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जानें क्या है बाबा महाकाल का इतिहास, मंदिर की नींव से लेकर अब तक की कहानी

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Published : Dec 26, 2021, 2:22 PM IST

नव वर्ष शुरू होने जा रहा है. ऐसे में श्रद्धालु नए साल पर बाबा महाकाल का आशीर्वाद लेने उज्जैन पहुंच रहे है. दरअसल महाकाल मंदिर में परम्परा है कि हिन्दू रीती रिवाज से मनाये जाने वाले सभी त्योहार महाकाल मंदिर में सबसे पहले मनाये जाते हैं. आएये जानते हैं, बाबा महाकाल का इतिहास.

baba mahakal
बाबा महाकाल

उज्जैन। देशभर के बारह ज्योतिर्लिंगों में 'महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग' का अपना एक अलग महत्व है. महाकाल मंदिर दक्षिण मुखी होने से भी इस मंदिर का महत्व और बढ़ जाता है. महाकाल (mahakal mandir ujjain) मंदिर विश्व का एक मात्र ऐसा शिव मंदिर है जहां दक्षिणमुखी शिवलिंग प्रतिष्ठापित है. यह स्वयंभू शिवलिंग है, जो बहुत जाग्रत है. इसी कारण केवल यहां तड़के चार बजे भस्म आरती (bhasma aarti timing of mahakal mandir) करने का विधान है. यह प्रचलित मान्यता थी कि श्मशान में कि ताजा चिता की भस्म से भस्म आरती की जाती थी. पर वर्तमान में गाय के गोबर से बनाए गए कंडों की भस्म से भस्म आरती की जाती है.

बाबा महाकाल मंदिर उज्जैन

'काल उसका क्या बिगाड़े जो भक्त महाकाल का'
एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भस्म आरती केवल पुरुष ही देखते हैं, जिन पुरुषों ने बिना सिला हुआ सोला पहना हो. वही लोग भस्म आरती से पहले भगवन शिव को जल चढ़ाकर और छूकर दर्शन कर सकते हैं. कहा जाता है कि जो महाकाल का भक्त है- उसका काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता. महाकाल के बारे में तो यह भी कहा जाता है कि यह पृथ्वी का एक मात्र मान्य शिवलिंग है. महाकाल की महिमा का वर्णन इस प्रकार से भी किया गया है.

आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम् ।
भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते ॥

इसका तात्पर्य यह है कि आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग हैं.

अनादि काल से मानी गई है उत्पत्ति (history of mahakal mandir)
उज्जैन महाकाल मंदिर में शिव लिंग स्वयं भू है. महाकाल को कालो का काल भी कहा जाता है. मान्यता है कि भगवान महाकाल काल को हर लेते हैं. बाबा महाकाल की उत्पति अनादि काल में मानी गई है. महाकाल मंदिर में सामन्यतः चार आरती होती हैं, जिसमें से अल सुबह होने वाली भस्म आरती के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से उज्जैन पंहुचते हैं. श्रद्धालु की अपनी मान्यता है की जो भी वर भगवान् महाकाल से मांगों वो हर इच्छा पूरी करते हैं. इसी मान्यता के चलते बड़ी संख्या में श्रद्धालु रोजाना महाकाल मंदिर पहुंचते हैं.

सबसे पहले मनाया जाता है त्योहार (baba mahakal pujan vidhi)
महाकाल मंदिर में सभी हिन्दू त्योहार सबसे पहले बनाने की परम्परा है. भगवन शिव का त्योहार महा शिवरात्रि तो नौ दिन पहले ही शुरू हो जाता है. जिसको शिव नवरात्रि भी कहा जाता है. जिस तरह माता की नवरात्रि होती हैं, उसी तरह बाबा महाकाल को भी नौ दिन तक अलग अलग श्रृंगार से सजाया जाता है. आखिर में महा शिवरात्रि के दिन बाबा महाकाल को दूल्हे की तरह सजाया जाता है. वर्ष भर में एक बार दिन में होने वाली भस्म आरती भी महा शिवरात्रि के दूसरे दिन होती है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं.

राणोजी शिन्दे ने बनवाया था मंदिर
उज्जैन का शिवलिंग बारह ज्योतिर्लिंगों में से तीसरे नंबर का है. आज जो महाकालेश्वर का विश्व-प्रसिद्ध मन्दिर की ईमारत विद्यमान है. यह राणोजी शिन्दे शासन की देन है. यह तीन खण्डों में विभक्त है. निचले खण्ड में महाकालेश्वर बीच के खण्ड में ओंकारेश्वर तथा सर्वोच्च खण्ड में नागचन्द्रेश्वर के शिवलिंग प्रतिष्ठ हैं. शिखर के तीसरे तल पर भगवान शंकर-पार्वती नाग के आसन और उनके फनों की छाया में बैठी हुई सुन्दर और दुर्लभ प्रतिमा है. इसके दर्शन वर्ष में एक बार श्रावण शुक्ल पंचमी- नागपंचमी के दिन होते हैं.

यह है मंदिर की भौगोलिक स्थिति
यहीं एक शिवलिंग भी है. कोटि तीर्थ कुण्ड के पूर्व में जो विशाल बरामदा है. वहां से महाकालेश्वर (geographical structure of mahakal temple ujjain) के गर्भगृह में प्रवेश किया जाता है. इसी बरामदे के उत्तरी छोर पर भगवान राम एवं देवी अवन्तिका की आकर्षक प्रतिमाएं पूज्य हैं. इन मन्दिरों में वृद्ध महाकालेश्वर, अनादिकल्पेश्वर एवं सप्तर्षि मन्दिर प्रमुखता रखते हैंं ये मन्दिर भी बड़े भव्य एवं आकर्षक हैं. महाकालेश्वर का लिंग पर्याप्त विशाल है. गर्भगृह में ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त गणेश, कार्तिकेय एवं पार्वती की आकर्षक प्रतिमाएं प्रतिष्ठ हैं. दीवारों पर चारों ओर शिव की मनोहारी स्तुतियां अंकित हैं. नंदादीप सदैव प्रज्ज्वलित रहता है.

नववर्ष के मौके पर पहुंच रहे श्रद्धालु
उज्जैन भगवान महाकाल यंहा के राजा के रुपए में पूजे जाते हैं. बड़ी संख्या में श्रद्धालु उज्जैन में बाबा महाकाल के दर्शन के लिए आते हैं. नव वर्ष पर भीड़ ज्यादा दिखाई देती है. 31 दिसम्बर से 5 जनवरी तक देश भर के श्रद्धालु महाकाल मंदिर के दर्शन के लिए पहुंचेंगे. श्रद्धालु अपना नये वर्ष का आगाज बाबा महाकाल के आंगन से ही करते हैं. हरियाणा से आये श्रद्धालु ने कहा की बस यही चाहते हैं कि नववर्ष में बाबा के दर्शन हो जाएं, ताकि पूरा वर्ष उनके आशीर्वाद से अच्छा जाए. इसी तरह जयपुर से आये एक श्रद्धालु ने कहा नववर्ष महाकाल के साथ मानने के लिए प्रति वर्ष में उज्जैन आता हूं. बाबा महाकाल के दर्शन करने के लिए यूपी, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा, साउथ के कई राज्यों से पहुंचते हैं.

महाकाल की भक्ति में डूबे मंत्री तुलसी सिलावट, Ken Betwa Link Project के लिए बाबा महाकाल को दिया धन्यवाद

मंदिर में कितना आता है दान (donation for baba mahakal ujjain)
महाकाल मंदिर में साल भर दान आता है. इसमें कैश, सोने-चांदी के बर्तन, गहने सहित अन्य सामग्री समय-समय पर श्रद्धालु दान करते रहते हैं. महाकाल मंदिर की दान सहित कुल आय 23 करोड़ आयी बताई गयी थी. महाकालेश्वर मंदिर में लॉकडाउन के बाद 28 जून 2021 से मंदिर का दरबार आम श्रद्धालुओं के लिए खोला गया था. 3 महीने 17 दिन के समय में देश भर से आने वाले श्रद्धालुओं ने भी दिल खोलकर बाबा महाकाल के खजाने में 23 करोड़ रुपए से अधिक की दान राशि जमा कर दी है. प्राप्त आय 28 जून 2021 से लेकर 15 अक्टूबर 2021 तक की है.

उज्जैन। देशभर के बारह ज्योतिर्लिंगों में 'महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग' का अपना एक अलग महत्व है. महाकाल मंदिर दक्षिण मुखी होने से भी इस मंदिर का महत्व और बढ़ जाता है. महाकाल (mahakal mandir ujjain) मंदिर विश्व का एक मात्र ऐसा शिव मंदिर है जहां दक्षिणमुखी शिवलिंग प्रतिष्ठापित है. यह स्वयंभू शिवलिंग है, जो बहुत जाग्रत है. इसी कारण केवल यहां तड़के चार बजे भस्म आरती (bhasma aarti timing of mahakal mandir) करने का विधान है. यह प्रचलित मान्यता थी कि श्मशान में कि ताजा चिता की भस्म से भस्म आरती की जाती थी. पर वर्तमान में गाय के गोबर से बनाए गए कंडों की भस्म से भस्म आरती की जाती है.

बाबा महाकाल मंदिर उज्जैन

'काल उसका क्या बिगाड़े जो भक्त महाकाल का'
एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भस्म आरती केवल पुरुष ही देखते हैं, जिन पुरुषों ने बिना सिला हुआ सोला पहना हो. वही लोग भस्म आरती से पहले भगवन शिव को जल चढ़ाकर और छूकर दर्शन कर सकते हैं. कहा जाता है कि जो महाकाल का भक्त है- उसका काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता. महाकाल के बारे में तो यह भी कहा जाता है कि यह पृथ्वी का एक मात्र मान्य शिवलिंग है. महाकाल की महिमा का वर्णन इस प्रकार से भी किया गया है.

आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम् ।
भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते ॥

इसका तात्पर्य यह है कि आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग हैं.

अनादि काल से मानी गई है उत्पत्ति (history of mahakal mandir)
उज्जैन महाकाल मंदिर में शिव लिंग स्वयं भू है. महाकाल को कालो का काल भी कहा जाता है. मान्यता है कि भगवान महाकाल काल को हर लेते हैं. बाबा महाकाल की उत्पति अनादि काल में मानी गई है. महाकाल मंदिर में सामन्यतः चार आरती होती हैं, जिसमें से अल सुबह होने वाली भस्म आरती के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से उज्जैन पंहुचते हैं. श्रद्धालु की अपनी मान्यता है की जो भी वर भगवान् महाकाल से मांगों वो हर इच्छा पूरी करते हैं. इसी मान्यता के चलते बड़ी संख्या में श्रद्धालु रोजाना महाकाल मंदिर पहुंचते हैं.

सबसे पहले मनाया जाता है त्योहार (baba mahakal pujan vidhi)
महाकाल मंदिर में सभी हिन्दू त्योहार सबसे पहले बनाने की परम्परा है. भगवन शिव का त्योहार महा शिवरात्रि तो नौ दिन पहले ही शुरू हो जाता है. जिसको शिव नवरात्रि भी कहा जाता है. जिस तरह माता की नवरात्रि होती हैं, उसी तरह बाबा महाकाल को भी नौ दिन तक अलग अलग श्रृंगार से सजाया जाता है. आखिर में महा शिवरात्रि के दिन बाबा महाकाल को दूल्हे की तरह सजाया जाता है. वर्ष भर में एक बार दिन में होने वाली भस्म आरती भी महा शिवरात्रि के दूसरे दिन होती है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं.

राणोजी शिन्दे ने बनवाया था मंदिर
उज्जैन का शिवलिंग बारह ज्योतिर्लिंगों में से तीसरे नंबर का है. आज जो महाकालेश्वर का विश्व-प्रसिद्ध मन्दिर की ईमारत विद्यमान है. यह राणोजी शिन्दे शासन की देन है. यह तीन खण्डों में विभक्त है. निचले खण्ड में महाकालेश्वर बीच के खण्ड में ओंकारेश्वर तथा सर्वोच्च खण्ड में नागचन्द्रेश्वर के शिवलिंग प्रतिष्ठ हैं. शिखर के तीसरे तल पर भगवान शंकर-पार्वती नाग के आसन और उनके फनों की छाया में बैठी हुई सुन्दर और दुर्लभ प्रतिमा है. इसके दर्शन वर्ष में एक बार श्रावण शुक्ल पंचमी- नागपंचमी के दिन होते हैं.

यह है मंदिर की भौगोलिक स्थिति
यहीं एक शिवलिंग भी है. कोटि तीर्थ कुण्ड के पूर्व में जो विशाल बरामदा है. वहां से महाकालेश्वर (geographical structure of mahakal temple ujjain) के गर्भगृह में प्रवेश किया जाता है. इसी बरामदे के उत्तरी छोर पर भगवान राम एवं देवी अवन्तिका की आकर्षक प्रतिमाएं पूज्य हैं. इन मन्दिरों में वृद्ध महाकालेश्वर, अनादिकल्पेश्वर एवं सप्तर्षि मन्दिर प्रमुखता रखते हैंं ये मन्दिर भी बड़े भव्य एवं आकर्षक हैं. महाकालेश्वर का लिंग पर्याप्त विशाल है. गर्भगृह में ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त गणेश, कार्तिकेय एवं पार्वती की आकर्षक प्रतिमाएं प्रतिष्ठ हैं. दीवारों पर चारों ओर शिव की मनोहारी स्तुतियां अंकित हैं. नंदादीप सदैव प्रज्ज्वलित रहता है.

नववर्ष के मौके पर पहुंच रहे श्रद्धालु
उज्जैन भगवान महाकाल यंहा के राजा के रुपए में पूजे जाते हैं. बड़ी संख्या में श्रद्धालु उज्जैन में बाबा महाकाल के दर्शन के लिए आते हैं. नव वर्ष पर भीड़ ज्यादा दिखाई देती है. 31 दिसम्बर से 5 जनवरी तक देश भर के श्रद्धालु महाकाल मंदिर के दर्शन के लिए पहुंचेंगे. श्रद्धालु अपना नये वर्ष का आगाज बाबा महाकाल के आंगन से ही करते हैं. हरियाणा से आये श्रद्धालु ने कहा की बस यही चाहते हैं कि नववर्ष में बाबा के दर्शन हो जाएं, ताकि पूरा वर्ष उनके आशीर्वाद से अच्छा जाए. इसी तरह जयपुर से आये एक श्रद्धालु ने कहा नववर्ष महाकाल के साथ मानने के लिए प्रति वर्ष में उज्जैन आता हूं. बाबा महाकाल के दर्शन करने के लिए यूपी, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा, साउथ के कई राज्यों से पहुंचते हैं.

महाकाल की भक्ति में डूबे मंत्री तुलसी सिलावट, Ken Betwa Link Project के लिए बाबा महाकाल को दिया धन्यवाद

मंदिर में कितना आता है दान (donation for baba mahakal ujjain)
महाकाल मंदिर में साल भर दान आता है. इसमें कैश, सोने-चांदी के बर्तन, गहने सहित अन्य सामग्री समय-समय पर श्रद्धालु दान करते रहते हैं. महाकाल मंदिर की दान सहित कुल आय 23 करोड़ आयी बताई गयी थी. महाकालेश्वर मंदिर में लॉकडाउन के बाद 28 जून 2021 से मंदिर का दरबार आम श्रद्धालुओं के लिए खोला गया था. 3 महीने 17 दिन के समय में देश भर से आने वाले श्रद्धालुओं ने भी दिल खोलकर बाबा महाकाल के खजाने में 23 करोड़ रुपए से अधिक की दान राशि जमा कर दी है. प्राप्त आय 28 जून 2021 से लेकर 15 अक्टूबर 2021 तक की है.

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