उज्जैन। मध्य प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में उज्जैन जिले की घटिया विधानसभा सीट पर सभी की निगाह होगी. यह वही सीट है, जहां बीजेपी ने चुनाव के कुछ समय पहले कांग्रेस के पूर्व सांसद को लाकर टिकट दिया, लेकिन बीजेपी चुनाव हार गई और नेताजी फिर पुरानी पार्टी में चले गए. हालांकि अब एपीसोड को भुलाकर बीजेपी इस बार यहां जीत दर्ज करने तैयारी में जुटी है. इस विधानसभा क्षेत्र का सबसे रोचक पहलू यह भी है कि यहां 6 विधानसभा चुनाव के दौरान पिछला चुनाव हार चुके उम्मीदवार को ही जीत मिली है. यहां एक बार बीजेपी, तो अगली बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है.
यह है इस सीट का चुनावी इतिहास: मालवांचल के उज्जैन जिले की 7 विधानसभा सीटों का परिदृश्य देखा जाए तो 2018 के चुनाव में 3 सीटें बीजेपी, जबकि चार सीटें कांग्रेस के खाते में गई थी. उज्जैन से शिवराज सरकार में मोहन यादव उच्च शिक्षा मंत्री हैं, जो उज्जैन दक्षिण का प्रतिनिधित्व करते हैं. बीजेपी जिले के शहरी इलाकों में भले ही मजबूत हो, लेकिन ग्रामीण इलाकों में पार्टी को वोट हासिल करना चुनौती भरा है. यही वजह है कि पार्टी चुनाव के काफी पहले से स्थानीय स्तर पर एक्ससाइज करना शुरू कर दिया था. उज्जैन की घटिया विधानसभा सीट को लेकर बीजेपी ने पहले से ही अंदरूनी गुटबाजी को साधना शुरू कर दिया है. घटिया विधानसभा सीट से टिकट की दावेदारी कर रहे प्रताप करोसिया को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे चुकी है. माना जा रहा है कि पार्टी पिछली गलती से सबक लेकर अपने जमीनी कार्यकर्ता को ही मैदान में उतारेगी. पूर्व विधायक सतीश मालवीय पर भी बीजेपी फिर दांव लगा सकती है. उधर कांग्रेस एक बार फिर अपने सीनियर विधायक रामलाल मालवीय को चुनाव में उतार सकती है. रामलाल मालवीय दिग्विजय सिंह गुट के नेता माने जाते हैं. कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के समय दिग्विजय सिंह के प्रस्तावक के तौर पर रामलाल मालवीय उनके साथ दिल्ली गए थे.
पिछले चुनाव में बीजेपी को उलटा पड़ा था दांव: 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पूर्व सांसद प्रेमचंद्र गुड्डू को कांग्रेस से तोड़कर घटिया से चुनावी मैदान में उतारा था. हालांकि चुनाव के ठीक पहले पार्टी में आए प्रेमचंद्र गुड्डू को लेकर पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं का ही साथ नहीं मिल सका और वे 2256 वोटों से हार गए. हालांकि पार्टी को उससे बड़ा झटका तब लगा, जब गुड्डू चुनाव के बाद ही बीजेपी छोड़कर वापस कांग्रेस में शामिल हो गए. इस पूरे एपीसोड से बीजेपी के स्थानीय जमीनी कार्यकर्ता ठगा सा रह गया. यही वजह है कि इस बार क्षेत्र में पहुंच रहे पार्टी पदाधिकारियों के सामने कार्यकर्ता सिर्फ उम्मीदवार की पैरासूट लैंडिंग न करते हुए स्थानीय को ही मौका दिए जाने की मांग कर रहे हैं.
हर बार चेहरा बदलने का ट्रेंड: इस विधानसभा क्षेत्र का एक और अलग ट्रेंड है. यहां हर विधानसभा चुनाव में मतदाता अपना जनप्रतिनिधि बदल देता है. पिछले 6 चुनाव में यहां एक दफा बीजेपी का उम्मीदवार जीतता है, तो दूसरी बार जीत का सेहरा कांग्रेस उम्मीदवार के सिर सजता है. 1995 के विधानसभा चुनाव में यहां बीजेपी उम्मीदवार रामेश्वर अखंड ने जीत दर्ज की थी, लेकिन 1998 के चुनाव में कांग्रेस के रामलाल मालवीय चुनाव जीत गए. 2003 का चुनाव बीजेपी उम्मीदवार डॉ. नारायण परमार ने जीता तो 2008 में कांग्रेस के रामलाल मालवीय ने विजय हासिल की. 2013 और 2018 के विधानसभा चुनाव में भी यही ट्रेंड रहा.