उज्जैन। दिवाली पर्व पर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर का आंगन भी सज गया है. मान्यता अनुसार विश्व भर में प्रत्येक त्योहारों की शुरुवात सर्वप्रथम बाबा महाकाल के प्रांगण से ही होती है. महाकाल मंदिर में 12 नवंबर से तीन दिवसीय दिवाली का आगाज हो गया है. गुरुवार रात बाबा महाकाल की शयन आरती के समय पंडित और पुजारियों द्वारा फुलझड़ी जलाकर बाबा की आरती की गई. दिवाली के लिए महाकाल मंदिर को आकर्षक विद्युत सज्जा से सजाया गया है. धनतेरस पर शुक्रवार की सुबह 9:30 बजे मंदिर समिति के पुरोहितों द्वारा विशेष पूजा की जाएगी.
इस बार धनतेरस को लेकर देश भर ने असमंजस की स्थिति बनी हुई थी, लेकिन महाकाल मंदिर में गुरुवार की रात त्रयोदशी पर्व लगते ही शयन आरती में बाबा के सामने फुलझड़ी जला कर दिवाली पर्व की शुरुवात की गई. हालांकि तिथि के मुताबिक आज भी धनतेरस की पूजा की जा रही है. इसके तहत शुक्रवार को 9:30 बजे मंदिर समिति के पुरोहितों द्वारा विशेष पूजा की जाएगी. जिसमें नंदी हॉल में पुजारी, पुरोहित समिति द्वारा मंत्रोच्चार के साथ राजाधिराज महाकाल, कुबेर, लक्ष्मी का पूजन किया जाएगा. इस अवसर पर कलेक्टर आशीष सिंह, प्रशासक नरेंद्र सूर्यवंशी, सहायक प्रशासनिक अधिकारी मौजूद रहेंगे.
56 पकवानों का महाभोग
14 नवंबर को महाकाल राजा के दरबार में अन्नकूट महोत्सव मनाया जाएगा, सुबह 4 बजे होने वाली भस्म आरती के दौरान बाबा महाकाल को 56 पकवानों का महाभोग अन्नकूट उत्सव के रूप में लगाया जाएगा. परंपरानुसार हर त्योहार की शुरुआत महाकाल के दरबार में सबसे पहले होती है.
रूप चतुर्दशी पर महाकाल करेंगे अभ्यंग स्नान
रूप चतुर्दशी पर महाकाल का स्वरूप निखारा जाएगा, इस दिन गर्म जल से स्नान कराने की परंपरा भी निभाई जाएगी. 56 भोग के बाद बाबा का अभ्यंग स्नान होगा. सुबह 6 बजे महाकाल को शहद, घी, दूध, दही, उबटन, हल्दी, चंदन, केसर, विभिन्न प्रकार के फूलों और फलों के रसों के साथ इत्र आदि सुगंधित द्रव्य पदार्थों से अभ्यंग स्नान कराया जाएगा. हजारों श्रद्धालु इस स्वरूप के दर्शन करने मंदिर पहुंचते हैं, लेकिन इस वर्ष कोरोना संकट के कारण भस्म आरती में दर्शन के लिए आम जन को दर्शन लाभ देने के फिलहाल शासन की तरफ से कोई आदेश नहीं है.
कार्तिक-अगहन मास में भगवान महाकालेश्वर प्रजा को छह बार दर्शन देने नगर भ्रमण पर निकलेंगे. पहली सवारी दिवाली के दूसरे दिन 15 नवंबर को निकलेगी. श्रावण-भादौ मास की तर्ज पर हर सवारी शाम चार बजे निकलना शुरू होगी. एक सवारी वैकुंठ चौदस पर रात 11 बजे निकलेगी, जिसे हरि-हर मिलन कहा जाता है. इस दिन शिव पृथ्वी का भार गोपालजी को सौंपते हैं.