उमरिया। नवरात्रि का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व होता है. शास्त्रों के अनुसार एक वर्ष में चार नवरात्रि होती है, लेकिन मुख्य रूप से शरद नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि व्यापक रूप से मनाया जाता है. इसके अलावा माघ और आषाढ़ में नवरात्रि होती है, जिसे गुप्त नवरात्रि के रूप में जाना जाता है. आमतौर पर गुप्त नवरात्रि में तांत्रिक क्रियाएं होती है, माता को प्रसन्न करने के लिए आम श्रदालु भी गुप्त नवरात्रि में पूजा पाठ कर सकते हैं. गुप्त नवरात्रि के पांचवें दिन बसंत पंचमी मनाई जाएगी.
गुप्त नवरात्रि का महत्व: गुप्त नवरात्रि मुख्य रूप से तांत्रिकों, और साधुओं द्वारा मां दुर्गा को प्रसन्न करने की लिए किया जाता है. मान्यता है कि इस नवरात्रि में तांत्रिक 10 महाविद्याओं को प्रसन्न करने के लिए पूजा करते हैं, इसे गुप्त सिद्धियां और तांत्रिक सिद्धियां प्राप्त करने का समय भी माना जाता है और ये भी कहा जाता है कि मां दुर्गा की पूजा जितनी गुप्त रखी जाती है, उसका फल उतना ज्यादा मिलता है.
गुप्त नवरात्रि शुभ मुहूर्त: ज्योतिषाचार्य राजकिशोर शुक्ला ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि, इस बार की नवरात्र का प्रारंभ कामनापूर्ति करनें वाले सिद्धि नामक बहुत ही शुभ योग में हो रहा है, जिसका शुभारंभ पूर्वान्ह 10:06 बजे से है, और अगले दिन भोर 05:41 बजे तक रहेगा. (Gupt Navratri 2023) इस बार कलश स्थापना इसी सिद्धि योग में की जाएगी, कलश स्थापना के समय अभिजीत मुहूर्त में सिद्धि योग के होने से कार्य की सिद्धि होती है. अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:11 बजे से दोपहर 12:54 बजे तक है, इसी बीच कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त है.
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गुप्त नवरात्रि की 10 महाविद्याओं की पूजा: ज्योतिषाचार्य राजकिशोर शुक्ला ने बतया कि गुप्त नवरात्र में मां के नौ रूपों की बजाय दस महाविद्याओं की पूजा होती है. ये दस महाविद्याएं हैं-
देवी काली: तंत्र साधना में तांत्रिक देवी काली के रूप की उपासना किया करते हैं.
देवी तारा: मां तारा परारूपा हैं एवं महासुन्दरी कला- स्वरूपा हैं तथा सबकी मुक्ति का विधान रचती हैं, इनकी उपासना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक मानी जाती है.
मां ललिता: दक्षिणमार्गी शाक्तों के मतानुसार देवी ललिता को चण्डी का स्थान प्राप्त है, मां ललिता की पूजा से समृद्धि की प्राप्त होती है.
मां भुवनेश्वरी: भुवनेश्वरी माता सृष्टि के ऐश्वयर की स्वामिनी हैं और सर्वोच्च सत्ता की प्रतीक हैं, इनके मंत्र को समस्त देवी देवताओं की आराधना में विशेष शक्ति दायक माना जाता है.
त्रिपुर भैरवी: मां त्रिपुर भैरवी तमोगुण एवं रजोगुण से परिपूर्ण हैं.
माता छिन्नामस्तिका: मां छिन्नामस्तिका को मां चिंतपूर्णी के नाम से भी जाना जाता है, मां भक्तों के सभी कष्टों को मुक्त कर देने वाली हैं.
मां धूमावती: मां धूमावती के दर्शन पूजन से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है. मां धूमावती जी का रूप अत्यंत भयंकर हैं, इन्होंने ऐसा रूप शत्रुओं के संहार के लिए ही धारण किया है.
मां बगलामुखी: मां बगलामुखी स्तंभन की अधिष्ठात्री हैं, इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है.
देवी मातंगी: यह वाणी और संगीत की अधिष्ठात्री देवी कही जाती हैं, इनमें संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं जो अपने भक्तों को अभय का फल प्रदान करती हैं.
माता कमला: मां कमला सुख संपदा की प्रतीक हैं और धन संपदा की आधिष्ठात्री देवी हैं, भौतिक सुख की इच्छा रखने वालों के लिए इनकी अराधना सर्वश्रेष्ठ मानी जाती हैं.
गुप्त नवरात्रि में किस दिन किस देवी की पूजा:
22 जनवरी: घटस्थापना, शैलपुत्री पूजा
23 जनवरी: ब्रह्मचारिणी पूजा
24 जनवरी: चंद्रघंटा पूजा
25 जनवरी: कूष्माण्डा पूजा
26 जनवरी: स्कंदमाता पूजा
27 जनवरी: कात्यायनी पूजा
28 जनवरी: कालरात्रि पूजा
29 जनवरी: दुर्गा अष्टमी, महागौरी पूजा
30 जनवरी: सिद्धिदात्री पूजा, नवरात्र पारण
सिद्धियों की प्राप्ति के लिए गुप्त पूजा: ज्योतिषाचार्य राजकिशोर शुक्ला ने बताया कि, गुप्त नवरात्र को गुप्त साधना और विद्याओं की सिद्धि के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. गुप्त नवरात्र अन्य नवरात्र की तुलना में काफी अलग होती है, इस नवरात्र (Magh Gupt Navratri) में गुप्त विद्या की सिद्धी के लिए तंत्रसाधना की जाती है जो कि बिल्कुल ही गोपनीय तरीके से छिपाकर होती है. इन विद्याओं का जागरण संयम के साथ बड़ा ही जटिल और काण्टक पूर्ण माना गया है, इसीलिए लिए शाक्त ग्रंथो में गुप्त नवरात्रों का बड़ा ही माहात्म्य बताया गया है. मानव के समस्त रोग-दोष व कष्टों के निवारण के लिए गुप्त नवरात्र से बढ़कर कोई साधनाकाल नहीं हैं, इसे विशेष कामनापूर्ति और सिद्धि के लिए खास माना जाता है.
गुप्त नवरात्र में तांत्रिक साधाना: ज्योतिषाचार्य के अनुसार, मान्यता है कि गुप्त नवरात्रों के साधनाकाल में मां शक्ति का जप, तप, ध्यान करने से जीवन में आ रही सभी बाधाएं नष्ट होने लगती हैं, क्योंकि इस दौरान साधक तंत्र मंत्र और विशेष पाठ गुप्त रूप से करते हैं, तभी उनकी कामना सफलीभूत होती है. इस नवरात्र में गुप्त विद्या की सिद्धी हेतु तांत्रिक साधना की जाती है जो कि गुप्त रूप मे ही होती है और इसलिए इसे गुप्त नवरात्र कहा जाता है, अर्थात गुप्त नवरात्र आमतौर पर तांत्रिक और साधकों के लिए होती है. अघोर तांत्रिक गुप्त नवरात्र में दश महाविद्याओं को सिद्ध करने के लिए उपासना करते हैं, इसलिए यह दूसरे नवरात्र से बिल्कुल अलग होती है. कठिन उपासना होने के कारण मान्यता है कि गृहस्थ मनुष्य गुप्त नवरात्र नहीं मनाते.