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Kaal Bhairav Ashtami 2022 जानिए कब है काल भैरव अष्टमी, कैस हुई उत्पति और पूजा-विधि

16 नवंबर को महाकाल भैरव अष्टमी मनाई जाएगी (kaal bhairav jayanti 2022). धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान काल भैरव का अवतरण हुआ था. जानिए काल भैरवाष्टमी की पूजा-विधी और कैसे हुई भैरव की उत्पति (puja vidhi upay kaal bhairav ashtami).

Kaal Bhairav Ashtami 2022
कार भैरव अष्टमी 2022
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Published : Nov 14, 2022, 8:15 AM IST

भोपाल। इस बार 16 नवंबर को महाकाल भैरव अष्टमी मनाई जाएगी (kaal bhairav jayanti on 16 november). हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्ण की अष्टमी तिथि को कालभैरव जयंती मनाई जाती है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान काल भैरव का अवतरण हुआ था. धार्मिक ग्रंथों में काल भैरव भगवान को शिव जी का रौद्र स्वरूप बताया गया है. भक्तों के लिए काल भैरव दयालु, कल्याण करने वाले और शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले देव माने जाते हैं, लेकिन अनैतिक कार्य करने वालों के लिए ये दंडनायक हैं. भैरव बाबा की पूजा अर्चना से व्यक्ति को हर तरह की परेशानी से मुक्ति मिल जाती है.

जानिए काल भैरव की पूजा से क्या होता है लाभ: साथ ही इनकी उपासना करने से व्यक्ति को शीघ्र ही कर्ज से, निगेटिवीटी से, शत्रुओं से और मुकदमे के साथ ही भय, रोग आदि से भी छुटकारा मिलता है. महाकाल भैरव जयंती के दिन विधिवत् पूजा करने से जीवन में विजय मिलती है और सुख समृद्धि की भी प्राप्ति होती है. श्री भैरव को तंत्र-मंत्र का देवता भी माना जाता है. इनकी कृपा से हर तरह की तांत्रिक क्रियाएं निष्फल हो जाती हैं और व्यक्ति को खुशहाली मिलती है.

इस दिन इन मंत्रों का करें जाप: कालाष्टमी के दिन ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम: मंत्र का रूद्राक्ष माला से पांच माला जाप करें. इससे शत्रु पर विजय प्राप्ति का वरदान मिलेगा. दुश्मन आप पर हावी नहीं हो पाएगा.

इन उपायों से होगा फायदा: काल भैरव अष्टमी पर इन उपायों को करने से फलदायी होता है. बाबा भैरवनाथ के मंदिर में दीप प्रज्वलित कर नारियल-जलेबी का भोग लगाएं (puja vidhi upay kaal bhairav ashtami). इससे भगवान भैरव शीघ्र प्रसन्न होते हैं. अकाल मृत्यु का भय भी खत्म होता है. इसके अलावा काले रंग के कुत्ते को काल भैरव की सवारी माना जाता है. काल भैरव जयंती के दिन खासकर काले कुत्ते को सरसों के तेल में एक ताजी रोटी लगाकर खिलाएं. मान्यता है इससे व्यापार और नौकरी की हर बाधा दूर होती है.

बाबा काल भैरव जयंतीः महाकाल के सेनापति को लगाया 101 प्रकार की शराब का भोग

कैसे हुई भैरव की उत्पत्ति: शास्त्रों के अनुसार भारत की उत्पत्ति भगवान शिव के रूद्र रूप से हुई थी (puja vidhi upay kaal bhairav ashtami). शिव के दो रूप उत्पन्न हुए प्रथम को बटुक भैरव और दूसरे को काल भैरव कहते हैं. ऐसी भी मान्यता है कि बटुक भैरव भगवान का बाल रूप हैं और इन्हें आनंद भैरव भी कहते हैं. जबकि काल भैरव की उत्पत्ति एक श्राप के चलते हुई, उनको शंकर का रौद्र अवतार माना जाता है. शिव के इस रूप की आराधना से भय एवं शत्रुओं से मुक्ति, और संकट से छुटकारा मिलता है. काल भैरव भगवान शिव का अत्यंत भयानक और विकराल प्रचंड स्वरूप है. शिव के अंश भैरव को दुष्टों को दण्ड देने वाला माना जाता है, इसलिए इनका एक नाम दण्डपाणी भी है. मान्यता है कि शिव के रक्त से भैरव की उत्पत्ति हुई थी, इसलिए उनको कालभैरव कहा जाता है.

शिव और शक्ति से पहले भैरव की आराधना जरूरी: एक बार अंधकासुर ने भगवान शिव पर हमला कर दिया था. तब महादेव ने उसके संहार के लिए अपने रक्त से भैरव की उत्पत्ति की थी. शिव और शक्ति दोनों की उपासना में पहले भैरव की आराधना करने के लिए कहा जाता है. कालिका पुराण में भैरव को महादेव का गण बताया गया है और नारद पुराण में कालभैरव और मां दुर्गा दोनों की पूजा इस दिन करने के लिए बताया गया है.

काल भैरव तिथि व मुहूर्त:

  • काल भैरव जयंती- मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि बुधवार, 16 नवंबर 2022
  • अष्टमी तिथि आरंभ- बुधवार 16 नवंबर 2022, सुबह 05 बजकर 49 मिनट पर
  • अष्टमी तिथि का समापन- गुरुवार 17 नवंबर 2022, सुबह 07 बजकर 57 मिनट तक

काल भैरव अष्टमी की पूजा-विधी:

  • कृष्ण की अष्टमी तिथि को सुबह स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें.
  • काल भैरव भगवान का पूजन रात्रि में करने का विधान है.
  • इस दिन शाम को किसी मंदिर में जाएं और भगवान भैरव की प्रतिमा के सामने चौमुखा दीपक जलाएं.
  • अब फूल, इमरती, जलेबी, उड़द, पान, नारियल आदि चीजें अर्पित करें.
  • काल भैरव चालीसा का पाठ कर, भगवान का ध्यान लगाएं

भोपाल। इस बार 16 नवंबर को महाकाल भैरव अष्टमी मनाई जाएगी (kaal bhairav jayanti on 16 november). हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्ण की अष्टमी तिथि को कालभैरव जयंती मनाई जाती है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान काल भैरव का अवतरण हुआ था. धार्मिक ग्रंथों में काल भैरव भगवान को शिव जी का रौद्र स्वरूप बताया गया है. भक्तों के लिए काल भैरव दयालु, कल्याण करने वाले और शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले देव माने जाते हैं, लेकिन अनैतिक कार्य करने वालों के लिए ये दंडनायक हैं. भैरव बाबा की पूजा अर्चना से व्यक्ति को हर तरह की परेशानी से मुक्ति मिल जाती है.

जानिए काल भैरव की पूजा से क्या होता है लाभ: साथ ही इनकी उपासना करने से व्यक्ति को शीघ्र ही कर्ज से, निगेटिवीटी से, शत्रुओं से और मुकदमे के साथ ही भय, रोग आदि से भी छुटकारा मिलता है. महाकाल भैरव जयंती के दिन विधिवत् पूजा करने से जीवन में विजय मिलती है और सुख समृद्धि की भी प्राप्ति होती है. श्री भैरव को तंत्र-मंत्र का देवता भी माना जाता है. इनकी कृपा से हर तरह की तांत्रिक क्रियाएं निष्फल हो जाती हैं और व्यक्ति को खुशहाली मिलती है.

इस दिन इन मंत्रों का करें जाप: कालाष्टमी के दिन ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम: मंत्र का रूद्राक्ष माला से पांच माला जाप करें. इससे शत्रु पर विजय प्राप्ति का वरदान मिलेगा. दुश्मन आप पर हावी नहीं हो पाएगा.

इन उपायों से होगा फायदा: काल भैरव अष्टमी पर इन उपायों को करने से फलदायी होता है. बाबा भैरवनाथ के मंदिर में दीप प्रज्वलित कर नारियल-जलेबी का भोग लगाएं (puja vidhi upay kaal bhairav ashtami). इससे भगवान भैरव शीघ्र प्रसन्न होते हैं. अकाल मृत्यु का भय भी खत्म होता है. इसके अलावा काले रंग के कुत्ते को काल भैरव की सवारी माना जाता है. काल भैरव जयंती के दिन खासकर काले कुत्ते को सरसों के तेल में एक ताजी रोटी लगाकर खिलाएं. मान्यता है इससे व्यापार और नौकरी की हर बाधा दूर होती है.

बाबा काल भैरव जयंतीः महाकाल के सेनापति को लगाया 101 प्रकार की शराब का भोग

कैसे हुई भैरव की उत्पत्ति: शास्त्रों के अनुसार भारत की उत्पत्ति भगवान शिव के रूद्र रूप से हुई थी (puja vidhi upay kaal bhairav ashtami). शिव के दो रूप उत्पन्न हुए प्रथम को बटुक भैरव और दूसरे को काल भैरव कहते हैं. ऐसी भी मान्यता है कि बटुक भैरव भगवान का बाल रूप हैं और इन्हें आनंद भैरव भी कहते हैं. जबकि काल भैरव की उत्पत्ति एक श्राप के चलते हुई, उनको शंकर का रौद्र अवतार माना जाता है. शिव के इस रूप की आराधना से भय एवं शत्रुओं से मुक्ति, और संकट से छुटकारा मिलता है. काल भैरव भगवान शिव का अत्यंत भयानक और विकराल प्रचंड स्वरूप है. शिव के अंश भैरव को दुष्टों को दण्ड देने वाला माना जाता है, इसलिए इनका एक नाम दण्डपाणी भी है. मान्यता है कि शिव के रक्त से भैरव की उत्पत्ति हुई थी, इसलिए उनको कालभैरव कहा जाता है.

शिव और शक्ति से पहले भैरव की आराधना जरूरी: एक बार अंधकासुर ने भगवान शिव पर हमला कर दिया था. तब महादेव ने उसके संहार के लिए अपने रक्त से भैरव की उत्पत्ति की थी. शिव और शक्ति दोनों की उपासना में पहले भैरव की आराधना करने के लिए कहा जाता है. कालिका पुराण में भैरव को महादेव का गण बताया गया है और नारद पुराण में कालभैरव और मां दुर्गा दोनों की पूजा इस दिन करने के लिए बताया गया है.

काल भैरव तिथि व मुहूर्त:

  • काल भैरव जयंती- मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि बुधवार, 16 नवंबर 2022
  • अष्टमी तिथि आरंभ- बुधवार 16 नवंबर 2022, सुबह 05 बजकर 49 मिनट पर
  • अष्टमी तिथि का समापन- गुरुवार 17 नवंबर 2022, सुबह 07 बजकर 57 मिनट तक

काल भैरव अष्टमी की पूजा-विधी:

  • कृष्ण की अष्टमी तिथि को सुबह स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें.
  • काल भैरव भगवान का पूजन रात्रि में करने का विधान है.
  • इस दिन शाम को किसी मंदिर में जाएं और भगवान भैरव की प्रतिमा के सामने चौमुखा दीपक जलाएं.
  • अब फूल, इमरती, जलेबी, उड़द, पान, नारियल आदि चीजें अर्पित करें.
  • काल भैरव चालीसा का पाठ कर, भगवान का ध्यान लगाएं
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