उमरिया। बांधवगढ़ के बाघ-बाघिन चार्जर और सीता की प्यार की कहानी पूरे देश में मशहूर है और इनकी इस बेमिसाल लव स्टोरी की वजह से आज भी बांधवगढ़ में बाघों दहाड़ देशभर में गूंज रही है. ये लव स्टोरी है सीता और चार्जर की, जिन्होंने मिलकर चार बार शावकों को जन्म दिया. सीता 1980 के दशक में बांधवगढ़ में बड़ी हुई और पहली दो बार टाइगर बांका के साथ मिलकर शावकों को जन्म दिया. बांका की सल्तनत खत्म की युवा चार्जर ने और जोड़ी बनाई सीता के साथ. 1996 तक अलग-अलग वर्षों में इस जोड़ी ने कई टाइगर्स को जन्म दिया.
सीता और चार्जर के वशंजों से गुलजार है बाधवगढ़
बांधवगढ़ पार्क के नेचुरलिस्ट जगत चतुर्वेदी का कहना है कि चार्जर और सीता के वंशजों से ही बांधवगढ़ गुलजार है. इनकी तकरीबन दसवीं पीढ़ी चल रही है, इनके पहले मिलन से दो नर बाघ पैदा हुए- बड़ा बच्चा और लंगडू, लंगडू एक पैर से लंगड़ाता था. यहां चार्जर का वो पक्ष भी देखने को मिला जो अमूमन मेल टाइगर्स में नजर नहीं आता. चार्जर ने चार साल की उम्र तक लंगड़ू को बर्दाश्त किया, दूसरे बाघों की तरह खदेड़ा नहीं.
टाइगर टूरिस्म
वन्यजीव प्रेमियों के अनुसार बांधवगढ़ का सबसे प्रसिद्ध बाघ चार्जर हुआ है. बांधवगढ़ के इस बाघ ने नब्बे के दशक में चक्रधारा के जंगलों में एकछत्र राज किया. अपनी संगिनी शेरनी सीता के साथ बाघों के परिवार को बढ़ाने में चार्जर का महत्वपूर्ण योगदान रहा. सामान्यतः एक बाघ का जीवनकाल 12 से 15 वर्ष का होता है, लेकिन एक दशक तक चार्जर का एकछत्र राज अपने आप में असाधरण है. आईएफएस अधिकारी शहबाज खान ने अपनी किताब 'चार्जर: द लांग लाइविंग टाइगर' में चार्जर के उत्कृष्ट जीवन का विस्तृत वर्णन किया है. जब बांधवगढ़ का जंगल अवैध कटाई और शिकार के दबाव से जूझ रहा था तब इसे सीता और चार्जर ने आबाद किया. इसी के साथ शुरू हुआ एक नया टाइगर टूरिस्म का दौर.
एमपी फिर बना टाइगर स्टेट, जानिए किसका है अहम रोल
बांधवगढ़ के पूर्व फील्ड डायरेक्टर एलके चौधरी ने अपनी किताब 'बांधवगढ़: द फोर्ड ऑफ द टाइगर' में सीता और चार्जर की विस्तृत वंशावली का वर्णन किया है. बांधवगढ़ शुरूआती दौर में मात्र 105 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ था, वहीं आज बांधवगढ़ के इन बाघों की बदौलत मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा मिला हुआ है. वहीं पूरे विश्व के पर्यटकों के बीच बांधवगढ़ खूब पसंद किया जाने वाला पार्क बना हुआ है.
सुर्खियां बटोर रही थी सीता और चार्जर की जोड़ी
नेचुरिलिस्ट जगत चतुर्वेदी बताते है कि वैसे तो कोई बाघिन शिकार करती है तो उसे वह अपने बच्चो के साथ साझा करती है और मेल टाइगर को खाने से रोकती हैं पर उस दौरान अनूठी बात यह देखने को मिलती थी कि सीता चार्जर को शिकार खाने के लिए परमिट करती थी. यहां तक कि चार्जर अधिकतर सीता द्वारा किए गए शिकार पर ही निर्भर रहता था. अमूनन शेरनी सीता और चार्जर की जोड़ी भी पूरे विश्व के वन्यजीव प्रेमियों के बीच सुर्खियां बटोर रही रही थी.
दोनों ने बांधवगढ़ में ही त्यागे प्राण
सीता की प्रसिद्धि उसके जीवन का अकाल बन गई. शिकारियों की जद में आई सीता और चार्जर का साथ छूट गया. चार्जर ने सीता के बाद किसी भी शेरनी के साथ संबंध नहीं बनाया. उसके बाद चार्जर में वो फुर्ती देखने को नहीं मिली. जून 2000 में बी-2 के साथ हुई टेरिटोरियल फाइट में चार्जर घायल हो गया. घायल चार्जर को वनविभाग ने किसी चिड़ियाघर में शिफ्ट करने की योजना बनाई पर चार्जर ने अपने गौरव, पराक्रम और राजकाज को खत्म नहीं होने दिया. चार्जर ने बांधवगढ़ की धरा में ही अंतिम सांस ली.
नए साल पर देशी पर्यटकों से बांधवगढ़ हुआ गुलजार
गौरतलब है कि सीता और चार्जर की जोड़ी ने भारतीय वन्यजीवों के इतिहास में विशेष महत्व रखती है, दोनों के बीच असीम प्रेम की वजह से बांधवगढ़ में बाघों के बेहतर भविष्य के लिए रास्ता बन पाया. बाघ का जब जब जिक्र होगा हिंदुस्तान के दिल मे बसे बांधवगढ़ का नाम सबसे पहले लिया जाएगा. आज सीता और चार्जर के पगमार्क भले ही समय की रेत पर धूमिल हो गए है पर दोनों की अमरप्रेम कहानी बांधवगढ़ की लोककथाओं के साथ साथ वन्यजीव प्रेमियों के बीच सदैव अमर रहेगी.