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Pitur Paksha 2021: उज्जैन में अब ऑनलाइन भी हो रहा पिंडदान, चुटिकयों में पंडित बता देते हैं 150 साल के पूर्वजों का इतिहास

शिप्रा नदी (Shipra River) किनारे सिद्धवट घाट (Siddhavat Ghat) पर आने वाले श्रद्धालु सिर्फ अपना नाम और शहर का नाम बताकर अपनी पीढ़ियों का पता पंडितों से लगाते हैं और फिर अपने पूर्वजों का तर्पण करते हैं. इस आधुनिक युग में भी बिना कम्प्यूटर के 150 वर्ष पुराने पोथी पर काम कर रहे पंडित चुटकियों में श्रद्धालु के परिवार का लेखा जोखा सामने रख देते हैं. यही

उज्जैन में अब ऑनलाइन भी हो रहा पिंडदान
उज्जैन में अब ऑनलाइन भी हो रहा पिंडदान
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Published : Sep 20, 2021, 3:02 PM IST

उज्जैन। हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण पितृ पक्षों (Pitru Paksha) की सोमवार से शुरुआत हो गई है. उज्जैन के रामघाट, सिद्धवट घाट में आज बड़ी संख्या श्रद्धालु अपने पितृ का तर्पण करने पंहुचेंगे. शिप्रा नदी (Shipra River) किनारे सिद्धवट घाट (Siddhavat Ghat) पर आने वाले श्रद्धालु सिर्फ अपना नाम और शहर का नाम बताकर अपनी पीढ़ियों का पता पंडितों से लगाते हैं और फिर अपने पूर्वजों का तर्पण करते हैं. इस आधुनिक युग में भी बिना कम्प्यूटर के 150 वर्ष पुराने पोथी पर काम कर रहे पंडित चुटकियों में श्रद्धालु के परिवार का लेखा जोखा सामने रख देते हैं. यही नहीं बल्कि कई बार इनकी पोथियों से कोर्ट के केस का भी निपटारा हुआ है. कोरोना के चलते कई श्रद्धालु जब उज्जैन के सिद्धवट और रामघाट पर नहीं आ पा रहे हैं, तो श्रद्धालुओं ने ऑनलाइन ही तर्पण करना शुरू कर दिया है.

उज्जैन में अब ऑनलाइन भी हो रहा पिंडदान

तर्पण का उज्जैन में है खासा महत्व
उज्जैन में भी पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध के लिए उतना ही महत्व है, जितना महत्व बिहार के गया (Shradh in Gaya) का है. इसके साथ ही रामघाट (Ramghat) पर भी पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध किया जाता है. भगवान राम ने वनवास के दौरान अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध भी उज्जैन में ही किया था. पूर्णिमा तिथि पर गया कोठा मंदिर में हजारों लोग पूर्वजों के लिए जल-दूध से तर्पण और पिंडदान करेंगे. शास्त्रों के अनुसार सूर्य इस दौरान श्राद्ध तृप्त पितरों की आत्माओं को मुक्ति का मार्ग देता है.

यहां देश के कोने-कोने से आत हैं लोग
धर्म शास्त्रों में अवंतिका नगरी (Avintka Nagari) के नाम से प्रख्यात उज्जैन शहर में श्राद्ध पक्ष के आरंभ होते ही देश के कोने-कोने से लोगों का आना शुरू हो जाता है. मोक्ष दायिनी शिप्रा नदी के तटों पर स्थित सिद्धवट पर श्रद्धालु अपने पूर्वजों के लिए तर्पण व पिंडदान कराने पहुंचते हैं. शहर के अतिप्राचीन सिद्धवट मंदिर में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है. यहां लोग प्राचीन वटवृक्ष की पूजा–अर्चना कर पितृ शांति के लिए प्रार्थना करते हैं.

सिद्धवट पर 16 दिनों तक चलेगा तर्पण
सिद्धवट घाट पर जो वट वृक्ष है, वह माता पार्वती ने लगाया था. इसका वर्णन स्कंद पुराण में भी है. सिद्धवट पर पितरों के कर्मकांड व तर्पण का यह कार्य 16 दिनों तक चलता रहेगा. पितृ मोक्ष के लिए श्रद्धालु इन 16 दिनों की विभिन्न तिथियों में ब्राह्मण को भोजन दान, गाय दान, साथ ही गाय व कव्वौ को भोजन कराते हैं. मान्यता है कि उज्जैन में श्राद्ध करने से पितरों को बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है.

150 साल का रिकॉर्ड यहां रखते हैं पंडित
उज्जैन में 150 साल पुराना रिकॉर्ड सभी पंडितों के पास है. कोई भी कम्प्यूटर नहीं चलाता है. इस युग में भी कुछ ही पलों में बही खाते में से पीढ़ियों का हिसाब सामने रख देते हैं. पंडित दिलीप गुरु के अनुसार 150 वर्ष पुराना रिकॉर्ड रखने के लिए किसी भी कम्प्यूटर (Computer) का सहारा नहीं लिया जाता है. सिर्फ पोथी में इंडेक्स, समाज का नाम, गांव या शहर का नाम या गोत्र बताने से ही पीढ़ी में कौन कब आया था और किसका तर्पण किया गया था, ये सब चुटकियों में पता चल जाता है. यही नहीं वर्षों पुराने इस बही खाते को तो कोर्ट भी मान्य करता है. भाई-भाई के जायदात के विवाद में कोर्ट (Court) ने भी इसे मान्यता दी है और कई बार फैसले भी बही खाते के आधार पर हुए हैं.

महाकाल के रूप में शिव का हुआ था आगमन
उज्जैन अवंतिका नगरी बाबा महाकाल (Baba Mahakal) के नाम से जानी जाती है. सतयुग से बाबा महाकाल के रूप में शिव का यहां पर आगमन हुआ. सतयुग से ही तर्पण श्राद्ध के लिए यह जगह जानी जाती है. जब उनकी सेना भूत प्रेत पिशाच ने उनसे अपने मुक्ति का स्थल मांगा था तो उनके आशीष से मुक्ति का स्थल सिद्धवट क्षेत्र दिया गया. तब से सिद्धवट को भूत प्रेत पिशाच को मुक्ति के प्रेत शिला के रूप में जाना जाता है. वनवास के दौरान स्कंद पुराण के अनुसार भगवान राम (Lord Ram), मां सीता (maa sita) और लक्ष्मण के साथ इस नगर से गुजर थे, तब उन्होंने अपने पिता दशरथ का यहां पर तर्पण श्राद्ध किया था.

तर्पण करने की पंडितों ने ऑनलाइन भी की व्यवस्था
कोरोना के चलते अब श्रद्धालु उज्जैन नहीं आ पा रहे हैं. ऐसे में उनके लिए पंडितो ने ऑनलाइन की व्यवस्था भी की है. सिंगापुर से जुड़े शर्मा परिवार और असम से जुड़े सक्सेना परिवार ने सोशल मीडिया से जुड़कर घर बैठे तर्पण किया. इधर, पंडित जी मंत्र बोलते रहे उधर घर पर अपने पूर्वजों के निमित्त परिवार वाले पूजन पाठ करते रहे. फेसबुक के माध्यम से कई परिवारों ने ऑनलाइन तर्पण बुक कराया है. श्रद्धालु दान दक्षिणा भी ऑनलाइन के जरिये पंडित के खाते में राशि भेजते हैं.

150 वर्ष पुराना रिकॉर्ड बिना कम्प्यूटर के पल भर में सामने
पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध की विधि में कुल के नाम के साथ पूर्वजों के नाम का उल्लेख का विशेष महत्व है. आम लोगों के कई पीढ़ी और पूर्वजों के नाम याद रखना आसान नहीं होता है. इसमें तीर्थ पुरोहितों के पास उपलब्ध पौथी बड़ी सहायक होती है. उज्जैन के अधिकांश तीर्थ पुरोहितों के पास पूर्व के अनेक परिवार के पूर्वजों के नामों की पोथी बनी हुई है.

Pitru Paksh 2021: पितृ पक्ष आज से शुरू, सुख-समृद्धि और संतान के लिए पितरों को ऐसे करें खुश, पढ़ें पौराणिक कथा

300 पुजारी करवाते हैं पूजन
उज्जैन शहर में 12 पण्डे प्रमुख हैं, जो श्राद्ध पक्ष का पूजन करवाते हैं. जिसमें तर्पण, विष्णु पूजा, देव पूजा, ऋषिमनुष्य और पित्र तर्पण आदि की पूजन होता है. इसके अलावा 300 से अधिक पंडित इन दिनों में रामघाट, सिद्धवट घाट, गया कोठा सहित अन्य जगहों पर पूजन करवाते हैं.

उज्जैन। हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण पितृ पक्षों (Pitru Paksha) की सोमवार से शुरुआत हो गई है. उज्जैन के रामघाट, सिद्धवट घाट में आज बड़ी संख्या श्रद्धालु अपने पितृ का तर्पण करने पंहुचेंगे. शिप्रा नदी (Shipra River) किनारे सिद्धवट घाट (Siddhavat Ghat) पर आने वाले श्रद्धालु सिर्फ अपना नाम और शहर का नाम बताकर अपनी पीढ़ियों का पता पंडितों से लगाते हैं और फिर अपने पूर्वजों का तर्पण करते हैं. इस आधुनिक युग में भी बिना कम्प्यूटर के 150 वर्ष पुराने पोथी पर काम कर रहे पंडित चुटकियों में श्रद्धालु के परिवार का लेखा जोखा सामने रख देते हैं. यही नहीं बल्कि कई बार इनकी पोथियों से कोर्ट के केस का भी निपटारा हुआ है. कोरोना के चलते कई श्रद्धालु जब उज्जैन के सिद्धवट और रामघाट पर नहीं आ पा रहे हैं, तो श्रद्धालुओं ने ऑनलाइन ही तर्पण करना शुरू कर दिया है.

उज्जैन में अब ऑनलाइन भी हो रहा पिंडदान

तर्पण का उज्जैन में है खासा महत्व
उज्जैन में भी पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध के लिए उतना ही महत्व है, जितना महत्व बिहार के गया (Shradh in Gaya) का है. इसके साथ ही रामघाट (Ramghat) पर भी पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध किया जाता है. भगवान राम ने वनवास के दौरान अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध भी उज्जैन में ही किया था. पूर्णिमा तिथि पर गया कोठा मंदिर में हजारों लोग पूर्वजों के लिए जल-दूध से तर्पण और पिंडदान करेंगे. शास्त्रों के अनुसार सूर्य इस दौरान श्राद्ध तृप्त पितरों की आत्माओं को मुक्ति का मार्ग देता है.

यहां देश के कोने-कोने से आत हैं लोग
धर्म शास्त्रों में अवंतिका नगरी (Avintka Nagari) के नाम से प्रख्यात उज्जैन शहर में श्राद्ध पक्ष के आरंभ होते ही देश के कोने-कोने से लोगों का आना शुरू हो जाता है. मोक्ष दायिनी शिप्रा नदी के तटों पर स्थित सिद्धवट पर श्रद्धालु अपने पूर्वजों के लिए तर्पण व पिंडदान कराने पहुंचते हैं. शहर के अतिप्राचीन सिद्धवट मंदिर में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है. यहां लोग प्राचीन वटवृक्ष की पूजा–अर्चना कर पितृ शांति के लिए प्रार्थना करते हैं.

सिद्धवट पर 16 दिनों तक चलेगा तर्पण
सिद्धवट घाट पर जो वट वृक्ष है, वह माता पार्वती ने लगाया था. इसका वर्णन स्कंद पुराण में भी है. सिद्धवट पर पितरों के कर्मकांड व तर्पण का यह कार्य 16 दिनों तक चलता रहेगा. पितृ मोक्ष के लिए श्रद्धालु इन 16 दिनों की विभिन्न तिथियों में ब्राह्मण को भोजन दान, गाय दान, साथ ही गाय व कव्वौ को भोजन कराते हैं. मान्यता है कि उज्जैन में श्राद्ध करने से पितरों को बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है.

150 साल का रिकॉर्ड यहां रखते हैं पंडित
उज्जैन में 150 साल पुराना रिकॉर्ड सभी पंडितों के पास है. कोई भी कम्प्यूटर नहीं चलाता है. इस युग में भी कुछ ही पलों में बही खाते में से पीढ़ियों का हिसाब सामने रख देते हैं. पंडित दिलीप गुरु के अनुसार 150 वर्ष पुराना रिकॉर्ड रखने के लिए किसी भी कम्प्यूटर (Computer) का सहारा नहीं लिया जाता है. सिर्फ पोथी में इंडेक्स, समाज का नाम, गांव या शहर का नाम या गोत्र बताने से ही पीढ़ी में कौन कब आया था और किसका तर्पण किया गया था, ये सब चुटकियों में पता चल जाता है. यही नहीं वर्षों पुराने इस बही खाते को तो कोर्ट भी मान्य करता है. भाई-भाई के जायदात के विवाद में कोर्ट (Court) ने भी इसे मान्यता दी है और कई बार फैसले भी बही खाते के आधार पर हुए हैं.

महाकाल के रूप में शिव का हुआ था आगमन
उज्जैन अवंतिका नगरी बाबा महाकाल (Baba Mahakal) के नाम से जानी जाती है. सतयुग से बाबा महाकाल के रूप में शिव का यहां पर आगमन हुआ. सतयुग से ही तर्पण श्राद्ध के लिए यह जगह जानी जाती है. जब उनकी सेना भूत प्रेत पिशाच ने उनसे अपने मुक्ति का स्थल मांगा था तो उनके आशीष से मुक्ति का स्थल सिद्धवट क्षेत्र दिया गया. तब से सिद्धवट को भूत प्रेत पिशाच को मुक्ति के प्रेत शिला के रूप में जाना जाता है. वनवास के दौरान स्कंद पुराण के अनुसार भगवान राम (Lord Ram), मां सीता (maa sita) और लक्ष्मण के साथ इस नगर से गुजर थे, तब उन्होंने अपने पिता दशरथ का यहां पर तर्पण श्राद्ध किया था.

तर्पण करने की पंडितों ने ऑनलाइन भी की व्यवस्था
कोरोना के चलते अब श्रद्धालु उज्जैन नहीं आ पा रहे हैं. ऐसे में उनके लिए पंडितो ने ऑनलाइन की व्यवस्था भी की है. सिंगापुर से जुड़े शर्मा परिवार और असम से जुड़े सक्सेना परिवार ने सोशल मीडिया से जुड़कर घर बैठे तर्पण किया. इधर, पंडित जी मंत्र बोलते रहे उधर घर पर अपने पूर्वजों के निमित्त परिवार वाले पूजन पाठ करते रहे. फेसबुक के माध्यम से कई परिवारों ने ऑनलाइन तर्पण बुक कराया है. श्रद्धालु दान दक्षिणा भी ऑनलाइन के जरिये पंडित के खाते में राशि भेजते हैं.

150 वर्ष पुराना रिकॉर्ड बिना कम्प्यूटर के पल भर में सामने
पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध की विधि में कुल के नाम के साथ पूर्वजों के नाम का उल्लेख का विशेष महत्व है. आम लोगों के कई पीढ़ी और पूर्वजों के नाम याद रखना आसान नहीं होता है. इसमें तीर्थ पुरोहितों के पास उपलब्ध पौथी बड़ी सहायक होती है. उज्जैन के अधिकांश तीर्थ पुरोहितों के पास पूर्व के अनेक परिवार के पूर्वजों के नामों की पोथी बनी हुई है.

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300 पुजारी करवाते हैं पूजन
उज्जैन शहर में 12 पण्डे प्रमुख हैं, जो श्राद्ध पक्ष का पूजन करवाते हैं. जिसमें तर्पण, विष्णु पूजा, देव पूजा, ऋषिमनुष्य और पित्र तर्पण आदि की पूजन होता है. इसके अलावा 300 से अधिक पंडित इन दिनों में रामघाट, सिद्धवट घाट, गया कोठा सहित अन्य जगहों पर पूजन करवाते हैं.

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