उज्जैन। शहर के कानीपुरा मार्ग पर स्थित वैश्य टेकरी पर रविवार को राष्ट्रीय बौद्ध महास्तूप में समाज जनों ने भगवान गौतम बुद्ध की मूर्ति और शिरोमणि रविदास की पूजा कर अनुयायियों संग विश्व शांति की प्रार्थना की. समाज जनों में आयोजक शशि वानखेड़े ने बताया कि, यहां जब सम्राट अशोक को संगमित्रा और महेंद्रा पुत्र रत्न प्राप्ति हुई और जब दोनों पुत्र श्रीलंका में बौद्धधर्म के प्रचार के लिए गए तो उनका वहां मृत्यु हो गई. इसके बाद दोनों की अस्थि यहां स्तूप रूम में रखी गई. हम प्रत्येक साल बौद्ध महास्तूप महोत्सव का आयोजन करते हैं.
उज्जैन का स्तूप सबसे बड़ा: जानकारों पुराविदों के अनुसार वैश्य टेकरी के नाम से 300 साल पुराना बौद्ध स्तूप उज्जैन के कानीपुरा मार्ग में वैश्य टेकरी के नाम से स्तिथ है. पुरातत्वविद डॉ. रमणसिंह सोलंकी के मुताबिक सम्राट अशोक ने अपनी पत्नी की स्मृति में भारतवर्ष में 84 हजार स्तूपों का निर्माण कराया था. इन स्तूपों में उज्जैन का स्तूप सबसे बड़ा है. साल 1937-38 में मिस्टर गर्दे द्वारा की गई खुदाई में इस स्तूप के अवशेष प्राप्त हुए थे. पास ही उडासा तालाब है जहां साइबेरिया समेत दुनियाभर से प्रवासी पक्षी हर साल पहुंचते हैं.
कई देशों की आस्था का केंद्र है यह स्थान: पुराविद बताते हैं भारत समेत चीन, कंबोडिया, श्रीलंका, जापान के बुद्ध अनुयायियों के लिए यह आस्था का केंद्र है. अगर इसका समुचित विकास हो तो यह पर्यटन केंद्र के रूप में भी विकसित हो सकता है. जानकारों का कहना है कि, वैश्य टेकरी पर बिजली के खंभे तन गए हैं और आसपास खेती हो रही है. जबकि यहां खोदाई पर प्रतिबंध हैं. इसका व्यास 350 फीट है और ऊंचाई 100 फीट. यह राष्ट्रीय संरक्षित स्मारकों की सूची में शामिल है, लेकिन वर्तमान में इसकी स्थिति ठीक नहीं है. इस स्तूप की तरफ सरकार को देख रेख करना चाहिए.