रही है. या तो हाथी इंसानों की जान ले रहे हैं या इंसान हाथियों जान ले रहे हैं. यदि बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बसने वाले ग्रामीणों और हाथियों के बीच द्वंद को प्रशासन दूर करने के सकारात्मक प्रयाश नहीं किया तो इसके दूरगामी परिणाम छत्तीसगढ़, झारखंड या उड़ीशा जैसे होंगे इस बात से नकारा नहीं जा सकता है.

उमरिया। जिले का बांधवगढ़ का नाम जैसे ही आता है तो दहाड़ते हुए टाइगर का छायाचित्र आंखों के सामने दिखने लगता है, लेकिन आजकल बांधवगढ़ के बियावान जंगल में छत्तीसगढ़ और उड़ीशा के जंगलों से आए गजराजों ने बांधवगढ़ के बफर जोन सहित जंगल से लगे गांवों में हड़कंप मचाकर रख दिया है. यहां हाथियों के आतंक से किसान परेशान हैं, और रातभर जगकर अपनी फसलों की रखवाली कर रहे हैं.

बांधवगढ़ में फसलों को नष्ट कर रहे हाथी

हाथियों के आतंक से ग्रामीणों को काफी नुकसान

इन दिनों बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 40 से ज्यादा हाथी अपना स्थाई निवास बना चुके हैं और लगातार किसान के मेहनत को अपने पैरो तले रौंद रहे हैं. हाथियों के कारण न सिर्फ बफर जोन में बसे हुए गांव के किसानों को खतरा बना रहता है, बल्कि ये हाथी जंगल से सटे गांव में बोई जाने वाली फसल को बर्बाद कर देते हैं. कच्चे मकानों को तोड़ देते हैं और उग्र होने पर ग्रामीणों पर भी हमला कर देते हैं. अभी हाल ही में सेहरा गांव में मचान पर सो रहे एक ग्रामीण को कुचल कर मौत के घाट उतारा दिया था.

कैस आता है हाथियों का झुंड
झारखंड से लेकर पश्चिम बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ तक हाथियों की आवाजाही का गलियारा फैला हुआ है. इन्ही प्रदेशों के जंगलों के रास्ते बांधवगढ़ तक हाथियों का प्राकृतिक कॉरिडोर विकसित हो चुका है. ये हाथी छतीसगढ़ की सीमा से मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले में प्रवेश करते हैं और शहडोल जिले के जयसिंह नगर होते हुए व्योहारी और सीधी पहुंचकर बांधवगढ़ आ जाते हैं,

बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक ने ईटीवी से बात करते हुए बताया कि बांधवगढ में 2018 दिसंबर से आया हाथियों का कुनबे से लगातार हाथियों का दल बढ़ता जा रहा है. अब इन हाथियों के साथ रहने की आदत डालनी होगी. हालांकि क्षेत्र संचालक ने कहा कि अपनी टीम को प्रशिक्षित कर रहे हैं, साथ ही इन हालातों से निपटने के लिए ग्रामीणों को भी ट्रेनिंग दी जा रही है.

क्षेत्र संचालक, बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व

नहीं मिल पा रहा है मुआवजा
हाथियों द्वारा की गई फसल नुकसान का पिछले साल का भी मुआवजा अब तक किसानों को नहीं मिला है. राजस्व विभाग में बैठे बाबुओं की कमीशनखोरी की भेंट चढ़े किसान मुआवजे के लिए तरस रहे हैं. वहीं वरिष्ठ पत्रकार संतोष द्विवेदी ने कहा कि हाथी जिस गति से किसानों की फसल तबाह कर रहे हैं उस गति से यदि राजस्व विभाग सर्वे करके किसानों को छतिपूर्ति देने लगे तो द्वंद कुछ हद तक कम हो सकता है.

वरिष्ठ पत्रकार संतोष द्ववेदी

छत्तीसगढ़ और झारखंड की घटनाओं से सीख ले प्रबंधन
झारखण्ड हो या छत्तीसगढ़ या फिर उड़ीशा यहां लगातार हाथियों के बढ़ते कुनबे के साथ साथ इंसानों और हाथियों के बीच संघर्ष की घटनाएं बढ़ती जा रही है. या तो हाथी इंसानों की जान ले रहे हैं या इंसान हाथियों जान ले रहे हैं. यदि बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बसने वाले ग्रामीणों और हाथियों के बीच द्वंद को प्रशासन दूर करने के सकारात्मक प्रयाश नहीं किया तो इसके दूरगामी परिणाम छत्तीसगढ़, झारखंड या उड़ीशा जैसे होंगे इस बात से नकारा नहीं जा सकता है.

Last Updated : Oct 20, 2020, 7:36 PM IST
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