उज्जैन। शहर के नागदा से करीब 12 किलोमीटर दूर पित्रामल गुराड़िया गांव में करीब 54 साल पहले आचार्य नानालालजी अपने संत मुनि सहित इस गांव में विचरण करते हुए पहुंचे थे. गांव के बुजुर्गों के अनुसार अपनी ओजस्वी वाणी से इस गांव में रहने वाले परिवारों को व्यसनों से दूर कर जैन धर्म के बारे में शिक्षित किए थे, जिसके बाद गांव के ज्यादातर परिवारों ने जैन धर्म अपना लिया और वैसा ही जीवन गुजारने लगे, इस गांव के इन परिवारों को धर्मपाल जैन के नाम से संबोधित किया गया.
ऐसे ही स्वर्गीय धुलजी भाई का परिवार भी जैन धर्म का अनुसरण करते हुए अपना जीवन यापन कर रहा है, उनकी पत्नी शैतानबाई जिनकी आयु लगभग 85 वर्ष थी और पिछले कुछ समय से अस्वस्थ थीं. जिनका जैन धर्म के अनुसार अंतिम समय में संथारा पचकान करवाया गया और करीब तीन घंटे बाद इनका संथारा सीजा और अंतिम सांस ली.
देवलोक गमन होने के पहले नागदा में महावीर भवन स्थानक में विराजित साध्वी अरूणा श्रीजी म.सा. के दर्शन एवं मांगलिक का लाभ दिवंगत शैतानबाई ने लिया. इन्हें नागदा के श्रावक चंदनमलजी संघवी ने स्वयं शैतानबाई की इच्छा और परिवार के सभी सदस्यों की अनुमति से संथारा पचकान दिलाया गया. जिसके बाद पूरे गांव में डोली निकाली गई और मृत्यु महोत्सव मनाया गया.